इचाक। प्रखंड में गुरुवार की सुबह सुहागिनों ने अपने सुहाग के लंबी आयु एवं रक्षा के लिए वट सावित्री व्रत रखा। सुहागिनों ने सोलह सिंगार कर वट वृक्ष तथा सत्यवान और सावित्री की पूजा की।हिन्दू धर्म के अनुसार यह त्योहार विवाहित स्त्रियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को किया जाता है। प्रखण्ड के सुहागिनों ने वट वृक्ष मे सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा कि। साथ ही वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल भी चढ़ाया गया। इसके बाद सुहागिनों द्वारा कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए परिक्रमा भी की गयी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को ऐसा करने से रोकने के लिए तीन वरदान दिये। एक वरदान में सावित्री ने मांगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने। यमराज ने ऐसा ही होगा कह दिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं पतिव्रत स्त्री हूं और बिना पति के संतान कैसे संभव है। सावित्री की बात सुनकर यमराज को अपनी भूल समझ में आ गयी कि,वह गलती से सत्यवान के प्राण वापस करने का वरदान दे चुके हैं।
इसके बाद यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सावित्री को सौंप दिये। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आयी और चने को मुंह में रखकर सत्यवान के मुंह में फूंक दिया। इससे सत्यवान जीवित हो गया। तब से ही हिंदू धर्म में पति के जीवन रक्षार्थ और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए वट सावित्री का प्रत्येक वर्ष सुहागिन महिलाओं के द्वारा विधिवत पूजन किया जाता है।