बिहार बीजेपी में हलचल तेज है। पार्टी अभी डेप्युटी सीएम को लेकर पत्ते नहीं खोल रही है। लेकिन सुशील मोदी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से डेप्युटी सीएम का पद हटा कर यह साफ कर दिया है कि वह अगले उपमुख्यमंत्री नहीं हैं। साथ ही एक सवाल भी उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार से गहरी यारी सुशील मोदी पर भारी पड़ी है। बिहार के राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि सुशील मोदी ने बिहार में बीजेपी को नीतीश कुमार का पिछलग्गू बना दिया था।
नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोड़ी जगजाहिर है। जेडीयू नेताओं से ज्यादा नीतीश कुमार को सुशील मोदी डिफेंड करते हैं। 15 सालों की सरकार में नीतीश और सुशील मोदी को कभी कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन बीजेपी नेतृत्व को यह यारी 2012 के बाद से ही खटक रही है। जब सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को ‘पीएम मैटेरियल’ बता दिया था। जबकि बिहार बीजेपी के तमाम नेता नरेंद्र मोदी के नाम पर झंडा उठाए हुए थे।
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी के अंदर से नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की मांग उठ रही थी। गुजरात दंगों की वजह से नीतीश कुमार की पार्टी लगातार नरेंद्र मोदी का विरोध कर रही थी। इसे लेकर 2012 से ही चर्चा तेज हो गई थी। नीतीश कैबिनेट में शामिल रहे तत्कालीन पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह लगातार मोदी के पक्ष में बिहार में माहौल बना रहे थे। साथ ही अश्विनी चौबे भी नरेंद्र मोदी के लिए झंडा उठाए हुए थे। लेकिन सुशील मोदी ने सितंबर 2012 में एक इंटरव्यू के दौरान कह दिया था कि नीतीश कुमार में भी पीएम मटरियल है।
नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा से पहले भी बीजेपी 2 धड़ों में बंटी हुई थी। सुशील मोदी के इस बयान से बिहार की सियासत में भूचाल आ गया था। जेडीयू के नेता और हमलावर हो गए थे। बताया जाता है कि पार्टी नेतृत्व को यह बात नागवार गुजरी थी। ऐसे में बिहार की राजनीति में चर्चा यह भी है कि क्या उसी का खामियाजा सुशील मोदी को भुगतना पड़ा है।
बताया यह भी जाता है कि सुशील मोदी की कार्यशैली से बिहार कोटे से आने वाले केंद्रीय मंत्री भी कई बार असहज रहते थे। क्योंकि सुशील मोदी हमेशा से नीतीश के बचाव में ही खड़े रहते थे। इसके साथ ही पिछले 15 सालों से बिहार में बीजेपी सत्ता में तो जरूर है लेकिन नीतीश कुमार की छत्रछाया से आगे नहीं निकल पा रही थी। इस बार के चुनाव में बीजेपी बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। ऐसे में पार्टी के पास मौका है।
74 सीटें आने के बाद बिहार में बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी चाहती है कि अब सरकार में हस्तक्षेप बढ़े। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व को पता है कि सुशील मोदी के रहते हुए यह असंभव है। क्योंकि साथ में रह कर नीतीश कुमार के खिलाफ सुशील मोदी नहीं बोल सकते हैं। शायद सुशील मोदी को उसी का खामियाजा भुगतना पड़ा है। पंद्रह सालों के बाद बीजेपी ने नीतीश कुमार और सुशील मोदी के रिश्तों में दरार डालने में सफल हुई है।