– मानव केन्द्रित नहीं, प्रकृति केन्द्रित समग्र विकास ही आगे की दिशा है|
– भोजन, स्वास्थ्य, सुरक्षा विकेन्द्रित आधार पर ही ठीक होगा|
– विकेन्द्रित पीठिका पर विविधता पूर्ण प्रयोग आगे के लिए जरुरी है|
– कृषि, गोपालन, वाणिज्य त्रिसूत्री आधार ही स्वावलंबी विकेन्द्रित राज्य –व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था के लिये आवश्यक है|
देश कोरोना संकट के दौर में है| देशवासियों ने कष्ट सहन किया है, धीरज का परिचय दिया है| समाज ने सरकार का साथ दिया है| इसके लिये सरकार, समाज दोनों बधाई के पात्र हैं| इस संकट में अर्थव्यवस्था भी घायल हुई है| वापस पटरी पर लाने मे कितना समय लगेगा यह देखना है|
कोरोना संकट से गुजरने में समाज को कुछ बातें फिर से याद आई है-
1) धन-दौलत, सुविधा, ऐश्वर्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है जीवन|
2) एक विषाणु परमाणु पर भी भारी पड़ सकता है|
3) मानव केन्द्रित विकास की संकल्पना और बाजारवाद अनिष्टकारी है|
4) भारत के नजरिये से विश्व एक बाजार नही है वह एक परिवार है|
5) विकास को मानव केन्द्रित से उठकर प्रकृति केन्द्रित होनी हैं|
6) जमीन, जंगल, जानवर के अनुकूल जीवन और जीविका ही हितकारी है|
7) पर्यावरण, पारिस्थितिकी अपने को सुधार सकती है बशर्ते कि मनुष्य गड़बड़ न करे|
इन बातों को ध्यान में रखकर भारतीय समाज जीवन की रचना हुई है| परिवार की चेतना विस्तार ही ग्राम, क्षेत्र, प्रदेश, देश-दुनिया, उसके परे भी सृष्टि का आधार चेतना का विस्तार है| उस पर परस्परानुकूल जीवन जीने का विज्ञान गठित हुआ| तदनुसार भारत शर्तों का नही संबंधों का समाज बनाs| सभी मे एक, और एक मे सभी का दर्शन प्रस्तुत हुआ|
भारतीय जीवन व्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार बना है – कृषि, गोपालन, वाणिज्य का समेकन तदनुकूल राज्य-व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, तकनीकी, प्रबंधन विधि आदि उत्कांत(evolve) हुई |प्रकृति में परमेश्वर का दर्शन हुआ|
भारतीय समाज व्यवस्था संचालन मे वाणिज्य की विशेष भूमिका रही है| भारतीय समाज, शर्तों पर नहीं संबंधों पर आधारित समाज है| केवल मनुष्य के बीच नहीं पशु-पक्षी,कीट-पतंग, वृक्ष, वनस्पति से भारतीय मन संबंध जोड़ता है| भगवान को भी बाल रूप में दर्शन कर लेता है| समदर्शी भाव का भारतीय चित्त पर संस्कार है| इन संबंधों का आधार है – स्वतिमैक्य एवं व्यापक अर्थों मे धर्म की अवधारणा| इसके कारण व्यापार पर कर्त्तव्य, दायित्व पक्ष निर्णायक रूप से हावी रहा है| येनकेन प्रकारेण सत्ता या धन प्राप्ति को समाज में आज भी अच्छा नही माना जाता| भारत के लोक मूल स्वभाव में ये विधि निषेध गहराई से अंकित है|
इस परंपरा पर हथियारवाद, सरकारवाद, बाजारवाद ने बहुत चोट पहुचाई है| पूंजी के प्राबल्य ने संवेदनशीलता, नैतिकता पर गंभीर चोट पहुंचाई है| बाजारवाद के विचार से तो पूंजी ही ब्रह्म है, मुनाफ़ा ही मूल्य है, जानवराना उपभोग ही मोक्ष है|
पिछले लगभग 40 वर्षों से बाजारवाद का हमला तेज हुआ| संवेदनशीलता, नैतिकता को चकनाचूर करने की कोशिश हुई|
पूतना के रूप मे विश्व व्यापार संगठन के नीति नियमों को, पेटेंट क़ानून को, सामाजिक एवं परिस्थिति की संकेतकों का उपयोग किया गया तकनीकी, के द्वारा मानवीय संबंधों की संवेदनशीलता की उष्मा को बुझाया जा रहा है|
तकनीकी के विधिनिषेध की बिना विचार किये स्वीकृति ने बेरोजगारी बढाया, पारीस्थितिकी, पर्यावरण के लिये विनाशकारी हुआ, शहरी-ग्रामीण, अमीर-गरीब, पुरुष-स्त्री, आदि अनेक स्तरों पर विषमता बढ़ी|
Post industrial society से knowledge based society बनने के चक्कर में हम तकनीकी का शिकार बन रहे है| विख्यात लेखक हेरारी ने भी पुस्तक Homosapianes में कहा कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, बायोटेक, जेनेटिक इंजीनियरिंग, के बेतहाशा और अनियंत्रित वैश्वीकरण से मानव के ही खारिज होने का ख़तरा बढ़ गया है| आखिर वैश्विक व्यवस्था को संचालित रखने के लिए कितने कूल मनुष्यों की जरुरत पड़ेगी सरीखे सवाल उठने लगे है|
मानवता और प्रकृति दोनों संकट में है| भारत के खुदरा व्यापार को बेमेल प्रतियोगिता मार रही है| सबसे ताजा चुनौती तो फेसबुक और जिओमार्ट से मिल रही है|
भारत मे खुदरा व्यापार में 5 से 10 करोड़ तक की संख्या लगी हुई है| खुदरा व्यापारियों ने मेट्रोमैन, वालमार्ट, मानसेंटो का आधा-अधूरा सामना किया है|
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