नई दिल्ली। तालिबान का सबसे बड़ा दुश्मन लौट आया है. 20 साल बाद अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गयी है. अफगानिस्तान में शरीया कानून लागू करने वाले तालिबान के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए दोस्तम के लड़ाके भी मैदान में आ गये हैं. अब्दुल रशीद दोस्तम के लड़ाकों ने दो-दो बार तालिबान का सफाया किया है.
जी हां, अब्दुल रशीद दोस्तम के मिलिशिया के लड़ाकों की वजह से पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेने वाला तालिबान बल्ख प्रांत पर अब तक काबिज नहीं हो पाया है. इसकी वजह दोस्तम के लड़ाके ही हैं. अफगानिस्तान में जिस वक्त तालिबान का आतंक अपने चरम पर था, तभी दोस्तम ने तालिबान को चुनौती दी थी और उन्हें अपने प्रांत से खदेड़ दिया था. दोस्तम की मिलिशिया सेना फिर से लौट आयी है और तालिबान की क्रूरता का करारा जवाब दे रही है.
काबुल पर जब तालिबान ने कब्जा कर लिया, तो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गये. अपनी जान बचाने के लिए चार कार और हेलीकॉप्टर के साथ अफगानिस्तान छोड़कर भागने वाले राष्ट्रपति अशरफ गनी के नये ठिकाने के बारे में कई कयास लगाये गये. हालांकि, बाद में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने साफ किया कि अशरफ गनी ने अपने परिवार के साथ उसके यहां शरण ले रखी है.
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तालिबान ने जब काबुल पर कब्जा किया, तो इस बात की चर्चा शुरू हो गयी कि अब्दुल रशीद दोस्तम अफगानिस्तान छोड़कर उज्बेकिस्तान चले गये हैं. लेकिन, मजार-ए-शरीफ के बूढ़ा शेर के लड़ाकों ने तालिबान को चुनौती देनी शुरू कर दी है. दोस्तम की वापसी की खबर से अफगानिस्तान के लोगों ने राहत की सांस ली है. अब्दुल रशीद दोस्तम को मजार-ए-शरीफ का बूढ़ा शेर के नाम से जाना जाता है.
तालिबान को खुली चुनौती देते दोस्तम के लड़ाके
बताया जाता है कि अब्दुल रशीद दोस्तम के नाम से ही तालिबानियों की रूह कांपती है. वर्ष 1990 और वर्ष 2001 के दौरान जब अफगानिस्तान में तालिबान के गुर्गों ने आतंक मचा रखा था, तब अब्दुल रशीद दोस्तम और उनके लड़ाकों ने इस क्रूर शासक को खुली चुनौती दी थी. जब तालिबान बहुत शक्तिशाली था, तब भी बल्ख प्रांत से दोस्तम के मिलिशिया लड़ाकों ने तालिबान का सफाया कर दिया था.