इसके बाद अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों के चलते कच्चे तेल की कीमतों में कमी आनी शुरू हो गई। क्रूड नवंबर के 80.64 डॉलर के मुकाबले दिसंबर में 73.30 डॉलर/प्रति बैरल रहा। देश में पेट्रोल-डीजल के दाम रोज तय होते हैं। ऐसे में जब दाम घटाने की बारी आई तो सरकारी कंपनियां लोगों को राहत देने के बजाए मुनाफाखोरी में जुट गईं।
रेटिंग एजेंसी इक्रा के वाइस प्रेसीडेंट और पेट्रोलियम मामलों के विशेषज्ञ प्रशांत वशिष्ठ कहते हैं- कीमतों की समीक्षा का उद्देश्य था कि क्रूड की कीमतों में तेजी आए तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े, क्रूड सस्ता हो तो दाम घटे। कई बार सियासी कारणों से दाम कम किए जाते हैं, जिसकी भरपाई कंपनियां बाद में करती हैं।
भारतीय बास्केट के कच्चे तेल के दाम
महीना | कच्चा तेल (कीमत डॉलर/बैरल) |
जुलाई | 73.54 |
अगस्त | 69.80 |
सितंबर | 73.13 |
अक्टूबर | 82.11 |
नवंबर | 80.64 |
दिसंबर | 73.30 |
कंपनियां हमसे ऐसे कमा रहीं मुनाफा
कच्चे तेल के सस्ते होने पर भी पेट्रोल-डीजल महंगे
अगस्त में कच्चा तेल 3.74 डॉलर/बैरल सस्ता हुआ तो कंपनियों ने पेट्रोल सिर्फ 65 पैसे सस्ता किया। वहीं, सितंबर में कच्चा तेल जब 3.33 डॉलर/ बैरल महंगा हुआ तो पेट्रोल 3.85 रु./लीटर महंगा कर दिया गया। नवंबर में कच्चे तेल की कीमतों में थोड़ी कमी आई, लेकिन पेट्रोल के दाम बढ़ते चले गए। पेट्रोल की कीमतों में आखिरी कटौती 5 सितंबर को मात्र 15 पैसे की हुई थी।
कंपनियों का मुनाफा 20 गुना तक बढ़ा
तेल कंपनियों आईओसीएल, बीपीसीएल और एचपीसीएल के सितंबर तिमाही के नतीजों को देखें तो इनका कर पूर्व मुनाफा प्री-कोविड लेवल से 20 गुना तक बढ़ा है। आईओसीएल का मुनाफा सितंबर-2019 में 395 करोड़ था, सितंबर 2021 में 8370 करोड़ रु. हो गया।