Ujjain : रविवार रात से मलमास यानी खरमास शुरू हो जायेगा। इसके बाद से मांगलिक कार्य एक माह के लिए वर्जित रहेंगे। मलमास का समापन 14 जनवरी 2025 को होगा। जब भी सूर्य द्वारा बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं, तो मलमास या खरमास लगता है।
श्री मांतगी ज्योतिष केंद्र ज्योतिर्विद पंडित अजय कृष्ण शंकर व्यास के अनुसार मलमास को अशुभ और अशुद्ध माह माना जाता है। इस दौरान विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। सूर्य द्वारा बृहस्पति की राशि धनु राशि या मीन राशि में प्रवेश करने पर मलमास या खरमास लगता है। इसकी शुरूआत 15 दिसंबर की रात से हो जायेगी। मलमास का समापन 14 जनवरी 2025 होगा। उस समय सूर्य,धनु राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाएगा।
मलमास के दौरान क्या करें-क्या नहीं
पंडित व्यास ने बताया कि मलमास में नया घर खरीदना या गृह प्रवेश करना, नये व्यापार की शुरुआत,शादी, मुंडन, जनेऊ,सगाई आदि कार्य वर्जित है। अर्थात् 16 संस्कारों वाले कार्य करने की शास्त्रों में मनाही है। उन्होंने बताया कि मलमास में प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करें। पक्षि और पशुओं की सेवा करें। भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करें। जप, तप और दान का भी खास महत्व है। हो सके तो गंगा या अन्य पवित्र नदी में स्नान जरूर करें। मलमास में प्रति गुरुवार केले का दान करें।
यह है शास्त्रोक्त कारण
पंडित व्यास के अनुसार मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठ कर पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा के दौरान सूर्य का रथ एक क्षण के लिए भी नहीं रुकता। लेकिन निरंतर चलते रहने से तथा सूर्य की गरमी से घोड़े प्यास और थकान से व्याकुल होने लगे। घोड़ों की यह दयनीय दशा देखकर सूर्य देव उन्हें विश्राम देने के लिए और उनकी प्यास बुझाने के उद्देश्य से रथ रुकवाने का विचार करते हैं। लेकिन उन्हें अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण हो आता है कि वे अपनी इस अनवरत चलने वाली यात्रा में कभी विश्राम नहीं लेंगे। विचार करते हुए सूर्य देव का रथ आगे बढ़ता रहा। तभी सूर्य को एक तालाब के पास दो खर (गधे) दिखाई दिए। उनके मन में विचार आया कि जब तक उनके रथ के घोड़ेे पानी पीकर विश्राम करते हैं, तब तक इन दोनों खरों को रथ में जोतकर आगे की यात्रा जारी रखी जाए। ऐसा विचार कर सूर्य ने अपने सारथि अरुण को उन दोनों खरों को घोड़ेों के स्थान पर जोतने के आदेश दिए। सूर्य के आदेश पर उनके सारथि ने खरों को रथ में जोत दिया। खर अपनी मंद गति से सूर्य के रथ को लेकर परिक्रमा पथ पर आगे बढ़ गए।
मंद गति से रथ चलने के कारण सूर्य का तेज भी मंद होने लगा। सूर्य के रथ को खरों द्वारा खींचने के कारण ही इसे ‘खरÓ मास कहा गया। खर मास साल में दो बार आता है। पहला- जब सूर्य धनु राशि में होता है। दूसरा-जब सूर्य मीन राशि में आता है। इस दौरान सूर्य का पूरा प्रभाव यानी तेज, पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध पर नहीं पड़ता। सूर्य की इस कमजोर स्थिति के कारण ही पृथ्वी पर इस दौरान गृह-प्रवेश, नया घर बनाने, नया वाहन, मुंडन, विवाह आदि मांगलिक और शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। किसी नए कार्य को शुरू नहीं की जाती है। लेकिन इस मास में सूर्य और बृहस्पति की आराधना विशेष फलदायी होती है।
गुरुण पुराण के अनुसार खर मास में प्राण त्यागने पर सद्गति नहीं मिलती। इसलिए महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपने प्राण खरमास में नहीं त्यागे थे। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। ध्यान देने की बात है कि खर मास और मल मास में अंतर है। सूर्य के धनु और मीन राशि में आने पर खर मास होता है। यह साल में दो बार आता है।
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