अमेरिका ने सन 1990 के बाद बड़ा फैसला करते हुए चीन की करेंसी को ‘ब्लैकलिस्ट’ करार दिया है. अमेरिका की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि चीन अपनी करेंसी युआन को मैन्युप्लेट (हेरा-फेरी) कर रहा है.
दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियों के बीच ट्रेड वॉर और गहरा गया है. अमेरिका ने सन 1990 के बाद बड़ा फैसला करते हुए चीन की करेंसी को ‘ब्लैकलिस्ट’ करार दिया है. अमेरिका की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि चीन अपनी करेंसी युआन को मैन्युप्लेट (हेरा-फेरी) कर रहा है. दरअसल चीन ने अपनी करेंसी को डीवैल्यू किया है. इसका मतलब साफ है कि अपने प्रोडक्ट को बाजार में बेचने के लिए करेंसी की वैल्यू घटा दी है. ऐसे में उसके प्रोड्क्ट अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ते हो गए. इस पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन के इस फैसले से दुनियाभर के करेंसी बाजार पर बड़ा असर हुआ है. भारतीय रुपये ने एक दिन में 6 साल की सबसे बड़ी गिरावट दिखाई है. वहीं, दुनियाभर के शेयर बाजार में भी भारी गिरावट है.
चीन ने क्या किया-चीन की मुद्रा युआन में करीब एक दशक की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई. सोमवार को शुरुआती कारोबार में युआन अमेरिका मुद्रा के मुकाबले गिरकर 7 युआन प्रति डॉलर के नीचे आ गया. यह अगस्त 2010 के बाद का सबसे निचला स्तर है.
चीन की करेंसी युआन कैसे काम करती है?- सबसे पहले तो यह जान लें कि युआन दुनिया की अन्य करेंसी की तरह नहीं है. चीन का केंद्रीय बैंक ‘पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना’ रोजाना राष्ट्रीय मुद्रा युआन की कीमत तय करता है.
>> बैंक एक आधिकारिक मध्यबिंदु (मिडपॉइंट) के ज़रिए इस दर पर नियंत्रण रखता है जिसकी वजह से किसी भी निश्चित दिन कारोबार में उठापटक हो सकती है.
>> ऐसा करने का मक़सद विनिमय दर को और अधिक ‘बाज़ार के मुताबिक’ बनाना है. युआन के कमजोर होने का मतलब है कि इससे चीन का निर्यात सस्ता होगा.
>> कैपिटल सिंडिकेट के मैनेजिंग पार्टनर सुब्रमण्यम पशुपति ने न्यूज18इंडिया को बताया है कि चीनी करेंसी आने वाले महीनों में दबाव में रहेगी. चीन के सेंट्रल बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना का अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने के बदले में ये फैसला किया है. इससे भारत समेत दुनियाभर की करेंसी में भारी गिरावट आएगी.
भारत पर असर- सुब्रमण्यम पशुपति कहते हैं कि अमेरिका की ओर से लगातार बढ़ती ट्रेड वॉर के खिलाफ चीन ये कदम उठा रहा है. ऐसे में भारतीय रुपया और कमजोर हो सकता है. लिहाजा भारतीय अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा. रुपये की कमजोरी से कच्चा तेल खरीदना महंगा हो जाएगा. लिहाजा पेट्रोल-डीज़ल के साथ-साथ महंगाई भी बढ़ने की आशंका है.
आम आदमी पर होगा असर
(1) भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम प्रोडक्ट आयात करता है.
(2) रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात महंगा हो जाएगा.
(3) तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल की घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती हैं.
(4) डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई में तेजी आ सकती है.
(5) इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है.
(6) रुपये के कमजोर होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.
एक अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ने पर- आम बजट से पहले आने वाले आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया था कि रुपया अगर एक डॉलर कमजोर होता है तो तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ानी पड़ती हैं. पेट्रोलियम प्रोडक्ट की कीमतों में 10 फीसदी की तेजी से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और ट्रांसपोर्टेशन लागत पर पड़ता है