अहमदाबाद। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि स्वयंसेवक जो कुछ भी काम संघ में करते हैं, उसकी जानकारी वह अपने परिवार को भी दें। हम जो भी काम करते हैं वह हमारे घर में माता-बहनों के कार्य से कई गुना ज्यादा कष्टदायक है। दरअसल कुछ लोग घर पर संघ कार्य के बारे में कुछ नहीं बताते। यह सामाजिक स्थिति पिछले 2000 सालों से चले आ रहे हमारे रीति-रिवाजों के कारण है। हमारे यहां का महिला वर्ग हमेश घर में बंद रहा जबकि 2000 साल पहले ऐसा नहीं था। तब हमारे समाज का स्वर्ण युग था।
डॉ. भागवत रविवार को कर्णावती में ट्रांसस्टेडिया स्पोर्ट्स स्टेडियम में आयोजित स्वयंसेवकों के परिवार मिलन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। आज के कार्यक्रम में 5000 से ज्यादा स्वयंसेवक परिवार के साथ उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम को आयोजित करने का मुख्य कारण यह है कि हमें जो भी कार्य करना है वह मातृशक्ति के बिना हो ही नहीं सकता। हिंदू समाज को गुण संपन्न और संगठित होना चाहिए। उन्होंने ‘समाज’ को परिभाषित करते हुए कहा कि उसमें केवल पुरुष नहीं, समान पहचान के कारण जो लोग एकत्रित होते हैं, उसे समाज कहते हैं। उसमें समाज की पहचान बताने वाले आचरण के संस्कार होते हैं। संस्कार अपने कुटुंब से, परिवार से मिलते हैं जिसे सिखाने का काम हमारी मातृशक्ति करती है। कुटुंब के साथ रहने से संस्कार आते हैं जबकि आजकल एकल परिवार का चलन होने से तलाक के मामले बढ़े हैं क्योंकि बात-बात में झगडे हो जाते हैं। इस तरह के मामले शिक्षित और संपन्न वर्ग में अधिक हैं क्योंकि शिक्षा एवं संपन्नता के साथ-साथ उनमें अहंकार आने के परिणाम स्वरूप कुटुंब बिखर गया। इससे संस्कार बिखर गए, समाज भी बिखर गया क्योंकि समाज भी एक कुटुंब है।
डॉ. भागवत ने कहा कि हमको समाज का संगठन करना है, इसलिए अपने कार्य के बारे में अभी कार्यकर्ताओ को अपने-अपने घर पर सब बताना चाहिए। गृहस्थ है, तभी समाज है, गृहस्थ नहीं है तो समाज नहीं है क्योंकि आखिर समाज को चलाने का काम गृहस्थ ही करता है। अतः शाखा में संघ का काम करो, समाज में संघ का काम करो और अपने घर में भी संघ का काम करो क्योंकि आपका घर भी समाज का हिस्सा है। समाज के संगठित होने का मतलब है कुटुंब के संस्कारों का पक्का होना। मातृशक्ति समाज का आधा अंग है, इसलिए इसको भी प्रबुद्ध बनाना होगा जिसका प्रारंभ हम अपने घर से करें। हम अपने परिवार के कारण है और परिवार समाज के कारण है परन्तु हम अपने समाज के लिए क्या करते हैं। यदि हम समाज की चिंता नहीं करेंगे तो न परिवार टिकेगा और न हम टिकेंगे।
उन्होंने कहा कि परिवार के लोगों को नई पीढ़ी को समाज के लिए क्या करना चाहिए, यह सोचने के लिए संस्कारित करना होगा। नई पीढ़ी को बताना कुछ नहीं है कि ऐसा करो, वैसा करो, उसे सोचने दो, आज की पीढ़ी सक्षम है। वह जब प्रश्न करेगी तो अपने धर्म और संस्कृति के बारे में बताना पड़ेगा। इसके बाद नई पीढ़ी निर्णय करेगी क्योंकि वह उचित निर्णय कर सकती है। वही बताएगी कि अपने घर में यह ठीक नहीं है, यह होना चाहिए। समाज चलेगा तो देश चलेगा और समाज का घटक परिवार है। परिवार के लिए रोटी, कपडा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, अतिथि सत्कार और संस्कार ये गृहस्थ जीवन के सात कर्तव्य हैं जिन्हें हमें ठीक से करना है। अपने उपभोग को संयमित करके ही हम इस कर्तव्य का पालन कर सकते हैं और तभी राष्ट्र की उन्नति संभव है।
कार्यक्रम में मंच पर सरसंघचालक डॉ. भागवत के साथ गुजरात प्रांत संघचालक डॉ. भरतभाई पटेल और कर्णावती महानगर संघचालक महेशभाई परीख थे। कार्यक्रम में संघ के पूर्व अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख मधुभाई कुलकर्णी, अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख रमेशजी पापा सहित कई क्षेत्रीय और प्रांत के पदाधिकारी उपस्थित रहे।