रांची। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय व प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची, क्षेत्रीय लोक संपर्क ब्यूरो, गुमला के संयुक्त तत्वावधान में “पोषण माह 2021: झारखंड के स्थानीय भोजन का महत्व” विषय पर आज सोमवार को एक सफल वेबिनार का आयोजन किया गया।
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए पत्र सूचना कार्यालय, रांची एवं प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची के अपर महानिदेशक श्री अरिमर्दन सिंह ने शामिल अतिथियों एवं वक्तागणों का स्वागत करते हुए कहा कि पोषण का सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से है। प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने इस पर कार्य किया है और उन्होंने माना कि हमारे आसपास जो प्राकृतिक रूप से खाने की चीजें मिलती हैं, वही हमारी सेहत के लिए अच्छी होती हैं। झारखंड का आदिवासी समाज भी अपने आसपास उगने वाले कंद, मूल, फल, साग सब्जियां आदि जैसे फुटकल, कंदा, बेंगा साग के जरिए अपनी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। हमें ध्यान इस बात पर देना होगा कि बुजुर्ग, गर्भवती माताएं, किशोरियां वह बाल – बच्चे कुपोषण से बचे रहें। ये सब लोग अच्छे पोषण से ही एक सफल समाज का निर्माण करेंगे।
वेबिनार की परिचर्चा में विषय प्रवेश कराते हुए क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्रीमती महविश रहमान ने कहा कि 8 मार्च, 2018 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजस्थान के झुंझुनू से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ किया गया पोषण अभियान एक ‘जन आंदोलन’ है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना एवं रांची स्थित पूर्वी अनुसंधान परिसर के शोधकर्ताओं ने झारखंड के स्थानीय आदिवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली पत्तेदार सब्जियों की 20 ऐसी प्रजातियों की पहचान की है, जो पौष्टिक गुणों से युक्त होने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ावा दे सकती हैं। विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर जनजातीय इलाकों में पायी जाने वाली ये पत्तेदार सब्जियां स्थानीय आदिवासियों के भोजन का अहम हिस्सा होती हैं।
वेबिनार की विशिष्ट वक्ता, जमशेदपुर विमेंस कॉलेज, गृह विज्ञान की विभागाध्यक्ष डॉ रमा सुब्रमणियन ने कहा हमारे स्वास्थ्य पर पूरे विश्व का स्वास्थ्य निर्भर करता है। अगर हम अच्छा खाएंगे और कुपोषण से दूर रहेंगे तो समाज में सफल योगदान दे सकेंगे। जो हम खाते हैं उससे हमारा वातावरण और हमारा मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि जो हम खाएं उससे किसी का नुकसान ना हो, हमें वातावरण को दूषित करने से भी बचना चाहिए इसलिए पैकेज या रेडी टू ईट खानों का कम प्रयोग करें, इसकी जगह हमें पारंपरिक खानों पर बल देना चाहिए। हमें खाने की बर्बादी से भी अपने आप को रोकना पड़ेगा। झारखंड में ट्राइबल आबादी ज्यादा है इसलिए आसपास की जमीन पर सब्जियां इत्यादि उगाना चाहिए जिससे हमारा पोषण हो सके। यहां के पारंपरिक खाने जैसे मडुवा रोटी, पीठा, मांड झोर, सहजन, तरह-तरह के साग, इन सब के प्रयोग से हम माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी को लोगों में पूरी कर सकते हैं। झारखंड में कई आदिवासी परिवार मांसाहारी आहार भी लेते हैं जैसे मछली क्रैब, चिकन तथा गोट मीट। यह भी प्रोटीन तथा कैल्शियम का अच्छा स्रोत है।
अतिथि वक्ता जमशेदपुर टिनप्लेट हॉस्पिटल की डाइटीशियन श्रीमती संचिता गुहा ने कहा कि झारखंड में खाद्य पदार्थों या साधन की कमी नहीं है बल्कि जानकारी और जागरूकता की कमी है। हम देखते हैं कि पारंपरिक व्यंजनों में बहुत कम मसालों का उपयोग होता है और यह लोग सरसों तेल का उपयोग करते हैं जो सेहत के लिए अच्छा होता है। झारखंड की कई कम्युनिटी में कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य संबंधी कमियां देखी गई है इसका एक मुख्य कारण है कि शहरीकरण तथा सांस्कृतिक बदलाव के चलते यहां के आदिवासी समाज का खाने पीने तथा पौष्टिक साग सब्जियों तथा अनाजों की खेती संबंधी पारंपरिक ज्ञान आगे की पीढ़ियों में ठीक से प्रचारित नहीं हुआ है। इसलिए यहां पर हिडेन हंगर जैसे कि आयरन तथा कैल्शियम की कमी काफी देखने को मिलती है।
ई प्रमाण पत्र का प्रदान
वेबिनार के सभी प्रतिभागियों द्वारा फीडबैक फॉर्म भरवाए गया जिससे सभी को ई-सर्टिफिकेट दिया गया।
वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्रीमती महविश रहमान ने किया और श्री ओंकार नाथ पाण्डेय ने सहयोग दिया।वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा प्रोफेसर, शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए।