बरकट्ठा। 18 वर्षों से झारखन्ड के सुदूरवर्ती इलाकों में शिक्षा का दीप प्रज्ज्वलित कर अशिक्षा का तिमिर तोम जैसी विडंबना से निजात दिलाते हुए पूरे राज्य, समाज व राष्ट्र को रौशन प्रदान किया।
बावजूद झारखन्ड में स्थापित लोकतन्त्र की प्रगतिशील गठबंधन की शक्तियां पारा शिक्षकों को सम्मानजनक कल्याणकारी सौगात देने से मुकर रही है जो काफी अलोकतांत्रिक कदम है जिस उम्मीद और सपनों को लेकर अलग झारखन्ड गठन के लिए हमारे पूर्वजों ने कुर्बानियां दी, जिस झारखन्ड के युवाओं के कल्याण के लिए इतनी बड़ी शहादत देकर प्रकृति प्रदत झारखन्ड की अस्मिता को कैद से आजाद कर अलग झारखन्ड गठन का सपना पूरा किया परंतु आज झारखन्ड में लाचारी, गरीबी , बेबसी और बेरोजगारी का दंश झेलते -झेलते यहां के शिक्षित युवा और युवतियां रोजगार के लिए दूसरे राज्यों के सामने नतमस्तक हो रहे हैं।
आज राज्य में 65000 पारा शिक्षकों की जिन्दगी नरक बनती जा रही है अपनी जिन्दगी की हिफाजत के लिए सरकार के समक्ष अपनी वेदना को आन्दोलन के जरिए प्रकट करते हुए भविष्य सुरक्षा की मुहिम चलाई जा रही है किंतु सरकार इनकी भविष्य के लिए चिंतित नहीं है।
आज देश के अन्य राज्यों में जहां प्राकृतिक संसाधनों में झारखन्ड से काफी पीछे हैं वहां के पारा शिक्षक एवं शिक्षामित्रों को स्थायीकरण करते हुए वेतनमान की सारी सुविधाएं प्रदान किए जा रहे हैं।
बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली समेत अन्य राज्यों में सम्मानजनक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है परंतु झारखंड ही एक ऐसा राज्य है जहां प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है बावजूद वहां के युवा वर्ग, वहां के पारा शिक्षक व सारे अनुबंध कर्मी उन सम्मानजनक सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं जो काफी चिंतनीय है।
हेमन्त सोरेन सरकार ने चुनाव के समय पारा शिक्षकों से वादा किया था कि हमारी सरकार गठन के उपरांत महज तीन माह के अंदर पारा शिक्षकों को स्थायीकरण करते हुए वेतनमान लागू किया जाएगा साथ ही 5 लाख युवाओं को नौकरी देंगे नहीं तो राजनीति से संन्यास ले लूंगा आज दो वर्ष बीतने को है 18 वर्षों से आंदोलित पारा शिक्षकों को वेतनमान की नियमावली पर कठोर कदम नहीं उठा पाई है और न ही उन युवाओं को रोजगार व नौकरी मिली है हेमन्त सरकार ने 2021नियुक्ति का वर्ष घोषित किया है लेकिन आज तक किसी तरह की नियुक्तियां नहीं हो पाई है।
अगर 15 अगस्त तक पारा शिक्षकों की वर्षों पुरानी मांग वेतनमान लागू नहीं किया तो राज्य के 65000 पारा शिक्षक इस वादा खिलाफी सरकार के खिलाफ क्रांति की ज्वाला बनकर रणभूमि में चक्रवाती तूफान की तरह कमर कस कर कूद पड़ेंगे जिसकी सारी जिम्मेवारी झारखन्ड सरकार की होगी
केवल रणभेरियाँ बजने की देर है निश्चित तौर पे इस बार पारा शिक्षकों का सब्र का बांध टूट चुका है अब किसी भी कीमत पर ये आन्दोलन का कारवां नहीं रुकेगा।
स्वतंत्रता दिवस के सालगिरह पर तमाम सूबे के 65000 पारा शिक्षकों के लिए वेतनमान की सौगात लेकर हेमन्त सोरेन जी की सरकार नहीं आई तो 16 अगस्त से आन्दोलन की रणभेरियां बजते ही पारा शिक्षकों से किए गए वादों से मुकरने वाली लोकप्रिय सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए माननीय मुख्यमंत्री जी के आवास पर सूबे के 65000 पारा शिक्षकों का हुंकार रैली निकाली जाएगी इस पर भी हमारी मांग पूरी नहीं होती है तो अनिश्चित कालीन के लिए घेरा डालो डेरा डालो का कार्यक्रम मुख्यमंत्री जी के आवास पर ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए।