दुनिया भर में कोरोना वायरस की वैक्सीन की खोज जारी है लेकिन अब तक कोई सटीक दवा नहीं बन सकी है. भारत में भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हालांकि अच्छी बात ये है कि यहां कोरोना से रिकवर होने वाले मरीजों की भी अच्छी तादाद है. भारत में 1 लाख 30 हजार के करीब कोरोना मरीज ठीक हो चुके हैं. आइए जानते हैं कि भारत में कोरोना वायरस के मरीजों का किन दवाओं और थेरेपी से इलाज किया जा रहा है.
रेमडेसिवीर
ये एक एंटीवायरल दवा है, जिसे सबसे पहले 2014 में इबोला के इलाज में इस्तेमाल किया गया था. WHO के ट्रायल में इस दवा को Covid-19 के कारगर इलाजों में से एक माना गया है. यह शरीर में वायरस रेप्लिकेशन को रोकता है.
पिछले महीने, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीज ने शुरुआती ट्रायल के आधार पर बताया था कि रेमडेसिवीर देने वाले कोरोना के मरीजों में 11 से 15 दिनों तक में सुधार हुआ है. ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने 1 जून को रेमडेसिवीर के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी. गंभीर रूप से बीमार कोरोना के मरीजों को अब डॉक्टरों की तरफ से ये दवा दी जा रही है.
फेवीपिरवीर
ये एक एंटीवायरल है जो वायरस रेप्लिकेशन को रोकने के लिए दी जाती है. इसे एंटी-इन्फ्लूएंजा दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है. इस दवा को सबसे पहले जापान की फ्यूजीफिल्म टोयामा केमिकल लिमिटेड ने विकसित किया था. भारत में ये दवा ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स और स्ट्राइड्स फार्मा को बनाने की मंजूरी मिली है.
ये दवा कोरोना के गंभीर रूप से बीमार मरीजों से लेकर हल्के लक्षण वाले मरीजों को दी जा रही है. कोरोना के मरीजों पर दवा के तीसरे चरण के परीक्षण के लिए दस अस्पतालों को शॉर्टलिस्ट किया गया है.
टोसिलीज़ुमाब
यह एक इम्यूनो सप्रेसेंट दवा है जिसे आमतौर पर गठिया के इलाज में दी जाती है. मुंबई में, कोरोना वायरस के 100 से अधिक गंभीर मरीजों का इलाज इस दवा से किया गया है. सरकारी अस्पतालों में ये दवा मुफ्त में दी जा रही है. पहली बार ये दवा लीलावती अस्पताल में 52 साल के एक मरीज को दी गई थी, जिसकी हालत बहुत गंभीर हो चुकी थी.
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Natural Health Care
इस दवा से कोरोना के कई मरीजों की हालत में सुधार देखा गया है लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इस पर कोई भी डेटा देना अभी जल्दबाजी होगी. भारत में कई जगहों पर इसका ट्रायल शुरू हो चुका है. ये दवा Roche Pharma द्वारा बनाई जाती है जिसे भारत में एक्टेमरा ब्रांड के तहत बेचा जाता है.
इटोलीजुमैब
यह दवा आमतौर पर त्वचा के रोगों जैसे सोरायसिस, रुमेटॉयड आर्थराइटिस, मल्टीपल स्केलेरोसिस और ऑटोइम्यून रोग में किया जाता है. भारत में, बायोकॉन कंपनी ने इसे 2013 में लॉन्च किया था. दिल्ली और मुंबई में कोरोना के मामूली से लेकर गंभीर मामलों में ये दवा ट्रायल के तौर पर दी जा रही है, जिसके शुरुआती नतीजे जुलाई तक आएंगे.
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
कोरोना वायरस पर इस एंटी मलेरिया ड्रग के प्रभाव को लेकर पूरी दुनिया में बहस जारी है. द लैंसेट में छपी एक स्टडी के बाद WHO ने इसका सॉलिडैरिटी ट्रायल रोक दिया था. हालांकि स्टडी के लेखकों द्वारा इसे वापस लेने के बाद ट्रायल को फिर से बहाल कर दिया गया है. भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक है.
कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों जैसे सिर दर्द, बुखार, बदन दर्द से लेकर गंभीर मरीजों को डॉक्टर ये दवा दे रहे हैं. ICMR के दिशानिर्देशों के अनुसार नौ दिनों तक इसकी कम खुराक दी जा सकती है. हालांकि इसके साइड इफेक्ट्स को देखते हुए इसका इस्तेमाल अब कुछ मरीजों पर ही किया जा रहा है.
डॉक्सीसाइक्लिन+आइवरमेक्टिन
डॉक्सीसाइकलीन एक एंडीबायोटिक दवा है, जिसका उपयोग यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, आंखों और श्वसन तंत्र संक्रमण के इलाज में किया जाता है. वहीं आइवरमेक्टिन शरीर में मौजूद कीड़ों को मारने की दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा इस दवा का इस्तेमाल जुएं मारने के लिए भी किया जाता है. इन दोनों दवाओं के मिश्रण से कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज किया जा रहा है.
मई के मध्य में, बांग्लादेश मेडिकल कॉलेज अस्पताल की एक स्टडी में पाया गया कि इस मिश्रण से कोरोना वायरस के 60 फीसदी मरीज ठीक हो गए थे. मोनाश बायोमेडिसिन डिस्कवरी इंस्टीट्यूट की स्टडी से भी ये पता चला है कि आइवरमेक्टिन वायरस को 48 घंटों में खत्म करता है.