नई दिल्ली: ज्योतिष के अनुसार, अश्विन शुक्ल पक्ष पर पड़ने वाली पूर्णिमा पर चंद्रमा, पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने से सोलह कला संपूर्ण होता है. इस रात्रि में चंद्र किरणों में अमृत का निवास रहता है. अतः उसकी रश्मियों से अमृत और आरोग्य की प्रप्ति होती है. मान्यता है कि इस रात ऐसे मुहूर्त में चंद्र किरणों में कुछ रासायनिक तत्व मौजूद होते हैं जो शरीर को बल प्रदान करते हैं, निरोग बनाते हैं तथा संतान प्राप्ति में सहायक होते हैं. इस पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी की आराधना की जाती है.
शरद पूर्णिमा से ही हेमंत ऋतु का आरंभ अर्थात ठंड बढ़नी शुरू हो जाती है. इस बार की पूर्णिमा भी खगोलीय दृष्टि से ऐतिहासिक होगी क्योंकि यह ब्लू मून (Blue Moon) की रात होगी. इसके बाद नीला चंद्र 19 साल बाद ही देखा जा सकेगा.
शरद पूर्णिमा का मुहूर्त
पूर्णिमा आरंभ: अक्टूबर 30, 2020 को 17:47:55 बजे से
पूर्णिमा समाप्त: अक्टूबर 31, 2020 को 20:21:07 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग में है पूर्णिमा
नीली शरद पूर्णिमा सवार्थ सिद्धि योग तथा मार्गी हो चुके शनि में 30 अक्टूबर ,शुक्रवार को शाम 05.47 मिनट पर आरंभ होगी और अगले दिन शनिवार की रात 08.21 मिनट तक रहेगी. यदि आप शरद पूर्णिमा का व्रत रखना चाहते हैं तो शास्त्रानुसार, यह व्रत और श्री सत्यनारायण व्रत 21 तारीख शनिवार को ही रखना चाहिए. इसी दिन महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती भी है तथा कार्तिक मास स्नान भी आरंभ हो जाएंगे.
इस दिन कोजागर व्रत, जिसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं, रखा जाता है. शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा अर्थात रासोत्सव भी माना जाता है. इस रात चंद्र किरणों में विशेष प्रभाव माना जाता है, जिसमें से अमृत सुधा बरसती है.
मिल सकता है संतान सुख
जिन दंपतियों को संतान न होने की समस्या है, वे शरद पूर्णिमा पर यह प्रयोग अवश्य करें-
पूर्णिमा पर सभी पौष्टिक मेवों सहित गाय के दूध में खीर बना कर खुले स्थान पर रात्रि में ऐसे सुरक्षित रखें कि कोई पशु-पक्षी इसे खा न सके और पूरी रात, चंद्र किरणें अपना अमृत इस पर बिखेरती रहें. इस खीर के पात्र को किसी तार पर बांध कर जमीन से ऊंचा लटका सकते हैं ताकि कीड़े, चीटियां या बिल्ली आदि इसमें मुंह न लगा सकें. प्रातः काल निःसंतान दंपति सर्वप्रथम इसका भोग गणेश जी को लगाएं, फिर एक भाग ब्राह्मण, एक भिखारी, एक कुत्ते, एक गाय, एक कौवे को दें, फिर पति-पत्नी स्वयं खाएं और परिवार के सदस्यों में भी बांटें.
यदि पारिवारिक क्लेश रहता है तो यह खीर उन सभी सदस्यों को दें, जिनसे आपके मतभेद हैं. यह उपाय सदियों से ग्रामीण अंचलों में सास-बहू के मध्य उत्पन्न होने वाले मतभेदों को समाप्त करने के लिए किया जाता रहा है. आज के युग में भी शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्र किरणों से प्रभावित यह खीर रिश्तों की कड़वाहट समाप्त कर, मिठास घोलने मे उतनी ही सक्षम है जितनी भगवान कृष्ण की रासलीला के समय थी.
शरद पूर्णिमा का महत्व
मान्यता है कि इसी पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने मुरली वादन करके यमुना तट पर गोपियों के साथ रास रचाया था. इसी आश्विन पूर्णिमा से कार्तिेक स्नान आरंभ होंगे. स्कंद पुराण के अनुसार, कार्तिक मास के समान और कोई मास नहीं होता है. अतः इस मास में कार्तिक महात्म्य का विधिपूर्वक पाठ करना या सुनना चाहिए.
चंद्रमा के पूजन से मिलेगा आशीर्वाद
पूर्णिमा हर माह पड़ती है. इस तरह से वर्ष में पूर्णिमा की 12 तिथियां आती हैं. लेकिन आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. शरद पूर्णिमा से ही शरद ऋतु का आगमन होता है. मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है. धर्मशास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है क्योंकि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है.
कार्तिक का व्रत शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है. इस रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है. प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं. इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है. यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है.
पूजन का नियम
शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की पूजा बहुत ही फलदायी मानी गई है. पूर्णिमा की शाम मां लक्ष्मी भ्रमण पर निकलती हैं और आपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. शरद पूर्णिमा की शाम को घर के मुख्य द्वार पर घी के दीपक रखने चाहिए. ऐसा माना जाता है कि जिस घर के द्वार पर दीपक जलता है, उस घर में मां लक्ष्मी प्रवेश करती हैं. शरद पूर्णिमा पर की जाने वाली पूजा जीवन में धन की कमी को दूर करने वाली मानी गई है.
इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए और लक्ष्मी जी की आरती का पाठ शाम के समय करना चाहिए. इस दिन स्वच्छता के नियमों का विशेष पालन करें क्योंकि मां लक्ष्मी को स्वच्छता अधिक प्रिय है. शरद पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात तक आकाश दीप जलाकर दीपदान करने की महिमा मानी गई है. दीप दान करने से समस्त प्रकार के दुख दूर होते हैं तथा सुख-समृद्धि का आगमन होता है.
याद रखें कि स्वच्छता से लक्ष्मी जी घर आएंगी ओैर मास्क लगाने, दूरी बनाए रखने व हाथ आदि बार-बार धोने से कोरोना से बचाव होगा.