नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि देश में सहयोग पर आधारित संघवाद को बनाए रखने में राज्यपालों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल की जिम्मेदारी केवल संविधान के संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके पास अपने राज्यों के लोगों की सेवा और कल्याण में निरंतर बने रहने की संवैधानिक प्रतिबद्धता भी है।
कोविंद आज राष्ट्रपति भवन में राज्यपालों के दो दिवसीय 50वें सम्मलेन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने संवैधानिक व्यवस्था में राज्यपालों की भूमिका को अहम बताते हुए कहा कि आदिवासियों का विकास और सशक्तिकरण समावेशी विकास के साथ-साथ हमारी आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। राज्यपाल इनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपनी संवैधानिक शक्तियों का उपयोग करके उचित मार्गदर्शन दे सकते हैं, जो विकास के मामले में अपेक्षाकृत पीछे रह गए हैं।
सम्मेलन में कुल 17 राज्यपाल और उप-राज्यपाल पहली बार शामिल हो रहे हैं। पहली बार नव-गठित केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और लद्दाख के उप-राज्यपाल भी सम्मेलन में भागीदारी कर रहे हैं। इसके अलावा उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल भी इसमें मौजूद रहे।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में राज्यपाल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। आज जब हम सहकारी संघवाद और देश की प्रगति के हित में स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद पर जोर दे रहे हैं तो राज्यपाल की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि सभी राज्यपालों के पास सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण कार्यों को करने का प्रचुर अनुभव है। देश की जनता को इस अनुभव और दक्षता का अधिक से अधिक लाभ मिलना चाहिए। हम सभी जनता के लिए काम करते हैं और उनके प्रति जवाबदेह भी हैं।
इस वर्ष के राज्यपाल सम्मेलन के एजेंडे के बारे में बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सम्मेलन की तैयारी न्यू इंडिया की नई कार्य संस्कृति के अनुरूप की गई है ताकि सम्मेलन को अधिकाधिक उपयोगी और लक्ष्योन्मुख बनाया जा सके। राज्यपालों के साथ चर्चा के बाद राष्ट्रीय महत्व के पांच विषयों को चुना गया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि जल-संसाधनों का समुचित उपयोग व संरक्षण हमारे देश की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। हमें जल शक्ति अभियान को स्वच्छ भारत मिशन की तरह एक जन आंदोलन बनाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी नई शिक्षा-नीति का लक्ष्य भारत को ‘नॉलेज सुपर पावर’ (ज्ञान के क्षेत्र में महाशक्ति) बनाना है। इस महात्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए उच्च-शिक्षा के हमारे सभी संस्थानों को शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। सभी राज्यपाल, कुलाधिपति के रूप में अभिभावक का दायित्व भी निभाते हैं। इसलिए, आप सभी से यह अपेक्षा की जाती है कि भारत की भावी पीढ़ी को विश्व-स्तरीय कौशल एवं ज्ञान प्रदान करने के प्रयासों को समुचित मार्ग-दर्शन और शक्ति प्रदान करें।
सम्मेलन के दौरान, समांतर सत्रों में, संयोजक राज्यपालों के मार्गदर्शन में तैयार की गई ड्राफ्ट प्रस्तुतियों पर, सभी उप-समितियां पुनः विचार-विमर्श करेंगी। इन सत्रों में, राज्यपालों के साथ, सम्बद्ध विभागों के मंत्री, नरेन्द्र सिंह तोमर (कृषि मंत्री), रमेश पोखरियाल ‘निशंक’(मानव संसाधन विकास मंत्री), अर्जुन मुंडा (जन-जातीय कार्यमंत्री), गजेन्द्र सिंह शेखावत (जल शक्ति मंत्री) तथा डॉक्टर राजीव कुमार, उपाध्यक्ष नीति आयोग भी भाग लेंगे। सम्बद्ध मंत्रालयों के सचिव भी इन समांतर सत्रों में भागीदारी करेंगे। इन सत्रों में जो प्रस्तुतियां तय की जाएंगी उन पर एक बार फिर सभी राज्यपालों व उपराज्यपालों की उपस्थिति में सामूहिक चर्चा की जाएगी। इस सामूहिक चर्चा में जो सुझाव दिए जाएंगे, उन पर संवाद करने के बाद प्रस्तुतियों को अंतिम रूप दिया जाएगा।