नई दिल्ली। इस दुनिया में इंसान के साथ ऊपर वाले ने दो और चीज़ें भेजी थीं. अच्छाई और बुराई. जैसे-जैसे इंसानियत आगे बढ़ी वैसे-वैसे वक्त के साथ अच्छाई और बुराई भी बढ़ती गई. फर्क बस इतना था कि जितनी तेज़ी से अच्छाई बढ़ रही थी, उससे कई गुना तेज़ी के साथ बुराई खुद को बढ़ा रही थी. हर दौर में हमारे समाज के अंदर बुराई हावी रही. पहले लोग ज़मीन जायदाद और पैसों के लिए लड़ते थे लेकिन अब जंग पॉवर की है यानी ताकत की. इसकी मौजूदा मिसाल अफगानिस्तान में हर गुज़रते वक्त के साथ साथ गढ़ी जा रही है.
अफगानिस्तान तो सिर्फ एक बहाना है, सच तो ये है कि बुराई का कोई वक्त, कोई दौर नहीं होता. जापान से लेकर जर्मनी तक. रूस से लेकर हिंदुस्तान तक और अब सीरिया से खुरासान तक. अपने-अपने वक्त में इन सभी जगहों पर बुराईयों की इबारत लिखी जा चुकी है. खून के दाग अगर घुड़सवारों पर है तो व्हाइट कॉलर वाले भी दूध के धुले नहीं हैं. सब ने पॉवर और सत्ता की इस जंग में खून से अपने अपने हाथ लाल किए हैं. हां बस फर्क इतना है कि वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती और ये आह भर के भी बदनाम हो जाते हैं.
लिहाज़ा इन्हीं बदनामों की टोलियों से उन पांच बदनामों की दास्तां हम आपको बताने आए हैं, जो फिलहाल दुनिया के लिए खतरा बने हुए हैं. मगर शुरुआत उनसे जिन्होंने अभी-अभी इंसानियत को अपने कदमों तले रौंदा है. अफगानिस्तान में काबुल एयरपोर्ट के दायरे के अंदर और बाहर हुए इन हमलों की ज़िम्मेदारी आईएसआईएस खुरासान ने ली है. ज़ाहिर है नाम से आप ये अंदाज़ा लगा रहे होंगे कि इन हमलों को अबू बकर अल बगदादी के संगठन आईएसआईएस ने अंजाम दिया होगा लेकिन ऐसा नहीं है. ये संगठन है ज़रूर आईएसआईएस का लेकिन इसको अंजाम देने वाला आईएसआईएस खुरासान एक अलग और बेढंगा विंग है. इसे आप खिसका हुआ भी बोल सकते हैं. खिसका हुआ इसलिए क्योंकि कोई भी संगठन हो या सरकार उनके पास एक रोडमैप होता है, विचारधारा होती है. मगर ये इन सब चीज़ों के बारे में सोचने की ज़हमत नहीं उठाते हैं.
खुरासान
बहरहाल अब ये जानना ज़रूरी है कि आखिर ये संगठन है क्याऑ? चाहता क्या है? आईएसआईएस खुरासान को समझने के लिए आपको पहले खुरासान को समझना होगा. पिछले एक दशक में आपने अक्सर ये नाम सुना होगा. दरअसल, खुरासान एक फारसी लफ्ज़ है. जिसका मतलब होता है वो जगह जहां से सूरज उगता है. ख्वार मतलब सूरज और आसान मतलब आने वाला या उगना. बात तीसरी या चौथी सदी की है, कुछ लोग अरब से निकल कर ईरान पहुंचे थे. ईरान के जिस खास हिस्से पर वो आबाद हुए उसका नाम खुरासान पड़ा. फिर धीरे-धीरे खुरासान का दायरा बढ़ता गया. तब इसमें ईरान के अलावा मध्य एशिया के कुछ इलाके अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और उजबेकिस्तान भी शामिल था. मगर एक वक्त वो भी आया जब खुरासान सिर्फ ईरान के एक छोटे से हिस्से में ही सिमट कर रह गया. इसके बाद 2011 में बगदादी की नजर उसी खुरासान पर पड़ी और बस वहीं से उसने पूरी दुनिया को खुरासान बनाने का आतंक का अपना नक्शा तैयार कर लिया.
आईएसआईएस खुरासान
साल 2011 से आईएसआईएस का तत्कालीन प्रमुख अबू बकर और उसके लड़ाके अपने इस खुरासान प्लान पर काम कर रहे थे, सीरिया और इराक के काफी हिस्सों पर उसके आतंकियों ने कब्ज़ा भी जमा लिया था. लेकिन वक्त के साथ साथ उसका ये मिशन ढीला पड़ता गया. मगर इस बीच पाकिस्तानी आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के 6 सदस्यों ने अक्टूबर 2014 में ISIS के सरगना अबू बकर अल-बगदादी को अपना नेता मान कर उसके नेतृत्व में काम करने की घोषणा कर दी. जनवरी 2015 में उस वक्त के आईएस प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल-अदनानी ने इस समर्थन को कुबूल करते हुए आईएसआईएस-केपी या ISIS-K आसान लफ्ज़ों में आईएसआईएस खुरासान की स्थापना का एलान कर दिया. मगर ISIS-खुरासान को 2017 में एक अमेरिकी एयरस्ट्राइक का सामना करना पड़ा था. जिसमें काफी तादाद में इस संगठन के लड़ाके मारे गए. जिसके बाद संगठन में फूट पड़ गई. लिहाज़ा ये टूट कर फिर से एक नया संगठन बना.
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस संगठन में 3000 से ज्यादा लड़ाके जुड़े हैं. इसमें कुनार, नूरिस्तान और आसपास के इलाके के लोगों को ग्रुप में शामिल कराया गया था. फंडिंग की बात करें तो संगठन को हवाला नेटवर्क के ज़रिए बहुत बड़ी कमाई होती है. इसके अलावा ISIS से भी फंडिंग मिलती है. ऑस्ट्रेलिया नेशनल सिक्योरिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान और अमेरिका ने जब फरवरी 2020 में दोहा और कतर में वार्ता की थी, तब उसके बाद खुरासान आतंकी संगठन और तेजी से उभरा. दरअसल, खुरासान आतंकी संगठन ने दुनिया भर में दावा किया कि अब वही है खुरासान और शरिया के लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि तालिबान तो अब अमेरिका से मिल चुका है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ISIS-खुरासान ने अब तक 5 बड़े हमले किए हैं जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई.
आईएसआईएस
अब आते हैं ISIS-खुरासान के मूल संगठन पर. इसका नाम बदकिस्मती से अब किसी पहचान का मोहताज नहीं. पिछले 10 सालों में खासकर बगदादी के मरने से पहले इसने पूरी दुनिया में मौत का जो नंगा नाच किया वो तारीख में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गया. इस्लामिक स्टेट की शुरुआती स्थापना साल 1999 में मानी जाती है. हालांकि, इसकी स्थापना पहले जमात उल-तैहीद वल जिहाद के नाम से हुई थी. ये इराक और सीरिया का सुन्नी आतंकवादी गुट है और अल-क़ायदा का पुराना सहयोगी भी था. इस्लामिक स्टेट को पूरी तरह से पश्चिमी विरोधी माना जाता है. इस संगठन का मकसद इराक, सीरिया और लेवेंट यानी पश्चिमी एशिया के इलाक़ों में इस्लामी राज्य की स्थापना करना है. अब सवाल ये कि आखिर ये संगठन वजूद में कैसे आया? दरअसल साल 2011 में सीरिया में असद सरकार के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. देखते ही देखते ये प्रदर्शन गृह-युद्ध में बदल गया. वहीं, साल 2006 में इराक में सद्दाम हुसैन की मौत के बाद इराक और सीरिया दोनों में ऐसे हालात बन गए थे कि कोई भी आतंकी संगठन आसानी से पैर पसार सकता था. और हुआ भी वही.
इस्लामिक स्टेट ने इराक के फालुजा और इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल सहित कई इलाक़ों को कब्जे में ले लिया था. वहीं, सीरिया में इस्लामिक स्टेट ने रक्का, दयार अज़-ज़ावर और पलमायरा जैसे शहर पर अपना कब्जा जमा लिया. इसके बाद साल 2013 के आखिर में ही इसने अपना नाम इस्लामिक स्टेट से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक़ एंड सीरिया यानी ISIS कर लिया था. हालांकि, इसकी घोषणा साल 2014 में हुई थी. इसके बाद 29 जून 2014 को अबु बकर अल बग़दादी ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया. हमला करने की ISIS की मॉडस ऑपरेंडी ये है कि भीड़ भाड़ वाले इलाकों, त्योहारों और धार्मिक आयोजनों को चुनता है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को हमले का शिकार बनाया जा सके.
ISIS का प्रमुख अबू बक्र अल-बगदादी तो 27 अक्टूबर 2019 को अमेरिकी सैन्य अभियान में मारा गया, लेकिन उसका संगठन अभी भी ज़िंदा है. माना जाता है कि इस्लामिक स्टेट में एक वक्त 65 हजार से ज्यादा लड़ाके थे. जिसमें 120 से ज़्यादा देशों के करीब 40 हजार तो विदेशी लड़ाके ही शामिल थे. इस आतंकी संगठन में अबू सयाफ, बोको हराम, इस्लामिक स्टेट-लीबिया, इस्लामिक स्टेट-सिनाई, इस्लामिक स्टेट-ईस्ट एशिया, इस्लामिक स्टेट-खुरासान और इस्लामिक स्टेट-सोमालिया शामिल हैं.
बोको हराम
खूंखार और बर्बरता का नाम है बोको हराम. नाइजीरिया से ऑपरेट होने वाले बोको हराम के मायने है पश्चिमी शिक्षा पाप है. ये पहली बार दुनिया की नज़रों में तब आया जब इसने नाइजीरिया के एक स्कूल से 250 बच्चों का अपहरण कर लिया था. इस संगठन का पहले जमातु अहलिस सुन्ना लिद्दावती वल-जिहाद नाम था. बोको हराम दुनिया का इकलौता ऐसा आतंकी संगठन है जिसकी नींव अहिंसा को मानने वाले एक एनजीओ के तौर पर हुई थी. साल 1995 में एक धार्मिक संगठन के तौर पर बोको हराम की शुरूआत हुई. इसका मकसद सिर्फ ये था कि पश्चिमी शिक्षा से दूर रहना है. इसमें हिंसा की कोई जगह नहीं थी. इसलिए इसमें पूर्वी नाइजीरिया के मध्यमवर्गीय लोग और युवा शामिल हुए थे. लेकिन दिसंबर 2003 से कुछ गुटों की प्रताड़ना की वजह से इस संगठन ने हिंसा का रूप ले लिया. इससे नाइजीरिया के उत्तरी इलाके में अशांति फैल गई. जिसके बाद भारी तादाद में पुलिस फोर्स को बुलाकर इस संगठन को दबाया गया. बस यहीं से इस संगठन ने हिंसक रूप धारण कर लिया. और इस संगठन एक बार जब हिंसा का रास्ता अपनाया तो फिर कभी पीछे पलट कर नहीं देखा.
और अब ये दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठनों में गिना जाता है. मार्च 2015 में इस संगठन ने खुद को इस्लामिक स्टेट में शामिल होने की घोषणा कर दी. इसके बाद इस संगठन का नाम जमातु अहलिस सुन्ना लिद्दावती वाल-जिहाद से बदलकर पश्चिमी अफ्रीका में इस्लामिक स्टेट कर दिया गया. इसके बाद ही इस्लामिक स्टेट ने बोका हराम का नेतृत्व बदल दिया. IS ने अबू मुसाब अल-बरनावी को अगस्त 2016 में बोको हराम का लीडर घोषित किया. इस घोषणा से अबुबकर शेकाऊ नाराज हुआ और उसने इस्लामिक स्टेट के फैसले को मानने से मना कर दिया. जिसके बाद बोको हराम में दो गुट बन गए. एक रिपोर्ट के मुताबिक बोको हराम में कुल 1500 के आसपास लड़ाके है. बोको हराम हथियारों और मानव तस्करी के जरिए फंडिंग करता है. इसके साथ ही वो जबरन वसूली, डकैती, लूटपाट और फिरौती के लिए अपहरण भी करता है. फंडिंग के लिए इस संगठन के और भी कई जरिया हैं. इनमें सबसे बड़ा इस्लामिक स्टेट भी है जो फंडिंग कराकर फिदाइन दस्ते तैयार कराता है. बोको हराम अब तक कई दर्जन भयानक हमलों को अंजाम दे चुका है.
अल क़ायदा
दुनिया में मौजूद तमाम आतंकी संगठन या तो अल क़ायदा से निकले हैं या फिर कहीं ना कहीं वो उसी का हिस्सा हैं. इसे आप मदर ऑफ ऑल टेरर कह सकते हैं. इस संगठन की पहचान ओसामा बिन लादेन के नाम से दुनियाभर में की जाती है. अल कायदा का पूरा नाम अल-जिहाद अल क़ायदा है. जिसे ओसामा बिन लादेन ने साल 1988 में अरबों से मिलकर तैयार किया था. इस संगठन को इसलिए तैयार किया था ताकि वो सोवियत यूनियन के खिलाफ अफ़ग़ानिस्तान में लड़ाई लड़ सके. कहते हैं इसे खड़ा करने में अमेरिका ने मदद की थी. अफगानिस्तान से सोवियत यूनियन की विदाई के बाद ये संगठन जिहाद की तरफ मुड़ गया और इसने अपना मकसद बदल दिया. अब इसका मक़सद है पूरी दुनिया में इस्लाम का राज़ लाना. इस संगठन का दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा था, पश्चिमी सोच की मुख़ालफत करना. ये सुर्खियों में तब आया जब इसके सरगना ओसामा बिन लादेन के मास्टरप्लान के बाद इसके आतंकियों ने साल 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया था. इसके अलावा अब तक ये कई बड़े धमाके कर चुका है. जिसमें हज़ारों बेगुनाहों ने अपनी जान गंवाई है.
तालिबान
अफगान के छात्रों को मिलाकर 90 के शुरुआती दौर में बना तालिबान, इस्लामिक कानून और शरिया के नाम पर लगातार औरतों मर्दों और बच्चों पर ज़ुल्म ढहाता रहा. 96 से 2001 तक जब तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में था तब दुनिया के सिर्फ 3 देशों ने तालिबान को मान्यता दी थी, ये देश थे पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई. कमाल की बात ये है कि बीते करीब 30 सालों में तालिबान ने हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारा. जिनमें सैकड़ों अमेरिकी सैनिक भी शामिल हैं. अनगिनत फिदाईन हमले किए. यहां तक की अफगान के पूर्व राष्ट्पति नजीबुल्लाह को लैंप पोस्ट पर लटकाकर फांसी दी. वही तालिबान 20 साल बाद फिर अफगान में लौटा है, हथियार और दहशत के बल पर. लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चाहे संयुक्त राष्ट्र हो या फिर खुद अमेरिका उनकी नज़र में तालिबान कोई आतंकवादी संगठन नहीं है.