पाकुड़। लाॅक डाउन के चलते बेरोजगार हो चुका इंजीनियर बिट्टू कुमार दास ने अपनी लगन व मेहनत के बल पर आज न सिर्फ एक सफल उद्यमी बल्कि रोजगार देने वाले की पहचान बना ली है। महेशपुर प्रखंड के सोनारपाड़ा गांव के बिट्टू बीटेक करने के बाद पश्चिम बंगाल के एक नीजी संस्थान मल्लारपुर पाॅलिटेक्निक काॅलेज में बतौर शिक्षक कार्यरत थे। वहाँ नियमित वेतन तक नहीं मिल पाता था।पर्याप्त आय न होने के चलते वे नौकरी छोड़ अपने गाँव लौट गए।दिन रात बेरोजगारी सता रही थी।क्योंकि पर्याप्त खेती भी नहीं थी। उन्होंने अपना कोई रोजगार खड़ा करने का मन बना लिया।लेकिन क्या और कैसे करना इस उधेड़बुन में कोई दो माह निकल गए। लेकिन रास्ता निकालने की जुगत में लगे रहे।आखिरकार नवम्बर 2019 में अपने गाँव में ही बायोफ्लाॅक विधि से मत्स्य उत्पादन करना शुरू किया।एक साल के अंदर कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली।आज न सिर्फ लाख रुपए महीने की कमाई हो रही है, तकरीबन तीन दर्जन युवाओं को भी अपने साथ जोड़ कर उन्हें भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया।
बिट्टू बताते हैं कि मछली पालन के लिए तो तालाब का होना जरूरी है।जो उनके पास नहीं है।अपने गाँव के अलावा आसपास के दर्जनों गाँवों में जिनके पास तालाब हैं से मिला।लेकिन कोई किराए पर भी देने को तैयार नहीं हुआ।सरकारी तालाब भी डाक हो चुके थे। इसके लिए इंटरनेट खंगालना शुरू किया।जिसमें पाया कि बायोफ्लाॅक विधि से मत्स्य उत्पादन के लिए तालाब का होना जरूरी नहीं है।टैंक बनाकर इस काम को बखूबी अंजाम दिया जा सकता है।फिर सवाल था बायोफ्लाॅक विधि से टैंक तैयार कैसे किया जाए।इसके लिए कोलकाता जाकर बायोफ्लाॅक विधि से तैयार प्लांट का अध्ययन किया।लौट कर किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर तकरीबन एक लाख रुपए की लागत से एक टैंक बनवाया और शुरुआत की। आज वे दस टैंक के मालिक हैं।उन्होंने बताया कि प्रत्येक चार महीने में सारा खर्च निकालने के बाद एक टैंक से लगभग 70-75 हजार रुपये की कमाई हो रही है।बकौल बिट्टू नकद आमदनी इस धंधे की सबसे बड़ी खासियत है।यही वजह है कि आज न सिर्फ अपने आसपास के दर्जन भर गाँवों बल्कि महेशपुर से सटे पश्चिम बंगाल के तकरीबन दो दर्जन गाँवों में अपनी देखरेख में कोई ढाई दर्जन प्लांट खड़ा किया है।जिससे लगभग 50-55 युवाओं को स्वरोजगार मिला है।बल्कि समय समय पर उनका मार्गदर्शन व प्रशिक्षण भी करते हैं।वे बताते हैं लाॅक डाउन के चलते जहां अधिकतर लोगों के कारोबार ठप हो गए।लोग बेरोजगार हो गए उस वक्त हमारी मछली की मांग बढ़ गई।जिससे उत्साहित होकर मैंने और तीन नए टैंकों का निर्माण करवा लिया। उन्होंने बताया कि प्रति टैंक देखरेख के लिए कम से कम दो लोगों का होना जरूरी है।जहाँ तक प्लांट संचालन की बात है तो एक आदमी ही कई के लिए काफी होता है।वे कहते मैं अपनी इस योजना को और विस्तार देकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत हूँ।इसके लिए प्रधानमंत्री मत्स्य पालन योजना के तहत ऋण के लिए आवेदन भी दे रखा है।