रांची। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने “आदि-दर्शन” सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में 9 प्रकार के दर्शन में ट्राइबल दर्शन सबसे अच्छा और सबसे बड़ा दर्शन है। आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं। साथ ही पंचतत्व की पूजा करते हैं।
उन्होंने कहा कि अभीतक जनजातीय समुदायों के अध्ययन के विषय उनकी बाहरी गतिविधियों, बाह्य जगत से उनके सम्बन्धों, अपने समाज में उनके व्यवहारों तक ही सीमित रहे हैं। विशेष तौर पर मानवशास्त्री आदिवासी समाज के धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा पद्धतियों, जन्म से मृत्यु तक के संस्कारों, सामाजिक संगठनों, पर्व-त्योहारों, किस्से-कहानियों-गीतों तथा नृत्य की शैलियों पर ही अध्ययन करते आ रहे हैं। आशा है कि ऐसे आयोजन से ‘आदिवासी दर्शन’ दर्शनशास्त्र की भारतीय शाखा में अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाने में सफल होगा।
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि अति प्राचीन काल से ही जनजातीय समुदाय भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। जनजातियों की कला, संस्कृति, लोक साहित्य, परंपरा एवं रीति-रिवाज़ समृद्ध रही है। जनजातीय गीत एवं नृत्य बहुत मनमोहक है। ये प्रकृति प्रेमी हैं। विभिन्न अवसरों पर हम यह देखते हैं कि जनजातियों के गायन और नृत्य उनके समुदाय तक ही सीमित नहीं हैं, सभी के अंदर उस पर झूमने के लिए इच्छा जगा देती है। उल्लेखनीय है कि 19 जनवरी तक चलने वाले इस सेमिनार में 12 देशों से आदिवासी दर्शनशास्त्र के विशेषज्ञ और शोधकर्ता हिस्सा ले रहे हैं।
विकास के आधुनिक मॉडल ने आदिवासी और प्रकृति के रिश्ते के संतुलन को बिगाड़ दिया हैः हेमंत सोरेन
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि विकास कs आधुनिक मॉडल ने आदिवासी और प्रकृति के रिश्ते के संतुलन को बिगाड़ दिया है। संसाधन की ग्लोबल भूख से अधिकतर आदिवासी पहचान को ही आघात पहुंचा है। विश्व में कई देशों ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया आदि ने बड़े पैमाने पर आदिवासियों को अपनी प्रकृति-संस्कृति से अलग किया है और इस समुदाय को पलायन का रास्ता अपनाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में पूरा विश्व ने आधुनिकीकरण के जिस विकास मॉडल को अपनाया है क्या आदिवासी समूह विकास के इस पैमाने के साथ-साथ चल पा रहा है, यह बहुत ही बड़ा सवाल है।
उन्होंने कहा कि जनजातीय दर्शन एक बहुत बड़ा विषय है। झारखंड आदिवासी बहुल प्रदेश है। देश और हमारे राज्य में बहुत सारे शोध निरंतर होते रहे हैं। आदिवासी दर्शन को समझना अथवा शोध एक बड़ी चुनौती भी है। मुझे पूरा विश्वास है कि रांची के ऐतिहासिक ऑड्रे हाउस में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय “आदि-दर्शन” सेमिनार का आयोजन राज्य के आदिवासी समुदाय के समग्र विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
आदिवासी समुदायों की 5 हजार संस्कृतियां हैं और 40 हजार भाषाएं
मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि आदिवासी दर्शन विषय पर पूरे विश्व में शोध कार्य चल रहे हैं। यह शोध कार्य किस तरीके से चल रहे हैं, इसकी भी चर्चा निरंतर होती रही है। जहां तक मुझे जानकारी है कि पूरे विश्व के लगभग 90 देशों में 37 करोड़ आदिवासी रहते हैं। इन समुदायों की 5 हजार संस्कृतियां हैं और 40 हजार भाषाएं समाहित हैं जो सामान्य दिनचर्या में बोली जाती हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे विश्व की आबादी का 5% यानी कि पूरे विश्व में 800 करोड़ की आबादी में लगभग 40 करोड़ आदिवासी समूह के लोग शामिल हैं। आज यह एक बड़ी विडंबना है कि पूरे विश्व की गरीबी में 15% हिस्सेदारी आदिवासियों की ही है।
आदिवासी समूह को जल, जंगल, जमीन से अलग किया गया
मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि दुनिया में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक आदिवासी समूह के ही लोग रहे हैं। झारखंड में खनिज संपदा के उत्खनन के लिए आदिवासी समूह को जल, जंगल, जमीन से अलग किया गया है। आदिवासी समुदाय के जमीनों को छीनने का भी काम किया जा रहा है। झारखंड के आदिवासी समूहों को कॉरपोरेट के नाम पर भी छला गया है। उद्योग के क्षेत्र में जितना लाभ आदिवासी समाज को मिलना था, वह नहीं मिल पाया।
आदिवासी समुदायों के गिरते जीवन स्तर पर भी चिंतन की आवश्यकता
मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी समुदाय ऐसा समूह है जो अपनी परंपरा-संस्कृति को सीने से लगाकर सदैव चलता रहा है। आदिवासी समुदाय के गिरते जीवन स्तर पर भी हमें चिंतन करने की आवश्यकता है। देश में 1951 ईस्वी तक लगभग 30 से 35% आदिवासी हुआ करते थे। आज आदिवासियों की संख्या मात्र 26% रह गई है। यह अपने आप में एक बहुत ही गंभीर विषय है कि आखिर आदिवासी समुदाय के लोगों की संख्या कैसे घटी?
प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में आदिवासी समुदाय की भूमिका अहम
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंतित है। प्रकृति के बदलाव के वजह से जो परिस्थिति उत्पन्न हुई है यह काफी चिंतनीय है। प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में आदिवासी समुदाय की भूमिका सबसे अहम रही है और आगे भी रहेगी। ग्लोबल वार्मिंग जैसी चीजों से बचाव आदिवासी समाज से बेहतर और कोई नहीं कर सकता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि मैं भी इसी आदिवासी समाज से आता हूं। मेरे मन में भी बहुत संवेदनाएं हैं। आदिवासी परंपरा संस्कृति को अच्छा रखने के लिए सरकार भी इस समुदाय के साथ निरंतर कंधे से कंधा मिलाकर चलेगी।