उन्होंने कहा, ‘हमने दो करोड़ 82 लाख घरों को बिजली सप्लाई से जोड़ा है. इन घरों की भी पावर की खपत बढ़ी है. इस साल भारी बारिश की वजह से कोयला का डिस्पैच/सप्लाई कम रहा है. अक्टूबर के दूसरे या तीसरे हफ्ते तक देश में पावर की डिमांड ज्यादा रहेगी. इसके बाद हम स्थिति को काबू में कर लेंगे.
उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता है कि हम हर पावर प्लांट में पर्याप्त मात्रा में कोयला पहुंचाएं.
बिजली का खर्च हो सकता है और भारी
देश के कई राज्यों में पहले से महंगी बिजली और महंगी हो सकती है. दरअसल, देश की 70 फीसदी बिजली के उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल होता है, ऐसे में सप्लाई कम होने से बिजली की हाजिर कीमतें बढ़ गई हैं. रिपोर्ट के अनुसार क्रेडिट रेटिंग एजेंसी Crisil Ltd. के इंफ्रास्ट्रक्चर एडवाइज़री के डायरेक्टर प्रणव मास्टर ने कहा कि ‘जब तक सप्लाई में स्थिरता नहीं आती है, तब तक कुछ जगहों पर बिजली कटौती देखी जा सकती है, वहीं कुछ जगहों पर उपभोक्ताओं पर बिजली बिल का खर्चा बढ़ सकता है.’
उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं के लिए बिजली की कीमतों का असर कुछ महीनों बाद दिखेगा क्योंकि तब वितरण कंपनियों को इसकी अनुमति मिल जाएगी कि वो संकट में बढ़े लागत का खर्चा बिजली बिल बढ़ाकर निकाल लें.
क्यों कोयला सप्लाई है संकट में
रिपोर्ट के मुताबिक, कोयला सप्लाई में दिख रहे इस संकट के पीछे दो बड़ी चुनौतियां हैं, जिनका देश सामना कर रहा है. दरअसल, महामारी के बाद औद्योगिक गतिविधियों को तेजी मिली है. विनिर्माण क्षेत्र में चीजें आगे बढ़ रही हैं ऐसे में बिजली की मांग बढ़ी हैं. वहीं कोयले के आउटपुट यानी उत्पादन में गिरावट आई है. दरअसल, इस मॉनसून में असामान्य मात्रा में भारी बारिश ने कोयलों की खानों को भर दिया है, वहीं ट्रांसपोर्ट के रास्ते भी प्रभावित हुए हैं. ऐसे में कोयला उत्पादन और सप्लाई दोनों ही एक साथ प्रभावित हो गई हैं. अक्टूबर के अगले हफ्तों में स्थिति सुधरने की उम्मीद है, लेकिन इस दौरान जो कमी रही है, उसकी भरपाई फिर भी होनी मुश्किल है.
अगले छह महीनों तक हो सकती है दिक्कत
इंटरव्यू में ऊर्जा मंत्री राज कुमार सिंह ने कहा कि कोयला सप्लाई की समस्या अगले पांच-छह महीनों तक रह सकती है. उन्होंने कहा कि ‘मैं कह नहीं सकता कि चीजें अगले पांच से छह या चार से पांच महीनों में कब तक ठीक होंगी.’ उन्होंने कहा कि चूंकि मध्य अक्टूबर से मौसम थोड़ा ठंडा होने से हालात सुधर सकते हैं, लेकिन संकट पर कुछ भी कहना अनिश्चित होगा.