नई दिल्ली। ‘जहांगीर’ नाम भारत के इतिहास का वो नाम है जिसे केवल क्रूर मुगल शासक के तौर पर ही नहीं बल्कि ‘न्याय की जंजीर’ के लिए भी याद किया जाता है. जहांगीर का असली नाम सलीम है और वे मुगल शासक अकबर के बड़े बेटे थे. सलीम से पहले अकबर की कोई भी संतान जीवित नहीं रहती थी. इस बात से दुखी अकबर ने कई मिन्नतों और मन्नतों के बाद सलीम को पाया. अकबर ने सलीम का नाम शेख सलीम चिश्ती के नाम पर रखा था. अकबर के बाद जब सलीम ने तख्त संभाला, तब उन्हें जहांगीर की उपाधि दी गई. जहांगीर का मतलब है ‘दुनिया जीतने वाला’.
अपने जन्म की भविष्यवाणी करने वाले की मौत का कारण बने सलीम
पार्वती शर्मा ने जहांगीर पर अपनी किताब ‘एन इंटीमेट पोट्रेट ऑफ ए ग्रेट मुगल जहांगीर’ में एक वाकये का जिक्र किया है. अकबर ने पीर सलीम चिश्ती से अपने होने वाले बेटों और शेख सलीम चिश्ती की मौत के दिन के बारे में पूछा था. इसपर सलीम चिश्ती ने जवाब दिया ‘जब शहजाद सलीम (जहांगीर) किसी चीज को पहली बार याद कर उसे दोहराएंगे, इसके बाद मेरी मौत हो जाएगी.’ और शेख सलीम चिश्ती की मौत ऐसे ही हुई. अकबर ने कई दिनों तक सलीम को तालीम से दूर रखा. एक दिन सलीम ने किसी की कही हुई दो पंक्तियां दोहरा दीं. उस दिन के बाद से शेख सलीम चिश्ती की तबीयत नासाज होने लगी और कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई.
जहांगीर की क्रूरता
जहांगीर की क्रूरता किसे नहीं पता है. एलिसन बैंक्स फ़िडली ने अपनी किताब ‘नूरजहां: एंपरेस ऑफ मुगल इंडिया’ में इसका पूरा वर्णन किया है. 17 अक्तूबर, 1605 को अकबर की मौत के बाद जहांगीर ने मुगल तख्त पर आसीन हुए. कहा जाता है कि जहांगीर कभी तो बहुत दरियादिल होते और कभी बेहद खूंखार. एलिसन लिखते हैं- जहांगीर ने अपने एक नौकर का अंगूठा सिर्फ इसलिए कटवा दिया था, क्योंकि उसने नदी के किनारे लगे चंपा के कुछ पेड़ काट दिए थे. उसने नूरजहां की एक कनीज को गड्ढ़े में आधा गड़वा दिया था. उसका कसूर था कि उसे एक किन्नर का चुंबन लेते पकड़ लिया गया था. एक आदमी को उसके पिता की हत्या करने की सजा देते हुए जहांगीर ने उसे एक हाथी की पिछली टांग से बंधवा कर कई मीलों तक खिंचवाया था.”
बेटे की आंखें फोड़ दी
जहांगीर ने अपने बेटे खुसरो के साथ भी बर्बरता से पेश आए थे. खुसरों ने जब अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत की थी तब जंग में वे हार गए. इसके बाद जहांगीर ने खुसरो की आंखें फोड़ दी थी. हालांकि जहांगीर ने खुसरो की आंखों का इलाज भी करवाया पर उसकी आंखों की रोशनी कभी वापस नहीं आई.
दिन में 20 प्याले शराब
जहांगीर रंगीन मिजाजी थे, जिनके शान-ओ-शौकत के चर्चे आम थे. औरतों और शराब के उनके शौक बहुत मशहूर थे. उनकी आत्मकथा ‘तुज़ूके-जहांगीरी’ में जहांगीर के नशापान का ब्यौरा मौजूद है. इसके मुताबिक एक समय में जहांगीर दिन में शराब के 20 प्याले पीते थे, 14 दिन में और 6 रात में. बाद में उसे घटा कर उन्होंने एक दिन में 6 प्याले पर ले आए थे. पार्वती शर्मा बताती हैं, “वे खुद को ही कहते हैं कि वे जब 18 साल के थे तब एक दफा जब वे शिकार पर गए तब किसी ने कहा कि आप थोड़ी शराब पीजिए, आपकी थकान चली जाएगी. उन्होंने पी और उन्हें वो बहुत पसंद आई. यहीं से उन्हें शराब पीने की आदत लग गई. जहांगीर के दोनों भाइयों को भी शराब की लत लग गई और उनकी मौत शराब की वजह से ही हुई.”
सिक्खों के 5वें गुरु अर्जन देव का कत्ल
1605 ई. में जहांगीर के बड़े बेटे खुसरो का बगावत में साथ देने के लिए जहांगीर ने सिक्खों के 5वें गुरु अर्जन देव को फांसी पर चढ़ा दिया था. जाने-माने इतिहासकार मुनी लाल जहांगीर की जीवनी में इसका वर्णन है. ‘गुरु अर्जन देव पर बौखलाए जहांगीर उनके पास गए और कहा कि आप एक संत हैं और पाक शख्स हैं. आपके लिए अमीर और गरीब दोनों बराबर हैं तब आपने मेरे दुश्मन खुसरो को पैसे क्यों दिए. इसपर गुरु अर्जन देव ने मैंने उसे पैसे इसलिए दिए क्योंकि वो सफर पर जा रहा था, इसलिए नहीं कि वो आपका विरोधी था. अगर मैं ऐसा नहीं करता तो लोग मुझपर धिक्कारते और कहते कि मैंने आपके डर के कारण ऐसा किया और मैं गुरु नानक का शिष्य कहलाने के लायक नहीं रहता.’ जहांगीर ने गुरु अर्जन देव की बात नहीं सुनी और दो दिन बाद वे उन्हें गिरफ्तार कर काल कोठरी में डाल दिया. तीन दिन बाद उन्हें रावी के तट पर ले जाकर उनका कत्ल करवा दिया.
क्या है न्याय की जंजीर
जहांगीर का नाम उनकी कुछ अच्छी बातों के लिए भी याद किया जाता है. वे ‘न्याय की जंजीर’ के लिए मशहूर हैं. उन्होंने आगरे के किले शाहबुर्ज और यमुना तट पर मौजूद पत्थर के खंबे में एक सोने की जंजीर बंधवाई थी जिसमें लगभग 60 घंटियां भी थी. इसे ही आगे चलकर न्याय की जंजीर के नाम से जाना गया. इस जंजीर के जरिए फरियादी मुश्किल समय में अपनी गुहार रखता था.
विधवा नूरजहां से जहांगीर की मोहब्बत
गद्दी संभालने के बाद उन्होंने बादशाह की जिम्मेदारियों को संभाला और साम्राज्य का विस्तार किया. उन्होंने कांगड़ा और किश्वर के अलावा बंगाल तक अपने मुगल साम्राज्य का विस्तार किया. जहांगीर ने शासक के तौर पर कई नए बदलाव किए. उन्होंने नाक, हाथ, कान काटने की सजा रद्द करवाई.
नूरजहां के लिए जहांगीर का प्रेम भी किताबों और किस्सों में आज भी ताजा है. नूरजहां का असली नाम मेहरुन्निसा था, जिसकी खूबसूरती पर जहांगीर फिदा हो गए थे. नूरजहां विधवा थी, लेकिन जहांगीर उनकी मोहब्बत में कुछ ऐसे दीवाने हुए कि बाद में उन्होंने नूरजहां से शादी कर ली.
जब हुआ था जहांगीर का अपहरण
जहांगीर के शासनकाल की एक और दिलचस्प घटना अनुभूति मौर्य ने बताया है. जहांगीर के एक सिपहसालार महाबत खां ने जहांगीर का अपहरण कर लिया था. महाबत खां ने बादशाह को उनकी गद्दी से उठाकर अपने पास रखा, हाथी पर बिठाया और उनकी मान-मर्यादा सब बरकरार रखा. इस दौरान जहांगीर अपने सिंहासन पर नहीं पर सभी लोग उनसे अदब से पेश आ रहे थे. महाबत खां और जहांगीर के बीच बातें भी बड़े प्यार से होती है. महाबत खां जहांगीर से कहते हैं कि आप बुरी संगत में हैं और मैं आपको बुरी संगत से बचा रहा हूं.
जहांगीर के आखिरी दिन
इस अपहरण के बाद नूरजहां की मदद से जहांगीर कैद से बाहर आ जाते हैं पर उनकी तबीयत खराब होनी शुरू हो जाती है. 28 अक्टूबर 1627 को उन्होंने 58 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. अनुभूति मौर्य बताती हैं ‘किताबों में मौजूद वर्णन के मुताबिक जहांगीर को दमा की बीमारी थी. उत्तर भारत की धूल और गर्मी उनके सहन से बाहर थी. इससे बचने के लिए जहांगीर अपनी जिंदगी के आखिरी सालों में अक्सर कश्मीर चले गए जहां नूरजहां और जहांगीर के दोनों दामाद भी साथ हो लिए. चंगेजघट्टी नाम की जगह पर जहांगीर ने अपनी अंतिम सांसे ली.’