नई दिल्ली। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) निश्चित समय के लिए अनुबंध आधारित नौकरियों के प्रचलन, सरकारी कंपनियों के निजीकरण, ठेके पर काम कराने, विनिवेश व श्रम कानूनों के कुछ मजदूर विरोधी प्रावधानों और विभिन्न अन्य मुद्दों पर 3 जनवरी को देशभर के जिला केंद्रों पर आंदोलन करेगा। इस दौरान मजदूर संघ लोगों को नागरिकता संशोधन अधिनियम के समर्थन में एक जागरुकता अभियान भी चलाएगा।
दिल्ली में भारतीय मजदूर संघ के केन्द्रीय कार्यालय पर आयोजित प्रेसवार्ता में संगठन के राष्ट्रीय महामंत्री बिरजेश उपाध्याय ने कहा कि मजदूर हितैषी मुद्दों पर भारतीय मजदूर संघ 3 दिसंबर को राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेगा। मुख्य कार्यक्रम दिल्ली के जंतर-मंतर पर होगा।
भारतीय मजदूर संघ की ओर से मुद्दों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे सभी प्रकार के रोजगार अनुबंध आधारित और निश्चित अवधि के होते जा रहे हैं। इससे श्रमिकों को कभी भी नौकरी से निकाल दिये जाने का खतरा बना रहता है, साथ ही उन्हें लंबी अवधि तक कार्य करने से जुड़े लाभ भी नहीं मिल पाते हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण, विनिवेश, रणनीतिक बिक्री और निगमीकरण कर रही है जिसका मजदूर संघ विरोध करता है। इसके अलावा एफडीआई को भी सरकार को रोकना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में निजी कंपनियां भी डूब रही हैं। ऐसे में सरकारी क्षेत्र को दोषी ठहरा कर निजीकरण करना गलत है।
उपाध्याय ने कहा कि सरकार श्रम कानूनों को चार संहिता में कोड कर रही है। मजदूर संघ सरकार के इस प्रयास की सराहना करता है लेकिन इसके कई प्रावधानों को श्रम विरोधी मानता है। श्रमिकों के न्यूनतम वेतन सहित कई विषयों को श्रम कानूनों के माध्यम से समग्रता से लागू किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सरकार बहुत से कार्य ‘फ्लैगशिप प्रोग्राम’ के तहत करवा रही है, जिसमें सरकारी योजनाओं को लागू कराने वाले जमीन स्तर पर काम करने वाले लोगों को न्यूनतम मजदूरी और अन्य लाभ व सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। वहीं मजदूर संघ ने मांग की कि ईपीएस के तहत मिलने वाली सभी प्रकार की पेंशन को बढ़ाकर 5 हजार किया जाना चाहिए।
बिरजेश उपाध्याय ने कहा कि जीएसटी आने से सेस के माध्यम से फंड प्राप्त करने वाली सार्वजनिक लाभ से जुड़ी योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। इसके अलावा नगरपालिकाओं को भी जीएसटी के चलते पर्याप्त धन की कमी से जूझना पड़ रहा है और जीएसटी से प्राप्त राजस्व का राजनीतिक ढंग से इस्तेमाल हो रहा है। सरकार को निगमों और योजनाओं को धन मुहैया कराने की योजना बनानी चाहिए।