पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव का मौका है। बिहार के बढ़ने की बात की जा रही है, ऐसे में बिहार की राजनीति के फ्लैशबैक को भी टटोलना जरूरी है। बिहार की राजनीति में वर्चस्व, बाहुबल जैसे शब्द जेहन में सबसे पहले आते हैं। ये ऐसे शब्द हैं जो समय-समय पर हर पार्टी और उसके नेता के साथ जुड़ते रहे हैं। इसी फेहरिस्त में विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला हैं। बिहार के बाहुबलियों की लिस्ट का वो नाम जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे राजनीतिक दल डर के मारे टिकट देती रही हैं।
मुजफ्फरपुर का लंगट सिंह कॉलेज एक ऐसी जगह है जहां से हजारों आईएएस और आईपीएस निकले, लेकिन साथ में यहां से बीसियों बाहुबली भी वर्चस्व की जंग का ककहरा सीखकर समाज में आए। मुन्ना शुक्ला के पिता रामदास शुक्ला मुजफ्फरपुर के कोर्ट में वकालत करते थे। इस वजह से उनके चारों बेटे भी 10वीं पास करने के बाद बारी-बारी से इसी लंगट सिंह कॉलेज में दाखिल हुए। 1994 में छोटन शुक्ला की हत्या हो गई। मुन्ना शुक्ला ने भाई की हत्या को ही सहारा बनाकर अपराध की दुनिया में आधिकारिक एंट्री मारी।
भीड़ के हाथों डीएम की हत्या
आरोप है कि बाहुबलियों की श्रेणी में एंट्री से पहले मुन्ना शुक्ला कोई बड़ा कांड करना चाहता था। आरोप है कि इसके लिए उसने भाई छोटन शुक्ला की शव यात्रा निकाली और विरोध प्रदर्शन कराए। इस दौरान गोपालगंज के डीएम भीड़ शांत कराने पहुंचे थे। आरोप है कि इसी दौरान मुन्ना शुक्ला ने भीड़ को उकसा दिया जिसके चलते गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।
मंत्री की हत्या से खौफ की दुनिया में नाम
1994-1998 तक मुन्ना शुक्ला ने ठेकेदारी से खूब पैसा बनाया। साथ ही बिहार के दूसरे बाहुबलियों से अदावत लेता रहा। इसी दौरान मुजफ्फरपुर इलाके में बृजबिहारी ऐसे नेता थे जो मुन्ना के बड़े भाई छोटन के दौर से ही बाहुबलियों के सामने चुनौती पेश कर रहे थे। 1998 में राबड़ी देवी की सरकार में बृजबिहारी प्रसाद मंत्री बने और अपना कद ऊंचा कर लिया था। यह बात मुन्ना समेत दूसरे बाहुबलियों को लगातार कचोट रही थी। 3 जून 1998 को मंत्री बृज बिहारी प्रसाद इलाज के लिए पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान अस्पताल में थे। रात को पार्क में टहल रहे थे, तभी अपराधियों ने उन्हें गोलियों से भून डाला। इस केस में राजन तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, सूरजभान सिंह सहित 8 लोगों को आरोपी बनाया गया। इस वारदात में निचली अदालत से सभी आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, लेकिन 25 जुलाई 2014 को मुन्ना शुक्ला, सूरजभान सिंह समेत सभी आरोपियों को पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया।
जेल में बार बाला का डांस
मुन्ना शुक्ला अपनी दागदार छवि को छुपाए रखने के लिए 2005 से लगातार जेडीयू में बने रहे। इसका उन्हें फायदा भी मिलता दिखा। माना जाता है कि वह ज्यादातर बड़े मुकदमों में बेदाग साबित हो चुके हैं। अब एक बार फिर से लालगंज विधानसभा क्षेत्र में प्रचार कर रहे हैं और जेडीयू से टिकट की उम्मीद लगाए हुए हैं। जेल में रहते हुए मुन्ना शुक्ला पर बार बालाओं के डांस कराने के भी आरोप लगे। इसकी तस्वीरें अखबारों में प्रकाशित हुई। लेकिन ये सब मामले एकाध दिन सुर्खियां बनकर कहीं गुम हो गईं।