खूँटी। प्रतिदिन नगर पंचायत क्षेत्र में काम की तलाश में सैकड़ों ग्रामीण किसान मजदूर पहुँचते हैं। और मजदूरी कर अपना जीवीकोपार्जन करते हैं। प्रतिदिन सुबह कुदाल गैंता झोड़ी हथौड़ा करनी और जरुरत का सामान लिये हुए रोजगार की आशा में नेताजी चौक खूँटी पहुँचते हैं। लेकिन मजबूरी और मजदूरी के बीच ऐसे मजदूरों को भी तब निराशा हाथ लगती है जब उन्हें काम नहीं मिल पाता है। प्रतिदिन मजदूर रेजा और कुली 20 किलोमीटर दूर तक से साइकिल चलाकर और पाँच सात किलोमीटर से पैदल खूँटी काम की तलाश में आते हैं। और फिर मजदुरी करके अपना घर लौटते हैं।
यही नहीं , खूँटी शहर से लगभग 70 किलोमीटर तक दूर दराज के कुछ किसान मजदूर खूँटी में ही किराए का घर लेकर भी रहते हैं। जो अपनी पसीने की कमाई से बच्चों की पढ़ाई लिखाई और घर का गुजारा चलाते हैं। दिहाड़ी करने के लिए प्रतिदिन सुबह से ही नेताजी चौक में देखने को मिल जाएंगे। और इस आशय में कि कोई तो आएगा और बोलेगा। मेरे यहां काम करने चलो। और फिर काम करने चले जाते हैं। लेकिन जबतक काम नहीं मिल जाता है तब तक उदास बैठे रह जाते हैं। और अफसोस का घूँट पीकर वापस लौट जाते हैं।
कई मजदूर ठीकेदारों के साथ काम करते हैं। और उन्हें साप्ताहिक पेमेंट ठीकेदार द्वारा किया जाता है। लेकिन कभी कभी कोई ठीकेदार से भी ठगे जाते हैं। और ठीकेदार भी इनके पैसे खा जाता है। उन्हें यह कहकर पैसा नहीं देता है कि उसे काम में घाटा लग गया।
खूँटी में जिले के दूरदराज मजदूरों के अलावा दूसरे जिले के भी मजदूर शहर में महंगे किराए के मकान में रहकर मजदूरी करते हैं। जिसमें कुछ कुछ गुमला , सिंहभूम बंगाल, बिहार के भी मजदूर भी आ जाते हैं। ऐसे मजदूर भी हैं जिन्होंने लॉकडाउन में वापस घर तो आए । पर अब काम नहीं मिल पाता है। और बहुत मुश्किल से रोजगार चलाना पड़ रहा है।
लेकिन इनकी मदद कोई नहीं कर पा रहा है। लोग कई बड़े बड़े सपने दिखाकर चुनाव में खड़ा होते हैं। लेकिन समय बीतता है और सब कुछ भूल जाते हैं। और ऐसे ही निरिह मजदूर कभी पार्टी का झंडा लेकर राजनीति में भीड़ का हिस्सा भी बनते हैं लेकिन इनका दर्द इनके पास ही रह जाता है। इन्हें सरकारी लाभ के बारे में तक पता नहीं। कि सरकार से दिहाड़ी मजदूरों के लिए सरकार ने क्या क्या योजना बनायी है। इससे सम्बन्धित पदाधिकारियों के कारण सरकारी कार्य भी मात्र दिखावा रह जाता है। और सरकार आपके द्वार का कार्यक्रम बस बैनर में मात्र रह जाता होगा। यही कारण है कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से भी गरीब मजदूर किसान वंचित रह जाते हैं। और फिर कर्मयोगी मजदूर को काम मिल जाए तो सुबह शाम का नमक रोटी के लिए राशि कमा लें। यही सोंच लिए रात को सोते और सुबह कुदाल गैंता झोड़ी हथौड़ा करनी और जरुरत का सामान लिए पोटली में भात बांधकर निकल पड़ते हैं।