पिछले दिनों में भारत की संसद ने दो महत्वपूर्ण बिल पास किए. एक मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 (ट्रिपल तलाक बिल) और दूसरा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019.
राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में रोज़ाना सुनवाई के फ़ैसले के बाद चौक-चौराहों से लेकर सोशल मीडिया पर यह सुगबुगाहट आम है कि केंद्र सरकार की अगली तैयारी अब राम मंदिर बनाने की है.
ये तीनों वो मसले हैं जिनके इर्द-गिर्द बीते कई दशकों से भारत की राजनीति घूम रही है. और जब-जब भारत की राजनीति में हलचल तेज़ होती हैं, बिहार की भूमिका अहम हो जाती है.
मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम की बात की जाए तो मोदी सरकार को संसद के दोनों सदनों में दोनों बिलों (ट्रिपल तलाक़ और अनुच्छेद 370 का ख़ात्मा) को पास कराने में कोई ख़ास मुश्किल पेश नहीं आई.
वोटिंग में दो-तिहाई बहुमत आसानी से मिल ही गया, कई विपक्षी नेताओं ने भी अपनी पार्टी लाइन से अलग जाकर अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाने के फ़ैसले पर सरकार का समर्थन किया.
लेकिन बिहार इस बार भी अहम रहा. क्योंकि बिहार की दोनों बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों राजद और जदयू ने दोनों बिलों पर विरोध जताया.
यह विरोध अहम इसलिए भी है क्योंकि जदयू केंद्र और बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी है. मगर संसद में जेडीयू ने विरोधस्वरूप दोनों सदनों से वोटिंग के दौरान वॉकआउट कर दिया.
हाथ मिलाने से पहले नीतीश की शर्त क्या थी?
इन तीनों मुद्दों का नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू के भाजपा से गठबंधन के समय से ही ऐतिहासिक जुड़ाव है. क्योंकि पहली बार 1996 में जब नीतीश कुमार (तत्कालीन समता पार्टी) ने भाजपा से हाथ मिलाया था तभी यह स्पष्ट कर दिया था कि वो सरकार का साथ हर मुद्दे पर देंगे सिवाय इन तीन मुद्दों के – यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, आर्टिकल 370 और राम मंदिर निर्माण.
नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू ने हमेशा इन मुद्दों पर अपनी अलग राय रखी है. जब-जब उनसे इस बारे में सवाल किया गया है तब-तब उन्होंने अपना स्टैंड साफ़ किया है.
हाल ही में लोकसभा चुनाव के दौरान 21 मई को नीतीश कुमार जब पत्रकारों से बात कर रहे थे ये सवाल आया कि भाजपा का सहयोगी होने के बाद भी अनुच्छेद 370 पर उनके विरोधी रवैये से विरोधाभास जैसी स्थिति बन गई है.
तब नीतीश ने कहा था, “इसमें कोई विरोधाभास नहीं है. हमने पहले भी बता दिया था कि धारा 370 हटाने की बात नहीं होनी चाहिए. कॉमन सिविल कोड को (ट्रिपल तलाक़) को थोपने की बात नहीं होनी चाहिए. अयोध्या मसले का हल आपसी सहमति और कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर होना चाहिए. और ये बात हमनें तब ही साफ़ कर दी थीं जब पहली बार 1996 में हम एनडीए में शामिल हुए थे. अपने स्टैंड पर हम आज भी क़ायम हैं.”
नीतीश ने अपना स्टैंड फिर क्लियर किया
ट्रिपल तलाक़ और अनुच्छेद 370 हटाने के बिल का विरोध कर नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने अपना स्टैंड एक बार फिर साफ़ कर दिया है.
इस बार के विरोध को बिहार में अगले साल होने वाले वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा है. क्योंकि इसके पहले भी कई मौक़ों पर बीजेपी और जेडीयू के बीच संबंधों में खटास की बात सामने आ चुकी है. फिर चाहे वह गिरिराज सिंह के बयान (ट्वीट) को लेकर हो या फिर विशेष राज्य के दर्जे वाले मुद्दे पर.
ये क़यास भी लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार इन मुद्दों पर बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ सकते हैं. विधानसभा चुनाव भाजपा से अलग होकर लड़ने का इससे बेहतर मौक़ा उनके लिए नहीं हो सकता है.
ऐसा करने पर उनके पास गिनाने के लिए अलग होने की सैद्धांतिक वजहें होंगी. ऐसे ही सिद्धांतों की राजनीति की बात करते हुए उन्होंने पहले भी अपने पाले कई बार बदले हैं.
2013 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो जाने पर उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़े. प्रदर्शन निराशाजनक रहा.
फिर 2015 में लालू यादव की पार्टी राजद के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा. शानदार जीत मिली. मगर दो साल भी सरकार नहीं चली कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजद से रिश्ता तोड़कर दोबारा बीजेपी से मिल गए.
नरेंद्र मोदी के वर्तमान मंत्रिमंडल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की बात करते हुए जब नीतीश कुमार ने सांकेतिक प्रतिनिधित्व से इनकार कर दिया था और अपने किसी भी सांसद को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने दिया था. तभी से यह कहा जाने लगा था कि नीतीश कुमार ये सब विधानसभा चुनाव को लेकर कर रहे हैं.
कहने वाले यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार को पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ही पता चल गया था कि नई सरकार ट्रिपल तलाक़, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर को लेकर बड़े क़दम उठाएगी.
तो क्या अब एनडीए से नाता तोड़ेंगे नीतीश?
ऐसे में उनके पास कहने के लिए होगा कि इन सबमें वो सरकार का हिस्सा नहीं थे. और मौक़ा देखकर वे अलग रुख़ अख्तियार कर लेंगे.
सदन में तो उन्होंने अपना विरोध जता दिया. अब क्या नीतीश कुमार भाजपा से अलग होने का औपचारिक ऐलान भी कर देंगे? क्या बिहार में चल रही गठबंधन सरकार भी टूटेगी?
जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “बतौर पार्टी हम हमेशा से ही इन मुद्दों पर अलग राय रखते थे. हमारी राय आज भी क़ायम है. मगर जहां तक सरकार की बात है तो सरकार केवल दो-तीन मुद्दों पर ही नहीं चलती है. कई मुद्दे होते हैं. और उन मुद्दों पर हम साथ मिलकर काम कर रहे हैं.”
ट्रिपल तलाक़ और अनुच्छेद 370 पर जदयू के विरोध के बाद जब स्थानीय मीडिया में एनडीए में फूट की चर्चा होने लगी तो पार्टी के क़द्दावर नेता आरसीपी सिंह ने प्रेस वार्ता कर कहा, “अनुच्छेद 370 को हटाकर भारत की संसद द्वारा विधायी प्रक्रिया के तहत क़ानून बनाया गया है. अब क़ानून बन गया है इसलिए इसका पालन करना ही होगा.”
दिखावे का विरोध?
एक तरफ़ सदन से वॉक आउट करके भाजपा से विरोध जताना, दूसरी तरफ़ बिहार में सरकार चलाना जारी रखना और फिर दबी ज़ुबान से समर्थन भी कर देना. क्या नीतीश कुमार मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए दिखावे का विरोध कर रहे हैं? उनके विपक्षी अब यही आरोप लगा रहे हैं.
इन आरोपों पर जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, “इसमें दिखावा क्या है? संसद में इन मुद्दों के ख़िलाफ़ हमारे वोट कर देने से भी तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. इससे बेहतर हमने फ़ैसला लिया कि उस प्रक्रिया का हिस्सा भी नहीं बनेंगे और हमारा विरोध तो हमेशा से है ही.”
भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने की बात पर नीरज सीधे मना कर देते हैं. कहते हैं,” कुछ लोगों को लगता है, और लग क्या रहा है! इस बात के लिए स्वागत किया जा रहा है कि हम फिर से भ्रष्टाचारियों के साथ मिल जाएं. पर ऐसा क़त्तई नहीं होने वाला है. हम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ज़ीरो टॉलेरेंस की नीति के तहत भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं.”
लेकिन इस बीच 370 पर नीतीश का विरोध भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए आग में घी का काम कर चुका है.
कुछ दक्षिणपंथी सोशल मीडिया समूहों और भाजपा के ज़मीनी कार्यकर्ताओं के बीच कहा जाने लगा है कि, “देश के मुद्दे पर नीतीश कुमार का विरोध बताता है कि वे भी बाक़ी विपक्षी नेताओं की तरह देशद्रोही हैं.”
सुषमा स्वराज के निधन के मौक़े पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में भाजपा दफ्तर के पास जुटे कुछ कार्यकर्ताओं ने नाम न छापने की शर्त पर एक स्वर में कहा कि “देखिएगा अब मोदी सरकार राम मंदिर भी बनवाकर ही रहेगी. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू ही हो गई है. और तब हम लोग ख़ुद नीतीश कुमार को अलग कर देंगे. अकेले जीतकर सरकार बनाएंगे. अभी उनको जितना विरोध करना है, कर लें.”
हमने इस पर बात की भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय मयुख से. क्या भाजपा विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की योजना बना रही है?
मयुख कहते हैं, “नहीं. उनका विरोध जिस बात के लिए है वो है. पर बाक़ी चीज़ों पर तो हम साथ हैं ही और रहेंगे भी. जो लोग ये क़यास लगा रहे हैं कि बीजेपी से नीतीश कुमार अलग हो जाएंगे, वे उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं. मगर हमारी जोड़ी अटूट है. हम मिलकर बिहार में एक अच्छी सरकार चला रहे हैं. ”
नीतीश के पास विकल्प क्या हैं?
आखिर नीतीश कुमार अब क्या करेंगे? क्या अपनी तमाम असहमतियों के बावजूद भी भाजपा के साथ बने रहेंगे और मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे?
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “और बाक़ी उनके पास कोई उपाय ही क्या है. वे फंस गए हैं. उनके नेता जिस तरह से बयान दे रहे हैं साफ़ है कि वे अपने स्टैंड पर क़ायम नहीं रह सके. ये मौक़ा तो था उनके लिए. मगर बीजेपी के द्वारा ऐसी परिस्थितियां और माहौल बना दी गई हैं कि वे चाहकर भी अलग होने का ख़तरा नहीं उठाएंगे. अभी तो राम मंदिर का मुद्दा बाक़ी है. और बीजेपी को केंद्र में तो फ़िलहाल उनकी ज़रूरत भी नहीं है. परिस्थितियां ऐसी हो जाएंगी कि बीजेपी को बिहार में भी जदयू की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.”
जहां तक बीजेपी के अकेले लड़ना का सवाल है तो वह इस तर्क के साथ और भी मज़बूत होता है कि उत्तर भारत में बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां बीजेपी अकेले कभी सरकार नहीं बना सकी है. ज़ाहिर है, बीजेपी जिस तरह की बढ़त के साथ चल रही है, वह चाहेगी कि बिहार में भी अपनी बहुमत वाली सरकार बनाए.
नीतीश कुमार सिद्धांतों की राजनीति की वकालत करते हैं, लेकिन बीजेपी उन्हें अपने सिद्धांतों और स्वीकार्यता से चुनौती दे रही है.
नीतीश को 2013 में एनडीए से अलग होने के अपने फ़ैसले की याद आ रही होगी. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्वीकार न करने का फ़ैसला.