नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि संविधान में नागरिकों को सभी जरूरी अधिकार मिले हैं, जिनमें अभिव्यक्ति की आजादी का मूल अधिकार भी है और सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने
तथा हिंसा से दूर रहने का कर्तव्य भी, इसलिए नागरिकों को किसी भी प्रकार से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए और हिंसा से दूर रहना चाहिए।
संविधान अंगीकार करने के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर मंगलवार को संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा कि हमारे संविधान में
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार भी शामिल है। ऐसे में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गलत अर्थ लगाकर यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है, हिंसा और अराजकता
फैलाता है तो उसको रोकने की आवश्यकता है और ऐसा करने वाले व्यक्ति, देश के
जिम्मेदार नागरिक हैं। उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की है कि हम सब अपने
कर्तव्यों को निभाकर ऐसी परिस्थितियां पैदा करें, जहां अधिकारों का प्रभावी ढंग से
संरक्षण हो सके। राष्ट्रपति ने कहा कि मानववाद की भावना का विकास करना भी नागरिकों का एक मूल कर्तव्य है और सबके प्रति संवेदनशील होकर सेवा करना इस कर्तव्य में शामिल है। उन्होंने कहा कि
भारतीय लोकतन्त्र की मिसाल पूरे विश्व में दी जाती है। इसी वर्ष हमारे देशवासियों
ने 17वें आम चुनाव में भाग लेकर विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को
सम्पन्न किया है। इस चुनाव में 61 करोड़ से अधिक लोगों ने मतदान किया। मतदान में
महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के लगभग बराबर रही है। 17वीं लोकसभा में आज तक की
सबसे बड़ी संख्या में 78 महिला सांसदों का चुना जाना, हमारे लोकतन्त्र की
गौरवपूर्ण उपलब्धि है। महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी स्थायी संसदीय
समिति में, आज शत-प्रतिशत सदस्यता महिलाओं की है। यह एक
महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन है, जिसमें आने वाले कल की सुनहरी तस्वीर
झलकती है।
राष्ट्रपति ने सांसदों को संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने और निष्ठा से अपनी शपथ के अनुसार
अपने निर्वाचन क्षेत्र तथा देश के अन्य नागरिकों की सेवा करने में तत्पर रहने का
आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारत के नागरिक और मतदाता, सभी
अपने जन-प्रतिनिधियों से यह अपेक्षा रखते हैं कि उनके कल्याण से जुड़े मुद्दों का
समाधान, उनके प्रतिनिधि-गण अवश्य करेंगे। अधिकांश लोग अपने
सांसदों से कभी मिल भी नहीं पाते हैं परंतु वे सभी आप सबको अपनी आशाओं और
आकांक्षाओं का संरक्षक मानते हैं। इस आस्था और विश्वास का सम्मान करते हुए,
जन-सेवा में निरत रहना, हम सभी की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। लोकतंत्र के इस पावन मंदिर में आकर जन-सेवा का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात होती है। कोविंद ने कहा कि हमारे
संविधान में समावेशी समाज के निर्माण का आदर्श भी है और इसके लिए समुचित
प्रावधानों की व्यवस्था भी। उन्होंने कहा कि संविधान-संशोधन जैसे शांतिपूर्ण माध्यम के जरिए
क्रांतिकारी परिवर्तन की व्यवस्था देने वाले संविधान निर्माताओं के प्रति हृदय से
आभार व्यक्त करने का दिन है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में समावेशी
विकास के हित में किए गए संवैधानिक संशोधनों को संसद ने पारित इसके लिए सभी सांसद
बधाई के पात्र हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश में हर प्रकार की परिस्थिति का सामना करने के लिए संविधान-सम्मत रास्ते
उपलब्ध हैं। इसलिए हम जो भी कार्य करें, उसके पहले यह जरूर सोचें कि क्या हमारा
कार्य संवैधानिक मर्यादा, गरिमा व नैतिकता के अनुरूप है? कोविंद ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि इस कसौटी को ध्यान में रखकर अपने संवैधानिक आदर्शों को प्राप्त करते हुए हम सब भारत को
विश्व के आदर्श लोकतन्त्र के रूप में सम्मानित स्थान दिलाएंगे।