नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने शनिवार को उत्तर प्रदेश से दिल्ली की सीमा पर पहुंचे आंदोलनरत किसानों की बीमा योजना का लाभ सभी किसानों को देने, गन्ना किसानों को दो सप्ताह में भुगतान और भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को आसान बनाने सहित पांच मांगों को मान लिया है। इसके साथ किसान नेताओं ने आंदोलन को फिलहाल स्थगित करने की घोषणा कर दी है।
आंदोलनकारी किसानों के 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने आज शनिवार को कृषि भवन में मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की। अधिकारियों ने किसान बीमा योजना का लाभ सभी किसानों को देने, प्रदूषित नदियों की साफ-सफाई के लिए विशेष टास्क फोर्स बनाने, दो सप्ताह में गन्ना किसानों का भुगतान किए जाने, किसानों की भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल बनाने तथा आंदोलन के दौरान किसानों पर लगे मुकदमों को जल्द समाप्त करने की मांग पर सहमति जताते हुए अन्य मांगों पर भी विचार कर उचित निर्णय लेने का आश्वासन दिया।
इस पर किसान प्रतिनिधिमंडल ने तत्काल आंदोलन को स्थगित कर दिया। हालांकि उन्होंने शेष मांगों के संबंध में चर्चा के लिए जल्द ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात का समय मांगा है।
भारतीय किसान संगठन के अध्यक्ष पूरन सिंह ने बताया कि सरकार 15 में से पांच मांगों पर सहमत हो गई है। हालांकि आंदोलन को समाप्त नहीं किया गया है, यह सिर्फ एक अस्थायी व्यवस्था है। शेष मांगों के लिए हम 10 दिनों के बाद प्रधानमंत्री से मिलेंगे। उन्होंने कहा कि यदि सरकार हमारी सभी मांगों पर सहमत होती है तो हम आंदोलन समाप्त कर देंगे और यदि नहीं, तो हम फिर से सहारनपुर से आंदोलन शुरू करेंगे।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से एक बार फिर किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर हल्ला बोल दिया था। इसके चलते शनिवार को प्रदेश के हजारों किसान कर्जमाफी और बकाया भुगतान सहित अपने 15 सूत्री मांगों को लेकर दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठे गए क्योंकि उन्हें दिल्ली की तरफ बढ़ने से रोक दिया गया। पुलिस प्रशासन ने किसानों को दिल्ली की ओर जाने से रोकने के लिए यूपी गेट पर भारी पुलिस बल को तैनात कर दिया था। इसके चलते किसानों का हुजूम गाजियाबाद-दिल्ली बॉर्डर पर किसान घाट तक पहुंचने के लिए पुलिस प्रशासन के साथ जूझता दिखा।
इससे पहले गुरुवार देर रात से लेकर शुक्रवार देर शाम तक जिला प्रशासन के अधिकारियों, केन्द्र सरकार के कृषि अधिकारियों तथा किसानों के बीच कई चरणों में हुई वार्ता विफल रही थी। ऐसे में किसानों का कहना था कि वे सरकार के प्रतिनिधि नहीं सिर्फ सरकार से ही बात करेंगे।