नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि भारतीय परंपरा का मानना है कि सहयोग, समन्वय और संवाद से जीवन और समाज आगे बढ़ता है संघर्ष से नहीं।
भारतीय किसान संघ के नवनिर्मित मुख्यालय भवन ‘किसान शक्ति’ का उद्घाटन करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि पश्चिम सभ्यता की मान्यता है कि संघर्ष और प्रतिस्पर्धा से इतिहास और जीवन आगे बढ़ता है। भारतीय चिंतन और परंपरा इसके विपरीत है हमारा विश्वास है कि सहयोग, समन्वय, आत्मीयता और प्रेम से समाज की प्रगति संभव है। उन्होंने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश और समाज के कल्याण का ध्येय सामने रखकर लोगों से कार्य करने का आह्वान किया। ध्येय प्राप्ति के लिए विभिन्न साधन जरूरी हैं लेकिन साधनों से अधिक महत्वपूर्ण कर्म की साधना है।
उन्होंने कहा कि भारत का किसान यदि समर्थ और समस्या मुक्त होगा तो भारत को परम वैभव संपन्न बनाने में योगदान दे सकेगा, क्योंकि भारत का परम वैभव संपन्न होना विश्व की सुख शांति के लिए अब अनिवार्य हो गया है। यह हमारा ध्येय है और इसके लिए काम कर रहे हैं।
किसान संघ के प्रशासकीय कार्यालय के संदर्भ में भागवत ने कहा कि किसान संघ को उसके कार्यकर्ता और समाज के लोग प्रशासक के रूप में नहीं बल्कि संगठन के रूप में देखते हैं। उन्होंने कार्यालय में आधुनिकस सुविधाओं के बीच किसानों के लिए अपनत्व का वातवारण बनाये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि किसान संघ को अपने प्रशासकीय कार्यालय का ऐसा समर्थ वातावरण रखना होगा कि किसानों में यह विश्वास बने कि यदि वह यहां पहुंच गया तो वह सभी समस्याओं से मुक्त हो जाएंगा। ऐसे वातावरण में यहां आने वाला व्यक्ति अपने भविष्य और वर्तमान के विषय में निश्चिंत होकर ध्येयनिष्ठ बनेगा।
उन्होंने कहा कि इस कार्यालय में आने वाले को अपने पन की अनुभूति होनी चाहिए जिससे उसके हृदय में आत्मविश्वास जगे कि यद्पि चारों ओर प्रचलित वातावरण विपरीत है, हमारी बात सत्य है, हम काम करते रहेंगे तो हम सबको साथ लेकर ये समय बदल देंगे। हालांकि व्यवस्था परिवर्तन का कार्य अलग है।