गिरिडीह। राष्ट्रवाद की सीढ़ियों के जरिये सक्रिय राजनीति में शिक्षक से मुख्यमंत्री तक का सफर तय कर चुके पृथक झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी वापस भाजपा में शामिल हो रहे हैं। 11 फरवरी को झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो ) केन्द्रीय कार्यसमिति समिति की बैठक में पार्टी के भाजपा में विलय की मंजूरी का प्रस्ताव पारित किये जाने के साथ ही अब यह तय हो गया कि आगामी 17 फरवरी को राजधानी रांची में आयोजित भव्य कार्यक्रम में भाजपा के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में मंराडी अपने दलीय कुनबे के साथ भाजपा के हो जाएंगे। सकारात्मक राजनीति के पक्षधर मरांडी यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के बाद दूसरे बड़े राजनेता हैं, जिनकी भाजपा की राष्द्रवादी विचारधारा को अलग करना काफी कठिन है। शायद यही कारण है कि पुनः उनकी वापसी भाजपा परिवार में हो रही है।
दरअसल बीते विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही भाजपा अलाकमान की ओर से मरांडी को पार्टी में वापस लाने के प्रयास किये जाने लगे। मरांडी ने भी महसूस किया कि 14 वर्षों तक भाजपा से अलग
रहकर उन्होंने झारखंड में समावेशी विकास की कल्पना की थी वह भरसक तमाम प्रयासों के बावजूद मौजूदा दौर में पूरी नहीं हो सकती। अगर लक्ष्य हासिल करना है तो पुराने घर लौटना ही समय की मांग है और यह दोनों दलों के लिए उपयुक्त समय भी माना जा ऱहा है। विधानसभा चुनाव में सत्ता गवा चुकी भाजपा को झारखंड में एक साफ और बेदाग छवि के नेता की जरूरत थी । जिसकी भरपायी भाजपा आलाकमान की नजर में मंराडी से पूरी हो सकती है। झाविमो पार्टी सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस से भी प्रस्ताव आया ,पहले भी भाजपा सहित कई दलों से इस प्रकार का प्रस्ताव आते रहे हैं, लेकिन बात नहीं बनी।
मरांडी के समर्थक मानते हैं कि एक सामान्य परिवार में जन्म लेने वाले आम कार्यकर्ता को भाजपा में ही सीएम, पीएम बनने का सौभाग्य मिलता है। यह मरांडी से बेहतर कौन जान समझ सकता है, जिन्हें 15 नवम्बर 2000 में नवगठित झारखंड अलग राज्य का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ, लेकिन खुद्दार स्वभाव के मरांडी का डोमिसाइल के मुद्दे को लेकर तत्कालीन जदयू के विधायकों ने विद्रोह कर दिया ।नतीजा 17 फरवरी 2003 मरांडी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मरांडी की जगह अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने , लेकिन कुछ ही दिनो में भाजपा में अपनी उपेक्षा और कतिपय नेताओं के साथ बढ़ती तल्खी से विवस होकर मरांडी ने 2006 में भाजपा से अलग होकर नई पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्र) का गठन किया।
मरांडी ने पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत कर पंचायत स्तर तक नेटवर्क खड़ा किया। विगत 14 सालों तक उन्होंने पूरे राज्य में सकी का सफर तय कर लोगों की समस्याओं को करीब से देखने और समझने का काम किया। संगठन के बढ़ते आकार के साथ ही लोग जुड़ते गये और 2009, 2014 के चुनाव में पार्टी को सफलता भी मिली। मरांडी स्वयं 2014 के दोनों चुनाव हार गये। साथ ही पार्टी के विधायकों ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थामा। बावजूद मरांडी की पार्टी पांच वर्षो तक जन सवालों को लेकर आंदोलनरत रहे। बीते लोकसभा चुनाव में जहाँ मरांडी को एक बार फिर जेएमएम, कांग्रेस, राजद, गठवंधन में भी कोडरमा में हार का सामना करना पड़ा। बीते विधानसभा चुनाव में एकला चलो के तहत धनवार से विधानसमा में जीत मिली। राज्य में दो और सीटें भी मिली किन्तु इसके बाद से ही पार्टी को नये रास्ते पर ले जाने की कवायद शुरू हो गयी। अब जब 17 फरवरी को मरांडी की पार्टी जेवीएम के भाजपा में विलय की औपचारिक घोषणा हो जायेगी तो यह माना जा रहा है कि 14 सालों बाद एक बार फिर मरांडी झारखंड विधानसमा में विधायक दल के नेता के रूप में चुने जा सकते हैं।