खूंटी। कोरोना संक्रमण को लेकर जारी लाॅक डाउन का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव कहें या प्रकृति की नेयामत, इस वर्ष आम और कटहल की पूरे झारखंड में इस तरह बंफर उत्पादन हुआ है कि लगता है फलों के राजा आम का तो मानो रुतवा ही खत्म हो गया। सड़कों और बाग-बगीचें में हर ओर आम गिरकर बिखरे पड़े हैं, पर कोई उन्हें देखने वाला तक नहीं है।
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि आम का ऐसा उत्पादन उन्होंनें पिछले 50 वर्षों में नहीं देखा। उनका मानना है कि वाहनों के नहीं चलने के कारण प्रदूषण में कमी आयी है। इसका सकारत्मक प्रभाव आम, कटहल, जामुन, लीची सहित अन्य फसलों के उत्पादन पर पड़ा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बीजू आम ही भारी उत्पादन हुआ है। आम्रपाली, मालदा सहित अन्य बड़े किस्म के आम का भी बंफर उत्पादन हुआ है।
जानकार बताते हैं कि पूरे राज्य में आम्रपाली सहित अच्छे किस्म के आम का उत्पादन डेढ़ हजार मैट्रिक टन से अधिक हुआ है। अकेले खूंटी जिले में साढ़े तीन सौ मैट्रिक टन बड़े आम का उत्पादन हुआ है। इतनी भारी उपज के बाद भी आम की खरीदार नहीं हैं। लाॅक डाउन के कारण बाहर के व्यापारी बाग-बगीचों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं। मई और जून में जारी बारिश के कारण आम लोग भी अमचूर, अमसी या अमावट आदि नहीं बना पा रहे हैं। इसके कारण भी स्थानीय लोग आम खरीदने से बच रहे हैं। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं आम की भी वही स्थिति न हो जाए, जो तरबूज की फसल की हुई थी।
आम के बंफर उत्पादन में सीएफटी परियोजना का बहुत बड़ा योगदान: प्रेम शंकर
झारखंड में आम के बेहतर उत्पादन के लिए बागवानी योजना के तहत किए गए सफल प्रयोग में भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित क्लस्टर फैसिलिटेशन टीम(सीएफटी परियोजना) का बहुत बड़ा योगदान है। ये बातें खूंटी जिले में बागवानी क्षेत्र में काम कर रही स्वयंसेवी संस्था प्रदान के प्रेम शंकर ने कही। उन्होंने कहा कि इसके तहत राज्य में जमीनी स्तर पर काम कर रही गैर सरकारी संस्थाओं के तकनीकी सहयोग से लाभुकों को समय पर प्रशिक्षण, गुणवत्तापूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन और मनरेगा में काम की मांग के साथ ही पंचायत स्तर पर रोजगार दिवस के क्रियान्वयन में काफी बड़ा योगदान रहा है। इससे न केवल गरीब किसान, मजदूरों की स्थाई संपत्ति बनी है, बल्कि रोजगार के माध्यम से उनकी आमदनी में काफी वृद्धि हुई है। साथ ही मनरेगा के तहत बागवानी के लाभुकों को मजदूरी वर्ष में औसत 90 मानव दिवस हो जाती है। मनरेगा के तहत सीएफटी परियोजना 2018 के बाद से रूकी हुई है। उन्होंने बताया कि आम के पौधों से चौथे वर्ष से ही फल किसानों को मिलने लगता है। औसतन एक एकड़ में बागवानी करने वाले किसान शुरुआत से 25 से 30000 रु की आमदनी करना शुरू करते हैं, जो आगे चलकर प्रति एकड़ एक लाख रुपये प्रति वर्ष हो जाती है।
आज भी गुफू गांव के कई किसान आम की फसल से एक लाख तक की आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। प्रेम शंकर ने कहा कि बागवानी को बढ़ावा देने से पलायन में कमी आ रही है। इसके अलावा बागान के अंदर पहले वर्ष से ही अंतर फसल के रूप में सब्जी खेती करते हैंए जिससे किसानों की आमदनी और भी बढ़ जाती है। इससे ना केवल आमदनी बढ़ती है बल्कि सालों भर सब्जी की खेती होने से किसानों के घर में हरी साग सब्जी का उपभोग भी बढ़ जाता है, जिससे परिवार के सदस्यों को भरपूर पोषण मिलता है। इससे कुपोषण दूर करने में मदद मिल रही है।
पांच वर्षो में मनरेगा के तहत 32 हजार एकड़ में हुई आम की बागवानी
प्रेम शंकर ने बताया कि मनरेगा में पिछले पांच वर्षों में 38062 परिवार के साथ 31816 एकड़ में आम बागवानी हुई है। इनमें 34 लाख 31 हज़ार 357 आम्रपाली और मल्लिका किस्म के पौधे लगे हैं। कुल 24 जिलों के 263 प्रखंडों में पिछले वर्ष बागवानी की गयी।स इस वर्ष 2016 एवं 2017 में लगाये गए पौधों में फल आये हैंए जिसका कुल अनुमानित उत्पादन 750 मीट्रिक टन है। इसके अलावा सरकार की अन्य योजनायों यथा विशेष स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजनाए वाड़ी और उद्यान विभाग द्वारा लगायी गयी बागवानी से भी उत्पादन होंगे। अतः झारखण्ड में इस वर्ष कुल 1000 मैट्रिक टन आम के उत्पादन के आसार हैं। उन्होंने कहा कि बाजार व्यवस्था एवं विकेंद्रीकृत खरीद प्रणाली के साथ-साथ किसानों को फलों की छंटाई और पैकेजिंग का प्रशिक्षण देना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि अगले दो वर्षों में झारखण्ड में आम का उत्पादन पांच गुना बढ़ने की संभावना है, जिससे झारखंड की की पहचान आम उत्पादक राज्य के रूप में होगी।