रांची: आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 19 और 20 नवंबर को रांची विश्वविद्यालय स्थित आर्यभट्ट सभागार में किया गया। संगोष्ठी का विषय था। “जनजातीय देवलोक और धार्मिक परंपराएं”। दूसरे दिन के कार्यक्रम को चार सत्रों में बांटा गया पहले सत्र के संचालक रविशंकर रहे जो कि सभ्यता एवं अध्ययन केंद्र के संचालक हैं। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में डॉ आनंद वर्धन, डॉ अशोक वाष्णेय, शांति सिद्धू ने अपनी बात रखी वक्ताओं ने जनजातीय समाज, उनकी संस्कृति व नियमों पर अपने विचार रखें संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए डॉ आनंद वर्धन ने अगस्त्य ऋषि, तमिल संस्कृति व जनजाति समाज के ऊपर प्रकाश डाला। उन्होंने श्रोतागण को इस बात से अवगत कराया कि झारखंड में ही आयुर्वेद की उत्पत्ति हुई है साथ ही हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले शिव- पार्वती जी का संबंध एवं उनका जनजातीय समाज से जुड़ाव के बारे में अवगत कराया। शिवजी को झारखंडीनाथ भी कहा जाता है। डॉ अशोक कुमार सिंह ने कहा कि हमें एक्सक्लूजन थ्योरी से इंक्लूजन थ्योरी तक पहुंचना है। ऐसे संगोष्ठी ही आगे चलकर युवाओं को समाज के प्रति प्रेरित करेगी अपनी बात को रखते हुए शांति सिद्धू ने “हो” जाती के संस्कार पर प्रकाश डाला उन्होंने शादी के संस्कार से अवगत कराया ! दूसरे सत्र के संचालक धीरेंद्र कुमार थे और वक्ता के रूप में सुधीर प्जया ने सत्र की शुरुआत की उन्होंने भी बिरजिया जाति के संबंध में चर्चा की !और दहेज जैसी प्रथा उनके समाज में नहीं देखी जाती है ! साथ ही साथ टाना भगत समुदाय से जत्रा टाना भगत के वंशज भी मौजूद थे मौजूद थे उन्होंने आदिवासियों स्वतंत्रता सेनानियों के गुण गाए !संगोष्ठी में उपस्थित रांची की मेयर आशा लकड़ा जी भी अतिथि के रूप में उपस्थित थे,जिन्होंने अपने वक्तव्य से कई सामाजिक व उनसे जुड़ी प्राकृतिक चिंताओं का वर्णन किया! भारत में करीब 12 करोड़ जनजातीय समाज के लोग मौजूद हैं किंतु हाइब्रिड खाने के चलते आज ऐसी स्थिति हो गई है कि हम सभी हाइब्रिड सोच रखने लगे हैं हमें एक ही परंपरागत समाज में एकजुट होकर आगे बढ़ने की जरूरत है। तीसरे सत्र के संचालक प्रदीप मुंडा जी थे तथा श्री देवव्रत पाहन इस सत्र के अतिथि थे! इस सत्र में कोल ,कोरा, मुंडा जनजाति से आए लोगों ने गीत गाकर अपनी प्रस्तुति पेश की। चतुर्थ सत्र की संचालन दीपक राणा ने झारखंड का गुणगान किया। इस सत्र के मुख्य अतिथि दिवाकर मींज और कड़िया या मुंडा थे। संगोष्ठी में आए अतिथियों को स्मृति चिन्ह और गमछा देखर पुरस्कृत किया गया। समाजसेवी प्रमोद जयसवाल ने अपने वक्तव्य से कार्यक्रम का समापन किया।