नई दिल्ली। महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य ने जीवन में दुख और कष्ट देने वाले बंधनों के बारे में जिक्र किया है. चाणक्य के अनुसार इंसान अपना पूरा जीवन दुख-कष्ट देने वाले बंधनों को दूर करने के प्रयास में लगा रहता है, लेकिन फिर वो इन चीजों से पार नहीं पाता है. आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक के माध्यम से जीवन में मिलने वाले दुख और कष्टों का उल्लेख किया है।
बन्धाय विषयाऽऽसक्तं मुक्त्यै निर्विषयं मनः।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ॥
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने मन को समस्त बंधनों और दुखों का एक मात्र कारण बताया है. वे कहते हैं कि मोक्ष-प्राप्ति के लिए ही भगवान जीवात्मा को मानव जीवन प्रदान करते हैं, लेकिन इंसान जीवन पाकर काम, क्रोध, लोभ, मद और मोह आदि में लिप्त हो जाता है. इससे इंसान अपने वास्तविक लक्ष्य से भटक जाता है. चाणक्य ने इन सबका एकमात्र कारण मन को माना है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मन ही इंसान को विषय-वासनाओं की ओर धकेलकर उसे पाप-कर्म की ओर अग्रसर करता है. मन के वश में रहने वाला मानव जीवन और मौत के चक्र से कभी मुक्त नहीं हो सकता.