चित्रकूट। बुन्देखलखण्ड के चित्रकूट जनपद का पाठा क्षेत्र कभी गोलियों की धाय-धाय आवाज के लिए जाना जाता था। इस धाय-धाय का खौफ पाठा क्षेत्र ही नहीं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई जिलों तक गूंजती थी, जिसका सीधा फायदा डकैत राजनीति में उठाते थे। प्रधान से लेकर सांसद बनवाने तक में डकैतों का खौफनाक फरमान भोली-भाली जनता पर कहर ढाता था। ऐसे में जो राजनीति में आना चाहते थे तो वह लोग पहले डकैतों के यहां आर्शीवाद लेते थे, लेकिन समय का चक्र ऐसा बदला कि अब वह सभी फरमान इतिहास बनकर रह गये हैं, क्योंकि अधिकांश बड़े डकैत मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। आज स्थिति यह हो गई है कि बीहड़ के दूर दराज गांवों में न तो डकैतों के फरमान का असर चुनावी राजनीति में दिखता है और न ही चुनाव लड़ने वाले राजनेता डकैतों से आर्शीवाद लेते हैं। यही नहीं पार्टी और उम्मीदवार के विश्वास में अब पाठा क्षेत्र की राजनीति आकर लोकतंत्र को मजबूत करती दिख रही है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और सभी पाटिर्यों के नेता जनता को अपने पाले में करने में जुटे हुए हैं। यह तो लोकतंत्र की पहचान है और इसी आधार पर चुनाव होते चले आ रहे हैं, लेकिन चित्रकूट से सटे हुए उप्र और एमपी के जिलों में डेढ़ दशक पहले तक चुनाव का तरीका कुछ अलग ही होता था। यहां पर जीत के लिए कुछ पार्टियों के उम्मीदवार जनता से अधिक बीहड़ के डकैतों का आर्शीवाद लेने में अधिक विश्वास रखते थे। इसके पीछे सबसे अहम कारण होता था कि डकैतों के खौफनाक फरमान से भोले-भाले लोग डरते थे और अपना मतदान उनके पंसदीदा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर देते थे। यहां तक कि जीत के लिए गणितीय मॉडल चलता था कि पार्टी का इतना वोट, जाति का इतना वोट, फरमान का इतना वोट, तीनों के मिलने से जीत पक्की हो जाती थी। वहीं अगर डकैतों के फरमानों की बात की जाये तो प्रत्येक डकैत अपना-अपना फरमान सुनाता था, लेकिन ददुआ का फरमान ‘मोहर लगेगी हाथी में, नहीं लाश मिलेगी घाटी में’ आज भी याद किया जाता है। यह अलग बात है कि समय के बदलाव के साथ लोग इस फरमान को नकारात्मक दृष्टि से लेते हैं।
कई दशक तक सफल रहा ददुआ का गणितीय मॉडल
यह देखा भी गया कि जब तक दुर्दांत डकैत शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ जिंदा रहा तो उसका यह गणितीय मॉडल सफल रहा। चित्रकूट की सभी विधानसभा सीटों, बांदा की कई विधानसभा सीटों, फतेहपुर, कौशांबी, इलाहाबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र आदि के साथ मध्य प्रदेश की कई विधानसभा सीटों के साथ लोकसभा सीटों में उसी के चहेते विधानसभा और संसद तक पहुंचते थे। अगर प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष की बात की जाये तो उसके चहते सीट हथियाने में आसानी से सफल हो जाते थे। प्रधान पद के लिए तो अक्सर यह देखा जाता था कि उसके समर्थक बिना मतदान के जीत जाते थे।
2012 तक रही सहानुभूति
बीहड़ के डकैतों का फरमान भले ही करीब तीन दशक तक चला हो, लेकिन शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ और अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया के खात्मे के बाद अधिकांश मतदाता अपनी इच्छानुसार मतदान करने लगा। लेकिन डकैतों में खासकर ददुआ से सहानुभूति रखने वालों की तादाद भी काफी रही। कुछ लोग उसे गरीबों का मसीहा मानते रहे, तो बहुत से वह गरीब जिनको सीधा फायदा मिलता था वह सहानुभूति 2012 के चुनाव तक रखते थे। 2007 में ददुआ के मारे जाने के बाद सहानुभूति से बांदा ही नहीं आस-पास की लोकसभा सीट में उस राजनीतिक पार्टी को या उस उम्मीदवार को जीत मिली जिससे उसकी वैचारिकता थी। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में भी यही हाल देखा गया। इस चुनाव में तो समाजवादी पार्टी से उसका बेटा वीर सिंह पटेल, भतीजा राम सिंह पटेल विधायक बनने में सफल रहा। भाई बालकुमार पटेल इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर सीट से संसद तक पहुंच चुका था।
इतिहास बन गया डकैतों का फरमान
बीहड़ की राजनीतिक हलचल पर पैनी नजर रखने वाले समाजसेवी कमलेश कुमार मिश्रा और राजकिशोर गुप्ता बताते हैं कि एक समय था कि ददुआ के पसंदीदा उम्मीदवार के अलावा बीहड़ में प्रचार करने नहीं जाता था। कुछ उम्मीदवार जाते भी तो उनमें डर इस कदर रहता था कि जनता को अपने विश्वास में नहीं ले पाते थे। कई बार तो उम्मीदवार अपने समर्थकों के साथ पिटकर शहर वापस आये। लेकिन खासकर पिछले पांच सालों में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में बहुत बदलाव हुआ है और कुछ छोटे डकैतों को अगर छोड़ दिया जाये तो अब लगभग डकैतों से पाठा क्षेत्र मुक्त हो गया है। सामाजिक कार्यकर्ता आलोक द्विवेदी ने बताया कि डकैतों के फरमान पर अब कोई चर्चा नहीं होती अगर होती भी है तो उसमें सकारात्मकता से अधिक नकारात्मकता होती है। इससे डकैतों का फरमान अब इतिहास बन गया है और मतदाता पार्टी के साथ उम्मीदवार के विश्वास पर मतदान कर रहा है और आगे भी करेगा।
डकैतों के अनुकूल भौगोलिक परिस्थिति
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बसे होने के कारण चित्रकूट का पाठा क्षेत्र भौगोलिक दृष्टिकोण से हमेशा डकैतों के लिए अनूकूल रहा है। दोनों प्रदेशों की पुलिस के बीच सामन्जस्य न होने के कारण आतंक का साम्राज्य चलाने वाले दुर्दांत डकैत यूपी में हत्या,लूट,अपहरण और डकैती की वारदात को अंजाम देने के बाद सीमा से लगे एमपी के जंगलों में शरण लेते रहे हैं। वहीं एमपी के अपराध को अंजाम देने के बाद यूपी के पाठा के बीहड़ में पनाह लेते रहे हैं।
यह रहा डकैतों का इतिहास
जिले के रैपुरा थाना क्षेत्र के देवकली गांव निवासी शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ के विरूद्व 1976 में मारपीट का पहला केस दर्ज हुआ था। इसके बाद 1978 में पैतृक गांव देवकली में पहला मर्डर किया था। वह 70 के दशक से अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बना और 1982 में अपना गैंग बनाया था। ददुआ ने रामू का पुरवा गांव में 19 जुलाई 1986 को नौ लोगों की एक साथ गोली मार दी थी। जिसके बाद से पूरे देश में आपराध जगत में एक बडा नाम बनकर उभरा था। पुलिस मुखबिरी के शक में लोहघटा पुरवा में 2001 में चंदन यादव की गर्दन धड़ से अलग कर कटे हुए सिर को लेकर पूरे गांव में घुमाकर मुखबिरों को अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी। इसके बाद 22 जुलाई 2007 में पाठा के झलमल के जंगल में एसटीएफ के साथ हुई मुठभेड में दस्यु ददुआ गैंग के साथी डकैतों के साथ मारा गया था। ददुआ के मारे जाने के अगले ही दिन यूपी एसटीएफ के 6 जवानों की गोलियों से छलनी कर हत्या करने वाले पांच लाख के दुर्दांत ईनामी दस्यु ठोकिया को एक साल बाद 04 अगस्त 2008 को उसके ही गांव सिलखोरी में एसटीएफ ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया था। इसके बाद गैंग की कमान दस्यु रागिया फिर बलखड़िया ने संभाली, लेकिन जयादा दिन पुलिस से बच नहीं सके। दोनों डकैत भी मुठभेड़ में मारे गए। इसके बाद बबली कोल दस्यु गैंग का सरगना बना। लेकिन लोकल पॉलिटिकल सपोर्ट न मिलने के कारण पांच लाख का इनामी होने के बावजूद 15 सितम्बर 2019 को यूपी -एमपी के बार्डर पर स्थित बांधवगढ़ में अपने साथी दो लाख के ईनामी डकैत लवलेश कोल के साथ मारा गया था। दुर्दांत डकैतों के सफाये से दहशत का शिकार रहने वाले पाठा के बीहड़ में शांति बहाल हुई थी।
गौरी यादव का चल रहा गैंग
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में डकैतों के नाम पर एकमात्र गौरी यादव गैंग ही बचा है। कहने को तो पुलिस ने ही इसे ददुआ,ठोेकिया आदि दुर्दांत डकैतों के खिलाफ अपना हथियार बना कर बीहड में उतारा था। लेकिन अब यह पुलिस के लिए ही सिरदर्द बन गया है। पुलिस अधीक्षक धवल जायसवाल का कहना है कि पांच लाख के ईनामी दस्यु गौरी यादव गैंग की तलाश में पुलिस टीमें लगाकर पाठा के जंगलों में काम्बिंग कर रहीं है। जल्द ही गौरी यादव गैंग का सफाया कर चित्रकूट को दस्यु समस्या से निजात दिलायेगी।