खूंटी। प्रकृति की गोद में समाया झारखंड राज्य प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही कई राज समेटे हुए है। इन्हीं में एक है नागवंशी राजाओं के गौरवशाली इतिहास को दर्शाता गुमला जिले के सिसई प्रखंड का नवरत्नगढ़ किला। इसके भग्नावशेष हमेशा से ही लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। झारखंड ही नहीं दूसरे प्रदेशों से भी सैलानी यहां पहुंचते हैं लेकिन दुर्भाग्य कि देखरेख और संरक्षण के अभाव में नवरत्न गढ़ के ऐतिहासिक भग्नावशेष अब खत्म होने के कगार पर हैं।
उल्लेखनीय है कि 2009 में नवरत्न गढ़ को राष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल किया गया था और 2019 में इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया। स्थानीय लोगों के साथ ही वहां पहुंचे पर्यटक भी कहते हैं कि राष्ट्रीय धरोहर घोषित नागवंशी राजाओं के ऐतिहासिक वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला के इस किले को बचाने का शीघ्र प्रयास नहीं किया गया, तो कुछ वर्षों में इसका अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। स्थानीय निवासी बबलू गिरी कहते हैं कि नवरत्न गढ़ के किले को राष्ट्रीय धरोहर घोषित हुए तीन वर्ष गुजर गये लेकिन इसे बचाने के लिए न तो प्रशासन ने कदम उठाया और न ही जन प्रतिनिधियों ने कभी इसको लेकर आवाज बुलंद की। राष्ट्रीय धरोहर घेषित होने के बाद तीन वर्षों में सिर्फ एक दो बोर्ड लगाये गये हैं और एक निजी डेडाधारी निजी सुरक्षा गार्ड को तैनात कर दिया गया है। अब भी हर दिन सैकड़ों पर्यटक नवरत्न गढ़ पहुंचते हैं।
आखिर क्या है नवरत्न गढ़ किला
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, छठी-सातवीं शताब्दी में मध्य एवं पूर्वोत्तर भारत में तीन राजवंशों का प्रभुत्व था। बंगाल के पाल, झारखंड व ओडिशा में नागवंशी और और मध्य प्रदेश क्षेत्र में भोज वंश का प्रभुत्व था। नागवंशी राजा अपने राज्य और धर्म की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष करते रहे। उसी संघर्ष की परिणति थी कि नागवंशी अपनी राजधानी बार-बार बदलते रहे। रातू, जरियागढ़, सिसई के नगर व पालकोट के लालगढ़ में नागवंशियों की कृतियां बिखरी पड़ी है।
ऐतिहासिक तथ्यों से इस बात का साक्ष्य मिलता है कि छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं की सर्वोत्तम कृतियों में से एक नवरत्नगढ़ का किला है। नागवंश के 46वें राजवंश के राजा दुर्जनशाल ने इसे किले को 16वीं और 17वीं सदी के बीच बसाया था। इसे डोयसागढ़ भी कहा जाता है। स्थानीय लोगों से मिली जानकारी और ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार सोलवहीं-सत्रहवीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य का तेजी से विस्तार हो रहा था। नागवंशियों के ऊपर आक्रमण की नीतियां बनायी जा रही थी। तब नागवंशी राजा ने अपने धर्म-संस्कृति और साम्राज्य की रक्षा के लिए जंगलों से आच्छादित और पहाड़ों से घीरे इलाके में राजा दुर्जन शाल ने नवरत्न गढ़ की स्थापना की।
इस नगर के संस्थापक दुर्जनशाल की मृत्यु के बाद समय ने करवट लिया। परिस्थितियों में बदलाव आया और बाद में यहां वीरानी छाने लगी। दुर्जन शाल ने यहां पर छह मंजिला किला बनवाया था। समय के साथ संरक्षण के अभाव में दुर्जनशाल का किला ढहने लगा। अब यहां तीन मंजिला किलो के भग्नावशेष ही बचे हैं। किले की दीवारें काफी चौड़ी हैं। 30 इंच से अधिक मोटी दीवार वाले इस किले में रानी निवास, कचहरी घर, कमल सरोवर, भूल भुलैया का भी निर्माण कराया गया था। इन दीवारों पर बड़े ही करीने के साथ पशुओं के चित्र उकेरे गए थे।
पशुओं में घोड़ा और सिंह की आकृति चारों स्तंभों पर उकेरे गए थे, जो आज भी देखने को मिल रहे हैं। यहां के दीवारों पर नाग के भी चित्र देखने को मिलते हैं। नाग भोले शंकर के गले का आभूषण हैं और नागवंशियों इसे दीवारों में चित्रित कराया था। इस परिसर में और किला के मुख्यकक्ष में बड़ी-बड़ी मूर्तियां देखने को मिलती है। यहां के गढ़ के दुश्मनों से बचाव के लिए चारों ओर खाई का निर्माण किया गया था। किला में जाने के लिए एक रास्ता भी बनाया गया था।
नगर स्थित नवरत्न गढ़ में एक साथ राजपूत, मुगल नाग शैली के महल, रानवास, मठ मंदिर, तहखाने के भग्नावशेष आज भी नागवंशी राजाओं के गौरव को दर्शाते हैं। इतिहास के गर्भ में प्राचीन संस्कृति के अवशेष होने के कारण यहां के स्थानीय लोगों को हमेशा से गर्व महसूस होता रहा है। हालांकि, पुरातात्विक अवशेषों के अनुरक्षण, संरक्षण और संवर्द्धन की नई उम्मीदें तो जगी हैं, पर इस दिशा में सार्थक पहल कब होती है, देखना है।