अमित झालानी ।
20 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने “हिंदी नवजीवन” अखबार के अपने संपादकीय आलेख “स्वराज्य और रामराज्य” में लिखा था कि “स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों नहीं निकाले जाएं परंतु मेरी समझ में तो उसका एक ही त्रिकाल सत्य अर्थ है, और वह है रामराज्य”। वे आगे लिखते हैं कि “यदि कुछ लोगों को यह शब्द ठीक ना भी लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा क्योंकि मेरे लिए रामराज्य का एक ही अर्थ है वह है गरीब की रक्षा, लोकमत का सम्मान, और न्यायपूर्ण शासन”। यह बात और है कि यदि आज महात्मा जीवित होते तो उन्हें अपने इन शब्दों के लिए घोर सांप्रदायिक और संकीर्ण मानसिकता का आरोप झेलना पड़ता।
भारत के रोम-रोम में बसने वाले अवधपति राम को सर्वकालीन आदर्श राजा माना जाता है। उनके राज्य के वैशिष्ट्य का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास कहते है – “दैहिक-दैविक-भौतिक तापा, राम-राज नहीं काहुहि व्यापा। सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नीति” अर्थात राम राज्य में न तो किसी प्रकार का कष्ट है और न ही द्वेष। सभी नागरिक परस्पर प्रेम और सौहार्द से स्वधर्म का पालन करते हुए नीतिपूर्वक रहते हैं। राम एक आदर्श पुत्र, मित्र और न्याय की मूर्ति हैं।
वे अपने पिता के एक वचन की पूर्ति के लिए 14 वर्ष का वनवास ग्रहण करते है। किष्किंधा के अहंकारी राजा बाली को मारकर उसी के भाई सुग्रीव और और पुत्र अंगद को सौंप देते है। राम स्वर्णमयी लंका से किंचित भी आकर्षित हुए बिना ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ का संदेश देते है। जिस राज्य को प्राप्त करने के लिए रावण को अपने 10 शीष देने पड़े थे, उस राज्य के सिंहासन पर विभीषण को अभिषिक्त करते हैं। राम केवट और निषादराज के मित्र हैं। राम जाति-पाती, ऊंच-नीच, अगड़े-पिछड़े और यहां तक कि मनुष्य और पशु के भेद को भी विसरित कर देने वाले समरसता के संवाहक हैं। राम अपने व्यक्तिगत युद्ध में राज्य की सेना का उपयोग नहीं करते, बल्कि ही बाहुबल और पराक्रम से रावण का संहार करने वाले वीर योद्धा ही राम है।
राम अपनी पत्नी के वियोग में वन-वन भटकते हैं। सागर पर सेतु बांधकर प्रेम की महागाथा लिखते हैं, पत्नी के शील-भंग का प्रयास करने वाले त्रैलोक्य विजेता रावण को परास्त करते हैं। राम आदर्श पति हैं। रानी के चरित्र पर कुछ सामान्य नागरिकों द्वारा संदेह करने पर लोकमत के सम्मान में अपनी प्राणप्रिया पत्नी को भी त्याग देते हैं। वे राजा थे, कितनी भी रानियाँ बना सकते थे, परन्तु एक पत्नीव्रत का पालन किया। प्रजा का सुख राजा के व्यक्तिगत सुख से बड़ा होता है, राजा आदर्श होता है और इस प्रकार राम ही वे राजा थे जिन्होंने सही अर्थों में राजतंत्र को लोकतंत्र में परिवर्तित किया।
राम एक व्यक्ति मात्र नहीं, वरन इस देश की संस्कृति हैं। राम इस देश की पहचान, इस देश का स्वभाव और इस देश के नायक हैं। सिख पंथ में गुरु ग्रंथ साहिब हो अथवा जैन पंथ के धर्मशास्त्र, राम सभी जगह वंदनीय हैं। भारतीय मुसलमानों ने भी राम को इमाम-ए-हिंद की संज्ञा दी है। राम ही वह सेतु हैं जो इस वृहद भारतीय समाज के जनमानस को जोड़ सकते हैं। उस व्यक्तित्व ने हज़ारों साल से अनेकों पीढ़ियों को प्रेरित किया है। ऐसे महानायक की किसी पंथ विशेष को नहीं, सम्पूर्ण मानवता को आवश्यकता है।
कुछ लोग राम जन्मभूमि मुक्ति के इस संघर्ष को हिन्दू-मुस्लिम रंग देकर साम्प्रदायिकता फैलाने की कोशिश करते हैं, तो कुछ लोग इसे राजनैतिक सांचे में ढालने की कोशिश करते हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दू समाज का संघर्ष विगत 492 वर्षों से जारी है। यह संघर्ष इस समाज ने अराजकता अथवा हिंसा से नहीं बल्कि न्यायपूर्ण संवैधानिक व्यवस्था के द्वारा जीता है।
बाबर एक क्रूर और मज़हबी उन्माद से भरा हुआ बर्बर आक्रांता था। उसने अत्याचार की पराकाष्ठा कर दी थी। गुरुनानक देव ने उसे मौत का दूत कहकर संबोधित किया और हिंदुओं को साहस के साथ उसका सामना करने के लिए प्रेरित किया था। ऐसे आततायी इंसान और उसकी विरासत को सदा के लिए इस देश से मिटा देना चाहिए। आज के मुसलमानों की पहचान को बाबर के साथ जोड़कर देखना एक अपराध है। भारत के मुसलमानों की पहचान बाबर, गौरी, गज़नी से नहीं रहीम, कलाम और अशफाकउल्ला खान से है।
भूमि पूजन के इस ऐतिहासिक अवसर की प्रतीक्षा में पाँच शताब्दियाँ और कितनी ही पीढ़ियाँ बीत गई। हमारा सौभाग्य है कि प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद से हम इन ऐतिहासिक पलों के साक्षी बनेंगे। यह मंगल घड़ी भारत की अस्मिता और स्वाभिमान के पुनर्जागरण की पहचान है। 15 अगस्त 1947 को राजनैतिक रूप से स्वतंत्र हुआ भारत सांस्कृतिक रूप से अभी तक जकड़ा हुआ महसूस कर रहा था। 5 अगस्त 2020 को जब प्रधानमंत्री के करकमलों द्वारा भव्य श्रीराम मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी तो यह सिर्फ एक मंदिर की नहीं बल्कि सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्र भारत के निर्माण की नींव होगी। यह नया भारत आत्मगौरव से युक्त, न्यायपूर्ण, लोककल्याणकारी और आदर्श राज्य के रूप में विकसित होगा।
(लेखक : के. एन. मोदी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)