रांची। मोबाइल फोन अब सिर्फ दूरियां पाटने वाला नहीं रहा बल्कि, डिजिटलाइजेशन दुनिया का विशेष अंग बन गया है। डिजिटल तकनीक के प्रयोग से कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा। डिजिटल होती दुनिया में मोबाइल फोन जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन गया है। इसी तरह फिल्मी दुनिया में भी मोबाइल की पैठ तेजी से हो रही है। अब फिल्म निर्माण में भी मोबाइल फोन का दखल हो गया है।
मोबाइल फोन द्वारा बनाई गई फिल्म ‘कुछ पल सुकून के’ का रांची में प्रीमियर शो आयोजित किया गया। फिल्मों के बदलते कैनवास पर पत्रकारों और साहित्यकारों ने चर्चा भी की। रांची प्रेस क्लब में डाॅ सुशील कुमार अंकन के द्वारा बनाई गई मोबाइल फोन फिल्म ‘कुछ पल सुकून के’ का प्रीमियर शो संपन्न हुआ। साथ ही मोबाइल फोन फिल्मिंग पर एक परिचर्चा भी हुई।
स्क्रिप्ट, निर्देशन, कैमरा, संपादन और निर्माणकर्ता हैं रांची विश्वविद्यालय पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग के पूर्व निदेशक तथा संप्रति मारवाड़ी काॅलेज रांची के डिजिटल फोटोग्राफी एवं फिल्म निर्माण विभाग के निदेशक डाॅ सुशील कुमार अंकन। डॉ अंकन ने फिल्म के बारे में बताया कि सामाजिक जागरुकता के लिए बनाई गई इस फिल्म में एक सार्थक संदेश है।
एक हंसता-खेलता खुशहाल परिवार में यदि पति-पत्नी के बीच किसी बेबुनियाद शक की वजह से दूरियां बढ़ जाय, उस घर के बुजुर्गों को घर छोड़ के दूसरे घर में रहना पड़ जाय तो वह परिवार बिखर जाता है। अगर समझदार दम्पति ऐसी समस्याओं को आपसी सहमति से सुलझा लें तो परिवार फिर से एक होकर खुशहाल और संगठित हो जाता है। इसी मूल भावना को प्रदर्शित करती है यह मोबाइल फिल्म ‘कुछ पल सुकून के’।
उन्होंने बताया कि एक प्रयोग के तहत इस फिल्म का निर्माण किया है। उनका मानना है कि फ़िल्म निर्माण करने के लिए अब बड़े-बड़े कैमरे की बाध्यता समाप्त हो गई है। तकनीकी विकास के साथ यह नैनो टेक्नोलाॅजी का ही कमाल है कि मोबाइल फोन के कैमरे से भी अच्छी गुणवत्ता वाली फिल्में बनाई जा सकती हैं।
‘कुछ पल सुकून के’ के कलाकारों में पत्नी की भूमिका निभाने वाली मुक्ति शाहदेव एक शिक्षिका होने के साथ शहर की चर्चित कवियत्री भी हैं। पति की भूमिका में नवीन शर्मा के जीवन की यह पहली फिल्म है, जिसमें उन्होंने अभिनय किया। पेशे से पत्रकार नवीन शर्मा ने बहुत ही सहज अभिनय किया। नवीन शर्मा के माता-पिता के रोल में कुमकुम गौड़ और अशोक गौड़ ने भी शानदार अभिनय किया। स्वस्तिका शर्मा और शौर्य शर्मा दोनों बच्चों ने भी काफी बढ़िया अभिनय किया। सभी दर्शकों ने भी इस मोबाइल फिल्म को काफी सराहा।
मोबाइल फोन फिल्मिंग पर परिचर्चा
इस मौके पर ‘आने वाला समय मोबाइल फोन फिल्मिंग का है’ विषय पर एक सार्थक चर्चा भी हुई। जिस तरह ड्राइंग रूम में रखे फोन सेट, दीवार घड़ी, कैलेन्डर, कैलकुलेटर, दिशासूचक यंत्र, ध्वनि रेकार्डर, पोस्टल संचार, टेलिग्राम संचार, बैंकिंग सुविधा, बड़े-बड़े कैमरा, टाॅर्च सहित अन्य कई उपकरण एवं सुविधाएं एक साथ मोबाइल फोन में समेट दिये गये हैं। ठीक उसी तरह अब फिल्म निर्माण में भी मोबाइल फोन का दखल हो गया है। अब तो हम जब चाहें जहाँ चाहें वहीं फिल्म शूट करने को तैयार हो जाते हैं। पहले यह कार्य बहुत ही श्रम साध्य और दुष्कर था।
परिचर्चा में हिस्सा लेने वालों में रांची विश्वविद्यालय तथा केन्द्रीय विश्वविद्यालय झारखंड के अंग्रेजी विभाग से अवकाश प्राप्त प्रोफेसर तथा हिन्दी फीचर फिल्म ‘आक्रांत’ के निर्माता-निदेशक डाॅ विनोद कुमार, संत जेवियर काॅलेज मास कम्युनिकेशन विभाग के निदेशक तथा हिन्दुस्तान टाइम्स तथा टेलिग्राफ के लिये लंबे समय तक अंग्रेजी पत्रकारिता करने वाले डाॅ संतोष किड़ो और हिन्दी पटकथा लेखन के साथ फिल्म निर्माण से जुड़े और हिन्दी रंगमंच तथा क्षेत्रीय फिल्मों में अभिनय करने वाले राकेश रमण थे। सभी ने मोबाइल के नफा नुकसान पर गंभीरता से चर्चा की। इसका लाभ फिल्म पढ़ने वाले विद्यार्थियों को निश्चित मिलेगा।
विशिष्ट अतिथि महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डाॅ महुआ माझी ने भी मोबाइल को एक क्रांति माना है और सुशील अंकन के द्वारा बनाई गई मोबाइल फोन फिल्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
मुख्य अतिथि के पद से रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह ने कहा कि आज पत्रकारिता के क्षेत्र में भी मोबाइल फोन का जबरदस्त दखल है। आज रिपोर्टर समाचार संकलन के साथ मोबाइल फोन से फोटोग्राफी भी कर लेते हैं। साक्षात्कार और भाषण की रिकार्डिंग भी कर लेते हैं जो अत्यंत प्रामाणिक भी माना जाता है। इस तरह आने वाले समय में मोबाइल फोन के माध्यम से फिल्म निर्माण के साथ ही और भी बहुत कुछ संभावनाएं बनती हैं।