वट सावित्री पूजा एक हिंदू धार्मिक पर्व है जो हिन्दू महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह पूजा हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, जो मई-जून के बीच पड़ती है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य पतिव्रता, सुख-सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की कामना करना है।
पूजा का त्योहार सावित्री देवी के नाम पर मनाया जाता है, जो महाभारत में सत्यवान सती के रूप में प्रस्तुत होती हैं। सावित्री महिलाओं के पतिव्रता के प्रतीक मानी जाती हैं और इस पूजा को करने से पति की लंबी उम्र और पतिव्रता की शक्ति की प्राप्ति होने की कामना की जाती है।
पूजा के दिन महिलाएं सुबह सोने से पहले उठकर नहा धोकर सुंदर साड़ी पहनती हैं और सावित्री देवी की मूर्ति या फोटो के सामने जाकर पूजा करती हैं। पूजा में तुलसी की माला, रोली, चावल, दिये, फूल आदि का उपयोग किया जाता है। महिलाएं व्रत रखकर पूजा करती हैं और सावित्री देवी की कथा सुनती हैं।
इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा भी करती हैं। वट वृक्ष को पूजने के लिए उन्हें प्रदक्षिणा करनी होती है और वृक्ष की छाल, पत्ते और फल आदि को दान करना होता है। यह पूजा पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए की जाती है।
वट सावित्री पूजा उत्तर भारत में विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाई जाती है, लेकिन इसका महत्व देश के विभिन्न हिस्सों में भी है। यह पूजा महिलाओं के समूहों द्वारा आयोजित की जाती है और महिलाएं सावित्री देवी की कथा सुनती हैं, पूजा करती हैं और एक-दूसरे के हाथ से सिंदूर और सूहाग लेती हैं।
वट सावित्री पूजा एक प्रमुख पर्व है जो महिलाओं के द्वारा मनाया जाता है और पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना की जाती है। यह पूजा सामाजिक और पारिवारिक महत्व की होती है और महिलाओं के बीच सदभाव, सौहार्द और उत्साह को बढ़ाती है।
सत्यवान और सावित्री से जुड़ी कथा-
अपने पति के लिए सती सावित्री की भक्ति और स्नेह से प्रभावित होकर यमराज ने उनके पति सत्यवान के प्राण लौटा दिए। जैसा कि सावित्री ने भी यमराज से सौ पुत्रों के लिए कहा, उन्होंने उसे 100 बच्चों का आशीर्वाद दिया, जिसके लिए सत्यवान को लंबा जीवन जीना पड़ा। इस पौराणिक घटना के बाद से विवाहित महिलाएं हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत रखती हैं। जो लोग वट सावित्री व्रत पहली बार कर रहे हैं, उन्हें यह जानना जरूरी है कि क्या करें और क्या न करें।
जानें वट सावित्री व्रत नियम व विधि-
1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करके लाल रंग की साड़ी पहनें।
2. बरगद के पेड़ के नीचे पूजा स्थल की सफाई करें। अशुद्धियों को दूर करने के लिए गंगाजल छिड़कें।
3. अब सप्तधान्य को बांस की टोकरी में भरकर उसमें भगवान ब्रह्मा की मूर्ति रखें। दूसरी टोकरी में सप्तधन्य भरकर सावित्री और सत्यवान की मूर्तियां रख दें। दूसरी टोकरी को पहली टोकरी के बाईं ओर रखें।
4. दोनों टोकरियों को बरगद के पेड़ के नीचे रखें। पेड़ पर चावल के आटे की छाप या पीठा लगाएं।
5. पूजा के दौरान पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं और उसके चारों ओर 7 बार पवित्र धागा बांधें। अब वट वृक्ष की परिक्रमा करें।
6. इसके बाद पेड़ के पत्ते लेकर उनकी माला बनाकर धारण करें, फिर वट सावित्री व्रत की कथा सुनें।
7. फिर चने का पकवान बनाकर सास का आशीर्वाद लेने के लिए कुछ पैसे दिए जाते हैं।
8. किसी ब्राह्मण को कुछ फल, अनाज, वस्त्र आदि का दान करें।
9. व्रत तोड़ने के लिए 11 भीगे हुए चने खाएं।
वट सावित्री व्रत पूजन की आसान विधि-
1. वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठें।
2. स्नान आदि करने के बाद नए वस्त्र धारण करें। श्रृंगार करें।
3. बरगद की पेड़ की जड़ को जल अर्पित करें। गुड़, चना, फल, अक्षत और फूल अर्पित करें।
4. वट सावित्री व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
5. वट वृक्ष के चारों ओर लाल या पीला धागा बांधकर वृक्ष की परिक्रमा करें।
6. परिक्रमा के समय पति की लंबी आयु की कामना करें।
7. इसके बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें।
वट सावित्री व्रत के दिन क्या करें और क्या नहीं-
वट सावित्री व्रत के दिन दान करना अति लाभकारी माना गया है। इस दिन सुहान का सामान दान करना शुभ माना गया है। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाओं को काले कपड़े पहनने से बचना चाहिए। इसके अलावा सफेद वस्त्र भी धारण न करें। इस रंग की चूड़ियां भी ना पहनें।