नई दिल्ली। आखिर क्या मिला दंगाइयों को किसी का घर बार उजाड़ कर। किसी का मकान जल गया, तो किसी का अपना मारा गया। इस हिंसा ने हर किसी से कुछ न कुछ छीना ही है। इस बार लोगों पर क्या खून सवार था कि हर तरफ सिर्फ पत्थर, आग और डर का माहौल ही दिख रहा था। दंगाइयों की हरकतों का शिकार हुए लोगों की आंखें बरसों के सपनों को राख होते देख आज भी छलक उठती हैं।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा के पीड़ितों से ‘हिन्दुस्थान समाचार’ ने जब बात की तो आपबीती बताते हुए हिंसा प्रभावित लोगों ने अपना दर्द बयां किया। यमुना विहार क्षेत्र के रहने वाले नवनीत गुप्ता एक मेडिकल इंस्टीट्यूट के मालिक हैं। उन्होंने बताया कि इलाके में करीब 80 फीसदी आबादी हिन्दुओं की है और मुस्लिम भी यहां रहते हैं। पहले यहां इस प्रकार का दंगा कभी नहीं भड़का। जाने इस बार लोगों पर क्या खून सवार था कि हर तरफ सिर्फ पत्थर, आग और डर का माहौल ही दिख रहा था। यह बताते हुए उनकी आंखों में जैसे हिंसक घटनाओं की तस्वीर उभर आई और उन्होंने आंखों देखा हाल बताते हुए कहा कि सोमवार दोपहर 12 बजे के करीब एक हजार लोगों की भीड़ आ धमकी। सभी अपने-अपने हाथों में देसी बम, पेट्रोल बम, लाठी-डंडे और बंदूक लिए थे। भीड़ ने पहले शराब की एक दुकान लूटी, फिर आस-पास खड़ी बाइकों को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद हिंसक भीड़ ने दुकानें जलानी शुरू की। इस दौरान उग्र लोगों ने मेरे इंस्टीट्यूट के प्रवेश द्वार को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि जब इन जेहादी मानसिकता के लोगों की भीड़ इंस्टीट्यूट के पास पहुंची तो अंदर बैठे करीब 50-60 बच्चे सहम गए। इनमें 12 बच्चे मुस्लिम थे। गुप्ता ने बताया कि भीड़ की मानसिकता सिर्फ हिन्दू लोगों को नुकसान पहुंचाने की थी। इसीलिए मेरे घर के पीछे वाले मदरसे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया। उन्होंने बताया कि हिंसक भीड़ में महिलाएं भी शामिल थीं जो बुरका नहीं पहने थीं और जीन्स-टीशर्ट पहनकर लोगों पर पत्थर फेंकने में लगी थीं।
हिंसा में घायल संजीव कश्यप ने बताया कि वह जब बाजार से अपने घर भजनपुरा जा रहे थे, तभी रास्ते में दंगाइयों ने उन पर हमला किया जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गए। हालांकि उनसे ना तो किसी की बहस हुई थी और ना ही कोई झगड़ा। बस वो लोगों से नाम पूछते या फिर पहचान कर हमला कर रहे थे। घायल पार्थ ने बताया कि जब वह ट्यूशन पढ़कर लौट रहा था तो उसने देखा कि हिंसक भीड़ पेट्रोल पंप को आग लगा रही थी। मकानों पर पत्थर फेंकने का क्रम चल रहा था। राम सिंह ने बताया कि मेरी आंखों के सामने भीड़ कुछ लोगों को बुरी तरह से पीट रही थी। भीड़ के गुस्से का शिकार मैं भी हुआ।
धोबी का काम करके परिवार का भरण-पोषण करने वाले बिहार के कमलेश ने बताया कि वह सालों से चांदबाग में रह रहा है। इलाके में उसकी कपड़े प्रेस करने की दुकान थी, जिसे भीड़ ने जला दिया। कमलेश यह भी बताते हैं कि दंगाइयों ने उसके बरसों के सपनों को राख कर दिया, यह बताते हुए उनकी आंखें छलक आईं।
एक अन्य पीड़ित कमलेश शर्मा का कहना है कि 24 फरवरी को मेरी शांत दिल्ली को कुछ उग्र लोगों ने जला डाला। मैं भी इस भीड़ का शिकार बना। उसने बताया कि उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने भीड़ से पूछा कि तोड़फोड़ और हिंसा क्यों कर रहे हो। फिर इसके बाद पहले मुझे पीटा, उसके बाद जब मैं भागने लगा तो मुझे गोली मार दी।
उत्तराखंड के रुड़की निवासी राहुल यमुना विहार इलाके में रेस्टोरेंट चलाते हैं। उन्होंने बताया कि जब दंगा हो रहा था तो उन्होंने भीड़ को रोकना चाहा। इस पर करीब 50-60 लोगों ने इकट्ठा होकर पहले उसे भद्दी-भद्दी गालियां दी फिर उसकी दुकान में तोड़फोड़ की। महिपालपुर की रहने वाली शीला सिंह ने कपिल मिश्रा और दंगे की साजिश रचने वाले ताहिर हुसैन को एक ही तराजू में रखने की बात को गलत बताया। उन्होंने कहा कि अगर कोई कहे कि कुछ लोगों की वजह से सैकड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं इसलिए सड़क पर से लोगों को हटाना जरूरी है तो ताहिर हुसैन जैसों से उसकी तुलना कैसे की जा सकती है। महिपालपुर निवासी अनीता शेहरावत ने कहा कि देशभर में सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शन की आग जब उत्तर प्रदेश में पहुंची थी तो वहां की योगी सरकार ने दंगाइयों की संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया, जिसके बाद वहां दंगा रूक गया। ऐसा ही मजबूत कदम दिल्ली की केजरीवाल सरकार क्यों नहीं उठाती, जिससे लोगों का भला हो।