रतन जोशी
श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1975 को 25-26 जून की मध्य रात्रि मे देश मे आपातकाल लागू कर दिया | रातों रात राष्ट्रपति से अनुमती ले कर इस फैसले पर मुहर भी लगवा ली गई | आपातकाल जे. पी. आन्दोलन का परिणाम माना जाता है | जे. पी. ने राम लीला मैदान मे 25 जून की शाम रैली मे यहाँ तक आह्वान कर दिया कि अलोकतांत्रिक आदेशों को सुरक्षा बल ना माने | इससे श्रीमती गांधी हिल गई | जीन राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर को पंडित नेहरू ने राज्यसभा मे भेजा था वे ही विद्रोही स्वर मे हुंकार भरने लगे और उनकी यह पंक्ति आन्दोलन का आधार बन गई सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
रातो रात देश के सभी विपक्षी दलों के नेताओ को जैल मे डाल दिया गया | ऐसा लगा कि देश को कैदखाना बना दिया गया है | गिरफ्तार लोगो पर मीसा और रासुका जैसे कानून लाद दिए गए | नेताओ को अलग अलग जैल मे रखा गया, ताकि वे आपस में ना मिल सके और कोई श्रीमती गांधी के खिलाफ कोई रणनीति ना बना सके |इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि विनोबा भावे ने इस अलोकतांत्रिक कदम को अनुशासन पर्व कहा था | प्रेस की आजादी पर पाबंदी लगा दी गई, सेंसरशिप लागू कर दी गई | सेंसरसीप कर उल्लंघन करने वाले अखबारो के प्रबंधकों और सम्पादकों को जैल मे डाल दिया गया | कई अखबारो ने संपादकीय कॉलम पर कालिख पोत कर आपातकाल के खिलाफ आवाज बुलंद की थी| इसका नतीज़ा भी उन्हें भोगना पड़ा था और जैल यात्रा करनी पड़ी थी | आपातकाल के विरोध में अपने शहर मे भी गतिविधियां बढ़ गई थी | कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए किसी को हजारीबाग जैल मे डाला गया तो किसी को दूसरे जैल मे | जिन्हें गिरफ्तार किया गया उन्हें 19 महीने जैल मे रखा गया | जमशेदपुर के एक नेता ने तो माफ़ी माँग ली जबकि एक नेता राजस्थान चले गए और एक नेता ने तो कसम खाई कि आपातकाल खत्म होने तक घर नहीं जाएंगे और बाहर रह कर काम करेंगे | अपन ने भी आपातकाल को भोगा और देखा समझा है | रोजाना बसंत सिनेमा चौक से गिरफ्तारी देने के लिए S. P. ऑफिस तक आंदोलनकारी जाते थे लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगती थी कब कौन गिरफ्तारी देने वाला है इससे समझा जा सकता है कि आंदोलनकारीयों का सूचना तंत्र कितना मजबूत था | जहा तक अपनी बात है रोज बसंत सिनेमा मोड़ तक जाते थे और आन्दोलनकारीयों के विदा होने के बाद घर लौटते थे | आपातकाल के दौरान संघ और जनसंघ के बड़े नेता लगातार दौरा करते रहे | एक दिन कैलाशपति मिश्र वहा पहुंच गए जहा अपन ट्यूशन पढ़ाते थे, बड़ी बड़ी मूंछें हाथ मे पान पराग का डिब्बा और 555 ब्रांड के सिगरेट का पैकेट था | जाहिर है उन्हें पहचानना मुश्किल था लेकिन जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो पता चला कि वे कैलाशजी है | उन्होंने जानना चाहा कि कैसी गतिविधियाँ चल रही है | इसके अलावा अपनी कहानी जुड़ी हुई है | आपातकाल लगने के 10-15 दिन पहले ही अपना विवाह हुआ था राजस्थान मे ही अपन को यह खबर भी मिली | यहा लौटने पर पता चला कि पुलिस खोज रही है | उस वक़्त खुफिया विभाग के लकड़ा जी ने बहुत सहयोग किया और अपन को समझाया कि नई नई शादी हुई है और आर्थिक परिस्थिति भी ठीक नहीं है इसलिए गिरफ्तारी से बचना जरूरी है | अपन भी चौकस हो गए | लकड़ा जी चाहते तो गिरफ्तारी करवा सकते थे क्योकि उन्हें अपन की सारी गतिविधियों की जानकारी थी|
उस समय आपातकाल के खिलाफ एक पत्रनुमा साहित्य आता था और उसे सुबह सुबह लोगो की दुकानों मे शटर के नीचे से डाल दिया जाता था और अपन भी इस काम मे लगे हुए थे | माना जाता है कि ये पर्चे सरयू राय तैयार करते थे | उस वक़्त के. एन. गोविंदाचार्य भी काफी सक्रिय थे वे लगातार लोकनायक जय प्रकाश के संपर्क मे रहते थे| जब भी कोई सलाह की जरूरत होती तो जय प्रकाश जी गोविंदाचार्य जी से ही राय मशविरा करते थे | एक बार आन्दोलन के दौरान लाठि चार्ज हुआ तो लाठि सीधे जय प्रकाश जी के माथे पर लगती, कोई भी अनहोनी हो सकती थी लेकिन नानाजी देशमुख ने लोकनायक जयप्रकाश को बचाने के लिए अपना हाथ आगे कर दिया, जिससे उनके हाथ की हड्डी टूट गई | कल्पना कीजिए कि किस तरह से लोकतंत्र को कुचलने की कोशिश की गई थी लेकिन सारे मंथन के बाद अमृत भी बाहर निकला और सारी विपक्षी दलों ने मिल कर जनता पार्टी का गठन किया | जब चुनाव हुए तो श्रीमती गांधी की पार्टी कांग्रेस को बुरी तरह शिकस्त मिली | अब फिर से क्या कोई आपातकाल लगाने की हिम्मत कर सकता है, आप भी सोचिए और अपने मन से पूछिए, क्यों ठीक कहा ना…..
(लेखक: वरिष्ठ पत्रकार हैं )