नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि आपको सांस लेने के लिए हवा कहां से मिलती है? आप बोलेंगे वायुमंडल से, पेड़-पौधों से, जमीन और समुद्र में फैली सूक्ष्मजीवों की चटाई से या इन सभी जगहों से मिलती है.
लेकिन आपको ये नहीं पता कि वायुमंडल और पेड़-पौधे हमें ऑक्सीजन तब देते हैं, जब धरती इन्हें इस बात की अनुमति देती है.
अगर हमारी पृथ्वी अनुमति न दे तो आपको ऑक्सीजन न मिले. अब आप सोचेंगे कि धरती अनुमति कैसे देती है? हैरान करने वाला खुलासा ये है कि धरती के धीमे चक्कर की वजह से हमें ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है. आइए जानते हैं कैसे?
हमारा नीला ग्रह ऑक्सीजन से भरपूर कैसे हुआ? इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है धरती का धीमे चक्कर लगाना. हमारी धरती के धीमे चक्कर लगाने की वजह से सूक्ष्मजीव (Microbes) ज्यादा समय के लिए दिन में सूरज की रोशनी में रहते हैं. वो ऑक्सीजन रिलीज करते हैं.
आपकी हर सांस के पीछे करोड़ों साल का इतिहास जिम्मेदार है. क्योंकि करोड़ों साल पहले साइनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) नाम के सूक्ष्मजीवों की चादर धरती पर बिछी थी. यह आज भी है. ये फोटोसिंथेसिस के जरिए ऑक्सीजन को बाइप्रोडक्ट के तौर पर निकालते हैं. ऑक्सीजन पैदा करने वाली इस चादर के विकसित होने की पीछे वजह है धरती का धीमा चक्कर लगाना.
हालांकि, वैज्ञानिक आज भी यह बात स्पष्ट तौर पर नहीं कह सकते हैं कि धरती बार ऑक्सीजन बढ़ने की दो बड़ी घटनाएं कैसे विकसित हुईं. पृथ्वी कैसे पहले कम ऑक्सीजन पैदा करती थी और आज इतना ज्यादा. अगर यही ऑक्सीजन न होती तो इंसान जैसे जटिल जीवों का जन्म धरती पर कभी नहीं होता. जितना ज्यादा ऑक्सीजन उतना ज्यादा जीवन.
अब जाकर वैज्ञानिक धरती को ऑक्सीजन से परिपूर्ण ग्रह बनने की असली वजह के करीब पहुंच पाए हैं. धरती पर सूक्ष्मजीवों की चादर से निकलने वाली ऑक्सीजन की सबसे बड़ी वजह है धरती का अपनी धुरी पर धीमे घूमना. धरती का अपनी धुरी पर घूमने की शुरुआत करीब 240 करोड़ साल पहले हुई थी. क्योंकि धरती जब युवा थी…नई-नई बनी थी, तब यह बहुत तेजी से अपनी धुरी पर घूमती थी. इसका एक चक्कर कुछ ही घंटों में पूरा हो जाता था.
करोड़ों साल पहले जब धरती ने धीमे-धीमे घूमना शुरु किया तब दिन की रोशनी का अपना समय तय हो गया. ये दिन का समय यानी सूरज की रोशनी लंबे समय तक धरती को छूती थी. इसकी वजह से सूक्ष्मजीवों को सूरज की रोशनी में रहकर ज्यादा फोटोसिंथेसिस करने का मौका मिला. जिसका बाइप्रोडक्ट है ऑक्सीजन यानी अपना O2. वैज्ञानिकों ने देखा कि जिन जगहों पर सूक्ष्मजीवों यानी साइनोबैक्टीरिया और उस जैसे जीवों की मौजूदगी ज्यादा होती है, वहां पर ऑक्सीजन का स्तर भी ज्यादा होता है.
वैज्ञानिकों ने हाल ही में अमेरिकी राज्य मिशिगन और कनाडाई राज्य ओटांरियो की सीमा पर स्थित लेक हुरॉन में बने एक सिंकहोल की अधय्यन कर रहे थे. लेक हुरॉन दुनिया की सबसे बड़ी साफ पानी की झीलों की सूची में शामिल है. लेक के बीच में एक द्वीप है, जिसपर यह सिंकहोल बना है. इसका व्यास करीब 300 फीट है. यह सतह से करीब 80 फीट गहरी है. इस झील के पानी में सल्फर की मात्रा ज्यादा है, इसलिए यहां पर कई तरह के रंगीन सूक्ष्मजीवों का जमावड़ा है.
लेक हुरॉन में पाए जाने वाले कुछ सूक्ष्मजीव तो धरती पर मौजूद प्राचीन बैक्टीरिया की प्रजातियों से हैं. इस झील में दो प्रकार के सूक्ष्मजीवों की मौजूदगी है. पहले वो जो सूरज की रोशनी चाहने वाले बैंगनी साइनोबैक्टीरिया. ये फोटोसिंथेसिस के जरिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं. दूसरे सफेद रंग के बैक्टीरिया, जो सल्फर को खाते हैं. सल्फेट रिलीज करते हैं.
सफेद बैक्टीरिया सुबह, शाम और रात में बैंगनी साइनोबैक्टीरिया को ढंक लेते हैं. लेकिन जैसे ही सूरज की रोशनी आती है, ये पानी में अत्यधिक गहराई में चले जाते हैं. जब दिन की रोशनी तेज होती है, तब ये सफेद बैक्टीरिया भाग जाते हैं. यहीं पर बैंगनी साइनोबैक्टीरिया अपना फोटोसिंथेसिस का काम शुरू करते हैं, ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन रिलीज करते हैं. जर्मनी के बर्लिन स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन माइक्रोबायोलॉजी की साइंटिस्ट जुडिथ क्लैट ने कहा कि दिन की रोशनी और ऑक्सीजन के उत्पादन के बीच सीधा संबंध है. जब दिन की रोशनी में परिवर्तन होता है तब ये सूक्ष्मजीव ज्यादा रोशनी वाली जगहों पर चले जाते हैं, ताकि फोटोसिंथेसिस के जरिए ऑक्सीजन उत्पादन कर सकें.
जुडिथ क्लैट ने कहा कि दिन छोटा होगा तो ऑक्सीजन का स्तर भी कम हो जाएगा. अभी धरती धुरी पर अपना एक चक्कर करीब 24 घंटे में लगाती है. लेकिन 400 करोड़ साल पहले यह 6 घंटे में एक चक्कर लगाती थी. करोड़ों साल लगे लेकिन धरती और चांद की चाल के बीच एक तालमेल बन गया. इनकी गति धीमी हो गई. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन कॉलेज ऑफ लिटरेचर, साइंस एंड आर्ट्स में अर्थ एंड एनवायरमेंट विभाग के प्रोफेसर ब्रायन अरबिक ने कहा कि चांद की गति और चक्कर की वजह से समुद्र में लहरों पर असर पड़ने लगा. धरती के घूमने की गति कम हुई तो चांद का खिंचाव भी बढ़ा.
ब्रायन ने कहा कि दिन के घंटे बढ़ने में सैकड़ों करोड़ साल लग गए. आज भी धरती अपनी गति को लगातार कम कर रही है. चांद के खिंचाव की वजह से पैदा होने वाले टाइडल फ्रिक्शन लगातार धरती की गति को धीमा करने में लगा है. इसी वजह से धरती पर अलग-अलग देशों में दिन के समय में अंतर भी दिखाई देता है. इसलिए वैज्ञानिकों ने दिन की रोशनी और सूक्ष्मजीवों से निकलने वाले ऑक्सीजन को लेकर एक मॉडल बनाया. जब लेक हुरॉन के सिंकहोल में मौजूद बैक्टीरिया की इस मॉडल के आधार पर स्टडी की तो पता चला कि दिन बड़ा यानी ज्यादा ऑक्सीजन. दिन छोटा मतलब कम ऑक्सीजन का उत्पादन.
ब्रेमेन स्थित लीबनिज सेंटर फॉर ट्रॉपिकल मरीन रिसर्च के साइंटिस्ट अर्जुन छेनू ने कहा कि ज्यादा ऑक्सीजन का मतलब ये नहीं की सूक्ष्मजीवों ने ज्यादा फोटोसिंथेसिस किया. बल्कि ज्यादा समय तक सूरज की रोशनी की वजह से सूक्ष्मजीवों की चादर से एक दिन में ज्यादा ऑक्सीजन बाहर निकला. इसे ऑक्सीजन एस्केप (Oxygen Escape) कहते हैं. धरती का वायुमंडल बनने में, धरती के ठंडा होने में करीब 460 करोड़ साल लग गए.
अर्जुन छेनू ने बताया कि करोड़ों साल पहले धरती के निर्माण के समय हाइड्रोजन सल्फाइड, मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा ज्यादा थी. आज की तुलना में तब कार्बन डाईऑक्साइड 200 गुना ज्यादा था. यह स्टडी स्मिथसोनियन एनवायरमेंट रिसर्च सेंटर ने कराई थी. इसमें बताया गया था कि कैसे 240 करोड़ साल पहले धरती पर ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट (GOE) की शुरुआत हुई थी. तब यह बेहद कम था. आज इतना है कि सारे जीव सांस ले पा रहे हैं. यानी धरती के घूमने की प्रक्रिया को धन्यवाद कहना चाहिए.