लेबनान के उप-प्रधानमंत्री सादेह अल-शमी ने बताया कि देश और केंद्रीय बैंक दिवालिया हो चुका है. लेबनान की मुद्रा लेबनानी लीरा के मुल्य में 90% की गिरावट आई है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि लेबनान की 82 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीब हो चुकी है.
वहीं, स्थिति पर बात करते हुए शमी ने सऊदी अरब के चैनल अल-अरबिया से कहा कि नुकसान की भरपाई का जिम्मा देश, केंद्रीय बैंक Banque du Liban, बैंकों और जमाकर्ताओं पर होगा.
उन्होंने कहा कि किसको कितनी भरपाई करनी होगी, इसका कोई प्रतिशत तय नहीं किया गया है.
लेबनानी उप-प्रधानमंत्री ने कहा, ‘दुर्भाग्य से, केंद्रीय बैंक और देश दिवालिया हो चुके हैं. हम इसका कोई हल निकालना चाहते हैं. ऐसा उन नीतियों के कारण हुआ है जो दशकों से चली आ रही हैं. और अगर हमने कुछ नहीं किया तो नुकसान बहुत अधिक होगा.
शमी ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा, ‘ये एक तथ्य है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. हम स्थिति से मुंह नहीं फेर सकते. हम सभी लोगों के लिए बैंक से पैसों की निकासी की व्यवस्था नहीं कर सकते. काश हम सामान्य स्थिति में होते.’
उन्होंने कहा कि लेबनान आर्थिक मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से संपर्क में है. शमी ने कहा, ‘हम आईएमएफ के साथ बातचीत कर रहे हैं. हम रोज उनसे बातचीत कर रहे हैं और वार्ता में काफी प्रगति भी हुई है.’
लेबनान दो साल से अधिक समय से आर्थिक संकट से जूझ रहा है.
लेबनान का ये संकट आधुनिक युग में दुनिया के सबसे गंभीर आर्थिक संकटों में से एक है.
ये संकट अक्टूबर 2019 में शुरू हुआ था.
देश की इस बदहाली के लिए सत्ताधारी राजनीतिक दल में फैले भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को जिम्मेदार बताया जा रहा है.
लेबनान की सरकार ने देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
वहां की मुद्रा में 90% की गिरावट आई है.
इस गिरावट के कारण देश में महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है और लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा.
लेबनान के अधिकतर लोग स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा से वंचित हो गए हैं.
ईंधन की कमी के कारण अधितकर समय तक लोगों को अंधेरे में रहना पड़ रहा है.
लेबनान आयात पर निर्भर रहने वाला देश है.
आर्थिक संकट के कारण देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी खाली है जिस कारण वो विदेशों से सामान आयात नहीं कर पा रहा है.
देश में बेरोजगारी बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है.
कोरोनोवायरस महामारी ने स्थिति को और बदतर कर दिया है.
साल 2020 में बेरूत के बंदरगाह पर एक बड़े विस्फोट से भी आर्थिक संकट और बदतर हो गया.
इस विस्फोट में 216 लोग मारे गए थे और हजारों घायल हुए थे.
इस विस्फोट से राजधानी बेरूत हिल उठी थी और उसका कुछ हिस्सा पूरी तरह तबाह हो गया था.