रांची। 1970 के दशक में चंबल घाटी को डाकुओं की भीषण समस्या से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आदरणीय सुब्बाराव जी हमारे बीच नहीं रहे। युवाओं के बीच रमने वाले सुब्बाराव जी का सान्निध्य और स्नेह का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ है। अब वे हमारे लिए स्मृति शेष रह गए हैं। देश और समाज की अपूरणीय क्षति हुई हैं। हम उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
आदरणीय सुब्बाराव जी ने गांधीजी के धर्म लक्षण में जोड़े गए 11 वें निर्भयता को जीकर दिखाया है। चंबल क्षेत्र में 1960-70 के काल में बागियों की भीषण समस्या थी। उन बागियों को फिर मूल धारा में लाने के लिए चंबल के बीहड़ों में केवल ईश्वर की शक्ति के बल पर सुब्बाराव जी घूमे और सैकड़ों डाकुओं को आत्मसमर्पण कराने में सफल हुए। उनके युवा सहयोगी रहे श्री पी.वी. राजगोपाल के मुंह से किस्से सुनने का भी अवसर मुझे मिला है। अनेक बार बागियों से मार खाकर भी कदम पीछे न लेने वाले राजगोपाल जी जैसे सहयोगी सुब्बाराव जी को मिले, यह उनके संगठन कौशल का ही परिणाम था। डाकुओं के आत्मसमर्पण के उनके कार्य से प्रभावित होकर लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी चंबल में गए।
90 वर्ष से अधिक आयु के सुब्बाराव जी को युवाओं में रमते देख करण एक अलग ही सुखानुभूति प्रदान करता था और हमें भी वैसा करने की प्रेरणा मिलती रहती थी। आज वे हमारे बीच नहीं रहे। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके हजारों लाखों साथियों, सहयोगियों और अनुयायियों को दुख से उबरने की शक्ति प्रदान करे, यही प्रार्थना करता हूँ।