23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में भगत सिंह और उनके साथी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए. आपको बता दें, फांसी से पहले भगत सिंह किताब ही पढ़ रहे थे. भगत सिंह को पढ़ना बहुत पसंद था. वह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिसके पीछे पूरी अंग्रेज हुकूमत पड़ी थी. उनकी किताबों को लेकर दीवानगी हैरान करती है. लेकिन वह अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त तक नई-नई किताबें पढ़ते रहे. वो किताबें पढ़ते वक्त नोट्स भी बनाया करते थे, जो कि आज ऐतिहासिक दस्तावेज की शक्ल ले चुके हैं. उन नोट्स से उस वक्त के हालात और भगत सिंह की देश और समाज के लिए सोच का पता चलता है.
इसलिए भगत सिंह और उनके साथियों को 11 घंटे पहले दे दी गई थी फांसी
दस्तावेज बताते हैं कि भगत सिंह जब जेल में थे, तब भी खूब सारी किताबें पढ़ रहे थे. वो अक्सर अपने दोस्तों को चिट्ठी लिखकर किताबें मंगाते थे. ऐसी ही एक चिट्ठी उन्होंने लाहौर जेल से अपने बचपन के साथी जयदेव के नाम लिखी. ये चिट्ठी इस क्रांतिकारी की किताबों की भूख का प्रमाण है. इस पत्र से यह भी मालूम चलता है कि भगत अपने साथियों के अध्ययन के प्रति भी सचेत थे और जेल से ही यथासंभव उनकी मदद करने की कोशिश करते रहते थे. (नीचे वो चिट्ठी हूबहू दी गई है)
कृपया निम्नलिखित किताबें द्वारकानाथ पुस्तकालय से मेरे नाम पर जारी करवाकर शनिचरवार को कुलबीर के हाथ भेज देना:
उन्होंने लिखा कृपया यदि हो सके तो मुझे एक और किताब भेजने का प्रबंध करना, जिसका नाम Historical Materialism (Bukharin) है. (यह पंजाब पब्लिक लाइब्रेरी से मिल जाएगी) और पुस्तकालय अध्यक्ष से मालूम करना कि कुछ किताबें क्या बोस्ट्रल जेल गई हैं? उन्हें किताबों की बहुत जरूरत है. उन्होंने सुखदेव के भाई जयदेव के हाथों एक सूची भेजी थी, लेकिन उन्हें अभी तक किताबें नहीं मिली हैं. अगर उनके (पुस्तकालय) के पास कोई सूची न हो तो कृपया लाला फिरोजचंद से जानकारी ले लेना और उनकी पसंद के अनुसार कुछ रोचक किताबें भेज देना. इस रविवार जब मैं वहां जाऊं तो उनके पास किताबें पहुंची हुई होनी चाहिए. कृपया यह काम किसी भी हालत में कर देना. इसके साथ ही Punjab Peasants in Prosperity and Debt by Darling और इसी तरह की एक दो अन्य किताबें किसान समस्या पर डा. आलम के लिए भेज देना.
आशा है तुम इन कष्टों को ज्यादा महसूस न करोगे. भविष्य के लिए तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि तुम्हें कभी कोई कष्ट नहीं दूंगा. सभी मित्रों को मेरी याद कहना और लज्जावती जी को मेरी ओर से अभिवादन. उम्मीद है कि अगर दत्त की बहन आईं तो वो मुझसे मुलाकात करने का कष्ट करेंगी.
आखिरी दिन लेनिन को पढ़ रहे थे भगत सिंह
आपको बता दें, जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी. 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी. फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी ही पढ़ रहे थे.
जब कहां ‘ठीक है अब चलो’
भगत सिंह को जब जेल के अधिकारियों ने यह सूचना दी कि उनकी फांसी का समय आ गया है तो उन्होंने कहा था- ‘ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले. फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – ‘ठीक है अब चलो’.