नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निर्भया के गुनाहगारों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि निर्भया के गुनाहगार कानून का दुरुपयोग करके देर कर रहे हैं। कोर्ट ने निर्भया के दोषियों को सात दिनों के अंदर कानूनी विकल्प आजमाने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि डेथ वारंट काफी पहले जारी हो जाना चाहिए था। जेल प्रशासन ने ढिलाई की। केंद्र सरकार की अर्जी पर हाईकोर्ट ने 1 और 2 फरवरी को विशेष सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रख लिया था।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नियम के हिसाब से मौजूदा वक्त में निर्भया के हत्यारों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है। जैसे ही राष्ट्रपति दया याचिका खारिज करते हैं, फांसी हो सकती है। उन्होंने कहा था कि कानून और संविधान में सिर्फ दया याचिका खारिज होने के बाद मृत्यदंड देने के लिए 14 दिनों की समय सीमा है। इस अवधि में दोषी अपनी आखिरी इच्छा या कानूनी प्रक्रिया पूरी कर सकता है और जेल प्रशासन तैयारी।
दोषी मुकेश की ओर से वकील रेबेका जॉन ने कहा कि ट्रायल के डेथ वारंट के खिलाफ दोषी की अर्जी पर हाईकोर्ट ने कोई दखल देने से इनकार कर दिया था। हमें सुप्रीम कोर्ट या ट्रायल कोर्ट जाने के लिए बोला गया था। लिहाजा सरकार की इस अर्जी पर भी हाईकोर्ट के सुनवाई का औचित्य नहीं बनता है। रेबेका जॉन ने कहा कि दोषियों को अलग-अलग फांसी की सज़ा देने के केन्द्र की दलील सही नहीं है। सरकार ने शतुघ्न चौहान केस में जारी गाइडलाइंस में सुधार के लिए इसलिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है, क्योंकि उसके पास अलग-अलग फांसी देने का कोई क़ानूनी आधार नहीं है। वो मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है। उन्होंने कहा कि चाहे अपराध कितना भी जघन्य हो, दोषियों को समाज कितनी भी नफ़रत की नजर से देखता हो लेकिन उनके भी क़ानूनी अधिकार हैं। आख़िरी सांस तक उन्हें पैरवी का अधिकार है। इस लिहाज से मैं उनकी पैरवी कर रही हूं। फिर कोर्ट जो फैसला ले, वो उस पर निर्भर है।