Amrawati : साल के पहले दिन यानी एक जनवरी की सुबह ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने एक्सपोसेट (एक्स-रे पोलारिमीटर सेटेलाइट) लॉन्च कर इतिहास रच दिया। श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से सुबह 9 बजकर 10 मिनट पर इसे लॉन्च कर भारत ऐसा करने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है। एक्सपोसेट ब्लैक होल के रहस्य का पता लगाएगा। दरअसल, वेधशाला को एक्सपोसेट या एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट कहा जाता है।
एक साल से भी कम समय में यह भारत का तीसरा मिशन है। भारत अब एक उन्नत खगोल विज्ञान वेधशाला लॉन्च करने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है। ISRO ने इसे विशेष रूप से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के अध्ययन के लिए तैयार किया है। एक्सपोसेट एक्स-रे स्रोत का पता लगाने और ‘ब्लैक होल’ की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करने में मदद करेगा। यह मिशन करीब पांच वर्ष का होगा।
देश की चार अंतरिक्ष स्टार्टअप कंपनियां पीएसएलवी-सी58 मिशन पर उपग्रहों को उनकी वांछित कक्षाओं में रखने वाली सूक्ष्म उपग्रह उप प्रणाली (माइक्रोसेटेलाइट सबसिस्टम), प्रक्षेपक (थ्रस्टर) या छोटे इंजन और उपग्रहों को विकिरण से बचाने वाली जैसी खूबियों को दर्शाने के लिए अपने अंतरिक्ष उपकरण (पेलोड) को शुरू करने की तैयारी में हैं। इन कंपनियों में हैदराबाद की ध्रुव स्पेस , बेंगलुरु की बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस, मुंबई की इंस्पेसिटी स्पेस लैब्स प्राइवेट लिमिटेड और हैदराबाद की टेकमीटूस्पेस शामिल है।
बताया गया है कि 44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी राकेट उड़ान भरने के लगभग 21 मिनट बाद सबसे पहले प्रमुख उपग्रह को 650 किलोमीटर की निचली पृथ्वी कक्षा में तैनात करेगा। इसके बाद में विज्ञानी पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल-3 (पीओईएम-3) प्रयोग के लिए राकेट के चौथे चरण को फिर से शुरू करके उपग्रह को लगभग 350 किलोमीटर की निचली ऊंचाई पर लाएंगे।
260 टन है रॉकेट का वजन
यह राकेट पीएसएलवी-डीएल संस्करण है। इसका भार 260 टन है। अंतरिक्ष एजेंसी ने अप्रैल 2023 में पीएसएलवी-सी55 मिशन में पीओईएम-2 का उपयोग करके इसी तरह का सफल प्रयोग किया था। पीओईएम (पीएसएलवी कक्षीय प्रायोगिक माड्यूल) ISRO का प्रायोगिक मिशन है। इसका प्रयोग पीएसएलवी के चौथे चरण के दौरान प्लेटफार्म के रूप में किया जाता है। पीएसएलवी चार चरण का राकेट है। इसके पहले तीन चरण प्रयोग के बाद समुद्र में गिर जाते हैं और अंतिम चरण (पीएस4) उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद अंतरिक्ष में कचरा (कबाड़) बन जाता है।
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