रांची। जमशेदपुर वर्कर्स महाविद्यालय के संस्कृत विभाग ने रविवार को ‘कालिदास साहित्य में लोकादर्श एवं मानव मूल्य’ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इसमें महाविद्यालय, विश्वविद्यालय और देश के विभिन्न भागों से विद्वानों एवं शोधार्थियों ने हिस्सा लिया।
कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो गंगाधर पण्डा ने कहा कि महाकवि कालिदास सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं। उनकी कृतियों की प्रासंगिकता वर्तमान सन्दर्भों में बहुत अधिक हैं। पण्डा ने कहा कि कालिदास साहित्य में प्रतिपादित राजधर्म वर्तमान समय के लिए अनुकरणीय है। कालिदास साहित्य के अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि राजतन्त्र की प्रधानता रहने पर भी तत्कालीन राजा प्रजावत्सल होते थे, लोकाराधक थे। दिलीप, रघु, अज, राम, अतिथि, दुष्यन्त आदि इस दृष्टि से आदर्श हैं।
उन्होंने कहा कि महाकवि कालिदास के अनुसार राजा को प्रजा को बुरे मार्ग पर जाने से रोकना चाहिए, अच्छा काम करने को प्रोत्साहित करना चाहिए, प्रजाजनों के लिए लिए अन्न, वस्त्र, धन तथा शिक्षा आदि का समुचित प्रबन्ध करना चाहिए। वह राजा राजा कहलाने का अधिकारी नहीं है को लोकाराधक न हो, प्रजावत्सल न हो।
विश्वविद्यालय के आचार्य एवं अध्यक्ष तथा संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि सत्यं शिवं सुन्दरम् की उद्भावना से आप्यायित कालिदास का साहित्य मानवजीवन के समस्त शाश्वत सत्य मूल्यों के उपस्थापन में समर्थ होने के कारण ही शताब्दियों से लोकानुरंजन एवं विद्वन्मनः परितर्पण करते हुए युगानुरूप अर्थ-विच्छितियाँ संधारण करती हुई स्वयं को सार्थक एवं प्रासंगिक बनाने के वैशिष्ट्य से संवलित हैं। कालिदास ने धन को लोकवृत्ति का साधन तो माना है, लेकिन यश को उससे भी ऊपर स्थान दिया है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता डा० धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने कहा कि नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से सम्पन्न महाकवि कालिदास ऐसे ही कवि हैं जिनकी कविता लोकजिह्वा पर नृत्य करती है। कालिदास की प्रसिद्धि उनकी लोकदृष्टि के कारण समाहित है। वे लोक कवि हैं। कालिदास की यही लोकसम्पृक्ति ही उनको अन्य कवियों से श्रेष्ठ बनाती है। डा० द्विवेदी ने कहा कि महाकवि कालिदास का स्मरण करते ही भारतीय दृष्टि और सृष्टि की मानक परम्परा का अत्यन्त प्रोज्वल, सार्थक, साभिप्राय एवं दूरदर्शी रूप अपनी सर्वांगपूर्णता में दृष्टिगोचर होता है। कालिदास की दृष्टि में लोकजीवन की सिद्धि का मार्ग तप है।
डा० द्विवेदी ने कहा कि वृक्षों-वनस्पतियों के प्रति हमारा क्या आचरण होना चाहिए, इसका अनुकरणीय संकेत कालिदास ने अपने काव्यों में दिया है। महाकवि ने यह संकेत किया है कि वनस्पतियाँ हमारे जीवन का अभिन्न अङ्ग हैं। उनके बिना मानवजीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। भोगों के वशीभूत होकर उनका अनावश्यक कर्तन विपत्तियों को आमन्त्रित करना है। महाकवि कालिदास ने अपनी दूरदृष्टि से ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया है जो प्रकृति के प्रति संवेदनशील होने की प्रेरणा देता है। महाकवि कालिदास ने वैभव की चरम सीमा का वर्णन करते हुए भी त्याग को महत्त्व दिया है जो अत्यन्त प्रासंगिक है। डा० द्विवेदी ने कहा भारतीय संस्कृति के विविध आयामों का अगर एक साथ दर्शन करना हो तो कालिदास के शरण में जाना होगा। डा० द्विवेदी ने कहा कि लौकिक आदर्शों और मानवीय मूल्यों की स्थापना का महाकवि कालिदास का उद्यम श्लाघनीय, अनुकरणीय एवं स्तुत्य है। कालिदास की कविता चिरन्तन सत्य के प्रकाश की अभिव्यक्ति है, जिसके आलोक में मनुष्य पूर्ण मानवता प्राप्त कर सकता है।
आगत अतिथियों का स्वागत जमशेदपुर वर्कर्स महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डा० सत्यप्रिय महालिक ने किया। उन्होंने कालिदास साहित्य का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका साहित्य वर्तमान समय में प्रासंगिक है। विषय प्रवेश जमशेदपुर वर्कर्स महाविद्यालय की संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी की संयोजिका डा० लाडली कुमारी ने कराया। उन्होंने कहा कि कालिदास ने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर अपनी बात कही है, जिसका अध्ययन और अनुकरण कर वर्तमान समाज लाभान्वित हो सकता है। अतिथियों का परिचय डा० अर्चना कुमारी गुप्ता तथा कुमारी प्रियंका ने करवाया। योश्री ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया और दानगी सोरेन ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।