नई दिल्ली। ‘पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें’, ये लाइनें जानी पहचानी सी लग रही होगी। लगे भी क्यों ना यह तो हर बच्चे और बड़े के मुंह पर रहती है, क्योंकि यह है ही इतनी प्रसिद्ध टैगलाइन और यही नहीं बल्कि जिस ब्रांड के लिए यह टैग लाइन बनाई गई है यानी घड़ी डिटर्जेंट, उसे भी लोग बहुत पसंद करते हैं।
घड़ी की कहानी
कई दशक पहले घड़ी डिटर्जेंट भारत के बाज़ार में उतरा था। इस कम्पनी के कहे अनुसार जिन भी लोगों ने घड़ी डिटर्जेंट को इस्तेमाल किया, उनका विश्वास इस पर अब तक बना हुआ है। आपको बता दें कि घड़ी डिटर्जेंट तो लोकप्रिय है ही, लेकिन इसके बनने की शुरुआत और बाज़ार में अपनी धाक ज़माने की कहानी भी बहुत रोचक है। चलिये हम आपको इसकी कहानी से रूबरू कराते हैं…
कानपुर के 2 भाइयों ने की थी ‘घड़ी डिटर्जेंट’ की शुरुआत
दो भाई, जिनके नाम मुरली बाबू और बिमल ज्ञानचंदानी थे, उन्होंने मिलकर कानपुर में घड़ी डिटर्जेंट बनाने की शुरुआत की थी। वे दोनों कानपुर के ही रहने वाले हैं। कानपुर के शास्त्री नगर से इनकी ज़िन्दगी का सफ़र शुरू हुआ था। इन्होंने पहले फजलगंज फ़ायर स्टेशन के पास में अपनी एक डिटर्जेंट की फ़ैक्ट्री खोली। हालांकि यह फजलगंज स्थित फ़ैक्ट्री छोटी थी, लेकिन उन दोनों भाईयों के हौंसले बहुत बड़े थे। वे दोनों ही अपनी मेहनत और हिम्मत के बल पर इस कंपनी को आगे बढ़ाना चाहते थे। उस वक़्त उन्होंने शहर में जो डिटर्जेंट फैक्टरी खोली, उसका नाम श्री महादेव सोप इंडस्ट्री रखा, परन्तु यह फैक्ट्री ज़्यादा टाइम नहीं चल सकी।
उनके बजाय कोई और होता तो हार कर बैठ जाता, लेकिन इन भाइयों ने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुटे रहे। फिर उन्होंने उत्तरप्रदेश में अपने डिटर्जेंट की ब्रांडिंग तेज़ की। उस समय उनकी ब्रांड ‘घड़ी डिटर्जेंट’ के सामने कई प्रतिद्वंद्वी कंपनियाँ थी, जिनमें निरमा तथा व्हील जैसे बड़े ब्रांड भी शामिल थे।
इन हालातों में एक नई ब्रांड का उनसे आगे निकलना बहुत मुश्किल था। फिर मुरली बाबू और बिमल ज्ञानचंदानी अपनी ब्रांड को लोगों के समक्ष एक अलग तरीके से लेकर आए।
अपनी ख़ास टैगलाइन की वज़ह से प्रसिद्ध हुआ यह ब्रांड
उस समय ज्यादातर डिटर्जेंट पीले अथवा नीले कलर में बनाए जाते थे, लेकिन उन्होंने अपनी ब्रांड का डिटर्जेंट सफ़ेद रंग का बनाया। घड़ी डिटर्जेंट की खासियत यह थी कि इसकी क्वालिटी अच्छी थी तथा मूल्य भी कम था और सबसे ज़्यादा अनोखी थी इसकी टैगलाइन- ‘पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें’ , इस टैगलाइन के साथ जब यह डिटर्जेंट बाज़ार में आया तो ख़ूब लोकप्रिय हुआ। फिर उन्होंने उत्तर प्रदेश के मार्केट में अपनी धाक ज़माने के बाद दूसरे राज्यों में भी इसका प्रचार-प्रसार किया।
अब 12 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा प्रोपर्टी के मालिक हैं दोनों भाई
फिर मुरली बाबू व बिमल ज्ञानचंदानी ने अपने काम को और बढ़ाने के लिए विक्रेताओं को कमीशन देने की भी शुरूआत की। इस प्रकार से कुछ ही समय में मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच घड़ी डिटर्जेंट एक पसंदीदा ब्रांड बना। फिर तो धीरे-धीरे करके लगभग हर घर में घड़ी डिटर्जेंट पर विश्वास किया और इसे अपनाया। वर्ष 2005 में इस कम्पनी ने अपना नाम परिवर्तन करके RSPL कर दिया और अब तो इसका नाम पूरे विश्व की सबसे बड़ी ब्रांड्स में शामिल है।
किसी समय में एक छोटी-सी फ़ैक्ट्री से शुरुआत करने वाले ये दोनों भाई वर्तमान में 12 हज़ार करोड़ रुपये से भी अधिक की प्रोपर्टी के मालिक बन गए हैं। कई वर्षों से यह ब्रांड लोगों को कम मूल्य पर अच्छी क्वालिटी का डिटर्जेंट उपलब्ध करवा रहा है, यही वज़ह है कि लोग आज भी इसे इतना पसंद करते हैं।
मुरली बाबू व बिमल ज्ञानचंदानी की सफलता की दास्तां से यह सिद्ध हो जाता है कि सही तरीके से धैर्य रखकर और कड़ी मेहनत करके जब कोई काम किया जाता है तो उसमें मनुष्य को कामयाबी ज़रूर मिलती है।